इस साल रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत 28 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और फिर उनकी कथा पढ़ी जाती है। रमा एकादशी व्रत कथा इस प्रकार है
रमा एकादशी (Rama Ekadashi) की कथा सुनाते हुए भगवान कृष्ण ने कहा, हे युधिष्ठर, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नमा रमा है। इसकी कथा ऐसे-प्राचीन काल में मुचकंद नामक एक राजा सत्यवादी और भगवान विष्णु का परम भक्त थे। सत्यवादी राजा मुचकंद की एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। चंद्रभागा का विवाह अन्य नगरी के राजा के पुत्र शोभन से हुआ था। राजा मुचकंद हर साल एकादशी का व्रत रखते थे। राजा के अलावा उनके राज्य के सभी लोग भी ये व्रत पूरे मन से रखते थे।
चंद्रभागा के पति शोभन का शरीर काफी कमजोर था, लेकिन वो एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत में बहुत श्रद्धा रखता था। एक दिन शोभन ससुराल में था और एकादशी आ गई। मुचकंद राजा ने राज्यभर में ऐलान कर दिया कि आज प्रजा के सभी लोगों का उपवास होगा। उसने कहा कि हाथी, घोड़ा और ऊंट को भी अन्न नही देना? राजकुमार शोभन मुनादि सुनकर पत्वि के पास गया और कहा कि मैंने उपवास किया और तो निश्चय ही मृत्यु हो जाएगी।
उसने कहा कि उपवास की शक्ति ना हो, तो यहां से कहीं और चले जाइए। पत्नि के कहने पर शोभन ने एकादशी का व्रत किया, दिन भर प्यासा रहा, रात को जागरण भी किया, लेकिन सुबह पारण के समय अपने प्राण त्याग दिए। व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में उसे हिमाचल पर्वत पर रत्न जड़ित उत्तम नगर मिला। लेकिन राजा ने क पति की मृत्यु के बाद चंद्रभागा अपने पिता के राज महल में वापस आ जाती है और वहां रहकर खुद को पूजा-पाठ में लीन कर लेती है।
एक दिन मुचकंद राजा के नगर का एक साधु वहीं पहुंच जहां चंद्रभागा का पति राज्य करता था। साधु ने उससे पूछा कि इतना पुण्य कैसे मिला, इस पर शोभन ने सभी कहानी बताई। शोभन ने साधु से कहा कि यह राज्य अभी अध्रूव है और इसे ध्रूव करने की शक्ति मेरी पत्नी में है।
साधु ने वापस आकर चंद्रभागा को सारी कहानी बताई और ये बात सुनकर चंद्रभागा को बेहद प्रसन्नता हुई और वो शोभन से मिलने के लिए जाती है। चंद्रभागा शोभन को सारी बात बताती है, जिसके बाद दोनों साथ में खुशी-खुशी रहने लगते हैं।