नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने नोएडा के एमरल्ड कोर्ट के 2 अवैध टावरों को तोड़ने के आदेश में संशोधन करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने सुपरटेक की याचिका ठुकरा दी है। सुपरटेक का कहना था कि, 224 फ्लैट वाले अधूरे बने एक टावर को ध्वस्त करने के बाद भवन निर्माण के नियमों का पालन हो जाएगा। इसलिए दूसरे टावर को बने रहने दिया जाए, लेकिन अदालत ने इस पर राहत नहीं दी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट इससे पहले नोएडा में निर्मित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग प्रोजेक्ट में 40 मंजिला टावरों में से दो को तोड़ने का आदेश दे चुका है। हालांकि अब कहा जा रहा है कि, दो टावरों में से सिर्फ एक को ही तोड़ने का प्रस्ताव था।
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बता दें कि, शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त को दिए अपने आदेश में एक्सप्रेस स्थित एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के अपैक्स एंड स्यान यावे-16 17 को गैर-कानूनों ठहराया है दोनों 40 मंजिला टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। आदेश के तहत बिल्डर को 3 महीने में टावर गिराने होंगे। इसका खर्च भी बिल्डर खुद वहन करेगा।
इसके साथ ही खरीदारों को 12 फीसद ब्याज के साथ दो महीने में पैसे भी वापस लौटाने होंगे। कोर्ट ने कहा था कि, दोनों टॉवर को 3 महीने में गिराना होगा और खरीदारों को 12 फीसद ब्याज के साथ 2 महीने में पैसा वापस देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 915 फ्लैट दुकानों वाले 40 मंजिला वाले दो टावरों का निर्माण नियमों को ताक पर रखकर किया गया था। एमरल्ड कोर्ट परिसर में रह रहे लोगों का आरोप था कि बिल्डर सुपरटेक ने पैसों के लालच में सोसाइटी के ओपन एरिया में बगैर अनुमति के ये विशाल टावर खड़े कर दिए। टावर ध्वस्त करने जाने के पूरे काम की निगरानी नोएडा प्राधिकरण को दी गई है।