कोरोना संकट के दूसरे दौर के विकराल रूप लेने से कुछ ही समय पहले इस वर्ष फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकाधिक मंच से स्पष्ट कहा था कि संपत्ति सृजित करने वालों का भरपूर सम्मान होना चाहिए। उसके कुछ ही समय बाद से पिछले कुछ दिनों तक देश के अधिकतर राज्य कोरोना की दूसरी लहर से त्राहिमाम् कर रहे थे, नए मामलों की संख्या दो सप्ताह से भी अधिक समय तक रोजाना चार लाख और करीब डेढ़ महीने तक एक लाख से अधिक रही तथा रोजाना मौतों का आंकड़ा दुनियाभर में सर्वाधिक पर पहुंच गया। अच्छी बात यह है कि स्थिति अब सुधर रही है और इसलिए सुधर रही है क्योंकि इस मुश्किल दौर में मुकेश अंबानी, अजीम प्रेमजी, रतन टाटा, गौतम अदाणी, सज्जन जिंदल, नवीन जिंदल, आनंद महिंद्रा और इनके जैसे दर्जनों प्रतिष्ठित नामों व हजारों बड़ी-छोटी कंपनियों ने देश को कोरोना संकट से उबारने में जो अतुलनीय योगदान दिया, उसने प्रधानमंत्री मोदी के उस आग्रह की गहराई और मर्म समझने में समाज की बड़ी मदद की है।
मोदी सरकार के सात साल पूरे होने पर जेपी नड्डा ने दी बधाई
इस वर्ष जब कोरोना संकट अधिक भयावह रूप में दूसरी लहर के साथ वापस आया तो घरेलू ही नहीं, देश में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी यथासंभव ताकत के साथ इससे लड़ने में पूरी तत्परता दिखाई। एक तरफ रिलायंस, टाटा ग्रुप, अदाणी ग्रुप, महिंद्रा एंड महिंद्रा, जिंदल ग्रुप, विप्रो, एचसीएल और आदित्य बिड़ला समेत दर्जनों निजी कंपनियों ने अपने-अपने क्षेत्रों और लोकेशंस पर कोरोना पीड़ितों की भरपूर मदद की तो दूसरी तरफ माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी यथासंभव मदद का हाथ बढ़ाया। रिलायंस, टाटा, महिंद्रा, अदाणी और विप्रो जैसी कंपनियों की मदद से वर्तमान में कोरोना पीड़ितों के लिए 10,000 से अधिक बिस्तरों वाले कोरोना अस्पतालों का संचालन होने लगा है, जिनमें से अधिकतर में मरीजों का मुफ्त इलाज हो रहा है।
मन की बात में बोले PM मोदी, देश की जनता दोनों तूफानों से पूरी ताकत से लड़ी
कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार ने पिछले वर्ष मार्च के आखिरी दिनों में जिस पीएम केयर्स फंड की स्थापना की थी, उसमें दो महीनों के भीतर देशभर की कंपनियों और संस्थाओं की तरफ से 15,000 करोड़ रुपए से अधिक जमा हो गए। रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा संस की कंपनियों, महिंद्रा एंड महिंद्रा, विप्रो, आदित्य बिड़ला, एचसीएल जैसी अनगिनत छोटी-बड़ी कंपनियों से लेकर देश के सबसे बड़े परोपकारी अजीम प्रेमजी, रतन टाटा और शिव नादर जैसे दर्जनों नामों और सरकारी-निजी क्षेत्रों की सैकड़ों कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के दैनिक वेतन के रूप में पीएम केयर्स फंड में योगदान दिया। सरकार के समग्र प्रयासों और कॉरपोरेट जगत द्वारा अपनी तरफ से इसी यथासंभव योगदान ने कोरोना की पहली लहर की धार कुंद करने और समाज को वापस पटरी पर लौटने में बड़ी मदद की थी।
पुल से टकराकर पलटी कार में लगी आग, चार लोगों की मौत
पिछले वर्ष कोरोना संकट सामने आने के बाद अरबपति कारोबारी और एशिया के सबसे बड़े धनकुबेर मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे पहली कंपनी थी जिसने औद्योगिक ऑक्सीजन का उपयोग तत्काल बंद कर उसे मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर देशभर के उन अस्पतालों तक पहुंचाने का फैसला किया जहां कोरोना मरीज लगातार दम तोड़ती सांस के साथ जिंदगी से दूर हो रहे थे। रिलायंस ने गुजरात के जामनगर स्थित ऑयल रिफाइनरी में उत्पादन बंद कर रोजाना 700 टन मेडिकल ऑक्सीजन महाराष्ट्र और गुजरात समेत अन्य राज्यों को मुफ्त भेजनी शुरू की। कंपनी अब रोजाना 1,000 टन मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही है। कंपनी का दावा है कि देशभर में ऑक्सीजन की जरूरत वाले 10 में से एक कोरोना मरीज को प्राणवायु की आपूर्ति आरआइएल की तरफ से हो रही है। वर्तमान में कंपनी जामनगर व मुंबई में 1,875 बेड वाला कोरोना अस्पताल चला रही है, जहां मरीजों को मुफ्त इलाज मिलता है।
बंद स्कूल के कैंपस में मिले 200 से अधिक बच्चों के शव, मचा हड़कंप
पिछले वर्ष पीएम केयर्स फंड में 1,500 करोड़ रुपए देने वाले टाटा ग्रुप ने इस दूसरी लहर में सबसे ज्यादा योगदान ऑक्सीजन आपूर्ति के रूप में दिया। ग्रुप ने ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए 24 क्रायोजनिक ऑक्सीजन कंटेनर आयात किए। इसके साथ ही ग्रुप ने टाटा स्टील और टाटा मोटर्स समेत अपने उन सभी संयंत्रों को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया जिनमें औद्योगिक ऑक्सीजन का उपयोग जरूरी था। कंपनी ने उस ऑक्सीजन को मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में पहुंचाया। कंपनी ने देशभर में अपने कई फाइव स्टार व अन्य होटल कोरोना योद्धाओं तथा संक्रमितों के लिए क्वारंटाइन सेंटर के रूप में उपयोग के लिए खोल दिए। ग्रुप इस वक्त 5,000 से अधिक बेड वाले कोरोना अस्पतालों का भी संचालन कर रहा है। इसी तरह गौतम अदाणी नियंत्रित अदाणी ग्रुप ने विदेश से 48 क्रायोजनिक ऑक्सीजन टैंकर मंगवाने और देशभर में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद की और सैकड़ों बिस्तर वाले अस्पताल शुरू करवा दिए।
इस देश के प्रधानमंत्री ने गुपचुप रचाई शादी, 23 साल छोटी है दुल्हन
जिंदल ग्रुप और टाटा समेत दर्जनों स्टील उत्पादकों, मारुति, हीरो, होंडा और टाटा मोटर्स जैसी ऑटो कंपनियों समेत उन सभी उद्यमों ने अपने संयंत्र अस्थायी रूप से बंद कर दिए जिनमें औद्योगिक ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है ताकि उद्योगों में काम आने वाले ऑक्सीजन को मेडिकल उपयोग के लिए देशभर के अस्पतालों में भेजा जा सके। ओडिशा और अपने कार्यक्षेत्रों के अन्य राज्यों में उद्योग संयंत्र अस्थायी तौर पर बंद कर सैकड़ों हॉस्पिटल को मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले अग्रणी कारोबारी सज्जन जिंदल ने खुलकर कहा कि जीवन बचाना फिलहाल कारोबार बचाने और चलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन कंपनियों की फेहरिस्त सैकड़ों में है जिन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए मुफ्त में कोरोना टीके का इंतजाम किया ताकि संकट जल्दी टले और इकोनॉमी वापस पटरी पर लौट सके। इन सबका संकेत सिर्फ एक है- आप जहां और जैसे हैं, वहीं से वैसे ही जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं, समाज को मुश्किलों से निपटने में अपना योगदान दे सकते हैं। असल में समाज जब भी किसी प्राकृतिक आपदा या महामारी की चपेट में आया है तो ‘परोपकार: पुण्याय’ की युगों पुरानी परंपरा वाले देश के कारोबारी समाज, उद्योग जगत और धनकुबेरों ने अपने-अपने स्तर और सामथ्र्य के हिसाब से उस संकट से लड़ने में अपना योगदान दिया है। इस योगदान की मात्रा जरूर चर्चा का विषय बनती रही है जिसने हर अगले मौके पर उद्योग जगत के परमार्थ को पहले से ज्यादा गंभीरता से लेने को प्रेरित भी किया है। इस वर्ष कोरोना संकट की इस दूसरी लहर में उद्योग जगत ने एक तरह से साबित किया कि संकट के वक्त समाज के साथ खड़े होने की उसकी तैयारी पर कोई सवाल उठाना उचित नहीं है। पिछले वर्ष दुनियाभर में कोरोना संकट के रूप में सदी का सबसे बड़ा संकट सामने आने के बाद देश के उद्योग जगत ने जिस तत्परता से समाज की मदद की थी, उसने साबित किया है कि परोपकार और परमार्थ अब एक नई शक्ल ले रहा है। यह कारोबारी बाध्यता से निकलकर सहज-स्वाभाविक जिम्मेदारी की ओर बढ़ रहा है।
बंद स्कूल के कैंपस में मिले 200 से अधिक बच्चों के शव, मचा हड़कंप
बीते दिनों तक अधिकतर कंपनियां केंद्र व राज्य सरकार के विभिन्न कल्याणकारी फंड्स में आर्थिक योगदान कर अपने परोपकार की इति-श्री कर लेती थीं, लेकिन कोरोना संकट के इस मौजूदा दौर में कंपनियों ने एक कदम आगे बढ़कर अपने कार्यों और खर्च को वहां केंद्रित किया, जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। पिछले करीब डेढ़ वर्ष में परोपकार के क्षेत्रों में योगदान देने वालों ने साबित किया कि जब संकट देशव्यापी हो तो उसके समाधान में भागीदारी भी उसी स्तर की होनी चाहिए। इस नए रूप में देश का कॉरपोरेट जगत संत कबीर के उस दोहे से एकाकार होता दिख रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘ज्यों जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम/दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।’ यानी, जिस नाव में आप सवार हों अगर उसमें जल भरने लगे और घर में संपदा बढ़ने लगे तो समझदारी का काम यही है कि व्यक्ति उसे दोनों हाथों से बाहर उड़ेलने लगे, स्रोत को लौटाने लगे। कॉरपोरेट जगत इसी तरह अपनी कमाई का हिस्सा दोनों हाथों से समाज को लौटाता रहे तो समाज कई चुनौतियों से पार पा सकता है।
– मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से मुंबई में 1,000 बेड वाला देश का पहला कोविड हॉस्पिटल बनवाया।
-5,000 से अधिक बेड वाले कोरोना अस्पतालों का संचालन कर रहा है टाटा ग्रुप।
– आनंद्र महिंद्रा नियंत्रित महिंद्रा एंड महिंद्रा ने दिल्ली-एनसीआर में अपनी एक कंपनी के कैफेटेरिया को ही कोविड केयर सेंटर में बदल दिया।
-गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने कोरोना संकट से लड़ने के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक के योगदान का वादा किया है।
-माइक्रोसॉफ्ट ने 1,000 वेंटिलेटर और 25,000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है।