सियाराम पांडेय ‘शांत’
हर शासक का अपना दृष्टिकोण होता है। हर नेता का अपना नजरिया होता है। देश को आगे ले जाने का एक माॅडल होता है। राजनीति में आगे वही बढ़ता है जो अपने सपनों को मूर्त रूप देता है। उसे आम जन के हित से जोड़ता है और सबके विकास की कामना करता है। महाराज विक्रमादित्य के सिंहासन टीले के नीचे दब गया था। वहां बैठकर एक चरवाहा अपने साथी चरवाहों के साथ न्याय किया करता था।
यह बात राजा तक पहुंची तो उसने सच्चाई जानने की कोशिश की तो उसे पता चला कि जब वह बालक टीले पर बैठता है तभी खास निर्णय कर पाता है वर्ना वह भी सामान्य बच्चों जैसा भी है। उसने टीले की खुदाई कराई , उसे नीचे एक सिंहासन मिला। उस सिंहासन में 32 पुतलियां लगी थीं, इसलिए उसे सिंहासन बत्तीसी कहा जाता था। सिंहासन सुंदर था। राजा जिस सिंहासन पर बैठता था, उससे कई गुणा सुंदर था। इसलिए वह उस पर बैठना चाहता है।
पहले दिन एक पुतली ने पूछा कि यह सिंहासन राजा विक्रमादित्य है। क्या आपमें विक्रमादित्य का अमुक गुण है। जब उसने ना कहा तो पुतली उड़ गई। इस तरह 31 पुतलियों ने उसे विक्रमादित्य के 31 गुण सुनाए और राजा से पूछा कि क्या वह उस गुण को रखता है। नकारात्मक उत्तर मिलने पर सब एक-एक कर उड़ती रहीं। 32वीं पुतली जब अकेली बची तो उसने भी कुछ इसी तरह के सवाल किए और राजा के ना कहते ही वह सिंहासन लेकर उड़ गई लेकिन एक अयोग्य राजा को उसने सम्राट विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने नहीं दिया। यह व्यवस्था लोकतंत्र पर भी लागू होती है।
सांसद, विधायक, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल या मुख्यमंत्री चुनते वक्त क्या हम सिंहासन बत्तीसी की पुतलियों की तरह उनकी योग्यता- अयोग्यता, गुण और दोष पर भी विचार करते हैं या जाति-धर्म के आधार पर ही चुन लेते हैं। देश की समस्या की यही वजह है। गिरिधर कवि ने अपनी कुंडलियों में लिखा है कि ‘ गुण के ग्राहक सहस नर बिनु गुन लहै न कोय। जैसे कागा-कोकिला शब्द सुनै सब कोय। शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन। परै अपावन ठौर काग सब भए अपावन।’ भारत में गुणग्राहियों की संख्या कभी कम नहीं रही। इसमें संदेह नहीं कि अपने देश का कुटीर उद्योग बेहद समृद्ध हुआ करता था और इसी की बदौलत यह देश दुनिया भर में सोने की चिड़िया कहा जाता था।
राजतंत्र में कारीगरों का पर्याप्त मान-जान था। कारीगरों को आर्थिक परेशानी न हो, इसलिए राजे-महाराजे और नवाब मीना बाजार लगवाया करते थे। शाम तक जो सामान नहीं बिकता था, उसे खुद खरीद लिया करते थे। आजाद भारत में उस परंपरा पर ध्यान नहीं दिया गया। मेलों-बाजारों की समृद्ध परंपरा समाप्त होने लगी और इसी के साथ कुटीर उद्योगों के प्रति लोगों का रुझान कम होता गया। आजाद भारत में प्रधानमंत्री तो बहुत हुए। वे तजुर्बेकार भी थे लेकिन किसी ने भी कारीगरों की पीड़ा को ढंग से नहीं समझा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल कारीगरों और दस्तकारों की पीड़ा को समझा बल्कि उनकी समस्या के निदान का मार्ग भी तलाशा। वर्ष 2016 में दिल्ली के प्रगति मैदान में पहला हुनरहाट आयोजित कर उन्होंने देश भर के कारीगरों को यह संदेश देने की कोशिश की कि सरकार उनके साथ है। इस क्रम में सरकार की योजना सौ हुनरहाट के आयोजन की है। जिसमें 24 वें हुनर हाट का लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो. मुख्तार अब्बास नकवी ने विधिवत उद्घाटन किया। इस आयोजन को एक जिला एक उत्पाद की थीम पर आयोजित किया जा रहा है जबकि पिछले साल की थीम कुछ और थी।
हर साल नई-नई थीम पर हुनर हाट का आयोजन जाहिरा तौर पर देश को आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने वाला है। हुनर हाट से न केवल देश के पांच लाख लोगों को रोेजगार मिलने का दावा किया जा रहा है बल्कि यह भी बताया जा रहा है कि इसमें देश के 31 राज्यों जिसमें केंद्र शासित राज्य भी शामिल हैं, के 500 से अधिक शिल्पकार, दस्तकार और कलाकार उस्ताद अपने उत्पादों के साथ अवध शिल्पग्राम में आए हैं। 4 फरवरी तक चलने वाले इस हुनर हाट में प्रदेश के ओडीओपी उत्पाद भी अपनी पूरी विविधता के साथ मौजूद हैं। हाट के जरिए देश के दस्तकारों-शिल्पकारों के उत्पादों को प्रोत्साहन मिलेगा और बाजार भी उपलब्ध होगा।
इस बार का हुनर हाट का आयोजन वोकल फॉर लोकल थीम को केंद्र बनाकर किया जा रहा है। हुनर हाट में असोम, आंध्र, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, लद्दाख मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु तेलंगाना, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से करीब 500 शिल्पकारों और दस्तकारों का आगमन देश की सांस्कृतिक विविधता ,देश की एकता, अखंडता और अक्षुण्णता का द्योतक है।
नई दिल्ली : घने कोहरे की चादर से ढकी देश की राजधानी, बढ़ी ठंड
इसके बाद जिन जगहों पर हुनर हाट के आयोजन किए जाने हैं, उनमें मैसूर, जयपुर, चंडीगढ़, इंदौर, मुंबई, हैदराबाद, नई दिल्ली, रांची, कोटा, सूरत, अहमदाबाद, कोच्चि, पुडुचेरी आदि शामिल है। पिछ्ले साल हुनर हाट का आयोजन दिल्ली में किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिरकत की थी। उन्होंने न केवल बिहार के बाटी-चोखा का आनंद लिया था बल्कि उसकी तारीफ भी की थी। कुछ ऐसे ही प्रयास अन्य प्रधानमंत्रियों या जनप्रतिनिधियों ने भी किए होते तो आज
देश की कारोबारी स्थिति कुछ और होती। इससे पूर्व वर्ष 2020 में रामपुर और प्रयागराज में भी हुनर हाट आयोजित किए जा चुके हैं। जिस तरह से यहां के उत्पादों की बिक्री को जेम पोर्टल से जोड़ा गया है। देश-विदेश के ग्राहक आनलाइन समाचारों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं, उससे इतना तो तय है कि भारतीय उत्पादों की देश-दुनिया में र्मोटिंग हो रही है। यह आयोजन ऐसे समय हो रहा है जब उत्तर प्रदेश दिवस का स्थापना दिवस भी मनाया जा रहा है।
24 जनवरी को आयोजित होने वाले स्थापना दिवस पर खादी फैशन-शो का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर देश के सुप्रसिद्ध फैशन डिजाइनर्स आशमा हुसैन, रूना बनर्जी, रीना ढाका, रीतू बैरी, मनीष त्रिपाठी द्वारा डिजाइन किये गये खादी वस्त्रों पर आधारित वृहद फैशन-शो का आयोजन होना है। सरकार की कोशिश इसी बहाने खादी की ओर युवाओं को आकृष्ट करने की है। इसके अतिरिक्त अवध शिल्प ग्राम में ही खादी एवं ग्रामोद्योग की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जा रहा है।
इस प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड, बंगाल तथा झारखण्ड राज्यों के खादी एवं ग्रामोद्योग इकाइयों द्वारा 119 स्टाॅल लगाए जा रहे हैं। लोगों को कोविड-19 से बचाव का संदेश देने के लिए विश्व का सबसे बड़ा खादी मास्क हॉट एयर बैलून के माध्यम से लॉन्च किया जा रहा है। यह मास्क प्रदेश के सभी जनपदों से प्राप्त खादी वस्त्रों से तैयार किया गया है। यूपी दिवस पर प्रदेश की गरीब महिलाओं में 336 सोलर चरखों का वितरण किया जाना है। चरखों के संचालन के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है।
मुख्यमंत्री द्वारा 25 महिलाओं को सांकेतिक रूप से सोलर चरखे प्रदान किए जाने हैं। कारीगरों के प्रोत्साहन और उन्हें बाजार उपलब्ध कराने के लिहाज से सरकार बेहतर प्रयास कर रही है। हुनर हाट से न केवल स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार होगा वहीं एक मंच के नीचे लोगों को विभिन्न वैरायटी के सामान खरीदने को मिलेंगे। हुनर हाट का आयोजन सरकारी है। यह अच्छा प्रयास है लेकिन जरूरी यह है कि जिस तरह पहले मेलों और बाजारों का आयोजन स्वतः हुआ करता था, उसी तरह की व्यवस्था फिर जीवंत और जागृत हों । जब तक ऐसा नहीं होता तब तक केवल सरकार के स्तर पर होने वाले आयोजनों से ही बात नहीं बनने वाली है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो. मुख्तार अब्बास नकवी जब यह कहते हैं कि जल्द ही भारत के बाहर के देशों में भी हुनर हाट लगेंगे तो इससे पता चलता है कि भारत की सोच अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर रही है। योग की तरह ही हुनर हाट भी दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है। विचार की ताकत सबसे बड़ी होती है। विचार ही तो है जो व्यक्ति को ऊंचाई पर भी ले जा सकता है और धरातल पर भी पहुंचा सकता है। हुनर हाट में कलाकारों का हुनर दिख भी रहा है और औरों को ऐसा करने की प्रेरणा भी दे रहा है। यह हासिल भी बहुत है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।