डकैत से नेता बनी दिवंगत पूर्व सांसद फूलन देवी की कथित संलिप्तता वाले चार दशक पुराने बेहमई हत्याकांड के वादी, शिकायतकर्ता और प्रमुख गवाह राजाराम सिंह (85) का रविवार को बेहमई गांव में बीमारी के कारण निधन हो गया।
वह लंबे समय से लिवर (यकृत) की बीमारी से ग्रसित थे।
सिंह ने एक बार पत्रकार से बातचीत के दौरान इच्छा जताई थी कि बेहमई नरसंहार के चार जीवित अभियुक्तों को फांसी पर लटकते देखना चाहते हैं। डकैत फूलन देवी और उसके गिरोह द्वारा बेहमई नरसंहार में 14 फरवरी 1981 को 20 लोगों की हत्या की गयी थी जिसमें 17 ठाकुर शामिल थे।
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कानपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर इस गांव में उच्च जाति के ठाकुरों द्वारा कथित तौर पर बलात्कार का बदला लेने के लिये इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार में छह लोग घायल भी हुए थे।
इस नरसंहार के मुख्य गवाह राजाराम के दो छोटे भाई बनवारी सिंह और हिम्मत सिंह, चचेरे भाई नरेश सिंह, भतीजे देव सिंह, हुकुम सिंह और दशरथ सिंह भी मारे गये लोगों में शामिल थे। कानपुर की एक स्थानीय अदालत ने अगस्त 2012 में नरसंहार के 31 साल बाद इस मामले में आरोप तय किये थे। 23 आरोपियों में फूलन देवी सहित 16 आरोपियों की मौत हो चुकी है। अदालत ने चार जीवित आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये थे।
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बेहमई नरसंहार मामले में फैसला जनवरी 2020 में विशेष अदालत (डकैती) द्वारा दिया जाना था, लेकिन मामले की मूल केस डायरी (सीडी) के अभाव में संबंधित अदालत द्वारा इसे स्थगित करना पड़ा था। केस डायरी गायब होने के मामले की जांच के आदेश भी दिये थे। अदालत चार जीवित अभियुक्तों पोशा (75), श्यामबाबू (70), भीखा (65) और विश्वनाथ (54) की भूमिका पर फैसला सुनायेगी। इसमें पोशा अभी भी जेल में है जबकि बाकी जमानत पर है।
राजाराम के बेटे रामकेश सिंह ने पत्रकारों को बताया कि उनके पिता लीवर की बीमारी से पीड़ित थे और रविवार को घर पर अंतिम सांस ली।