हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की दूज तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस साल यह 05 मार्च को है। शबरी अपने गुरु के आशीर्वाद से प्रभु राम से मिलती हैं और भगवान राम ने उन्हें नौ भक्ति का ज्ञान दिया। श्रीराम के प्रति श्रद्धा और भक्ति के कारण शबरी को मोक्ष प्राप्ति हुई थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने इनके झूठे बेर खाए थे। इसलिए भगवान और भक्त के आपसी समर्पण के प्रतीक पर्व के रूप में शबरी जयंती मनाई जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शबरी के जीवन से जुड़ी खास बातें…
कौन थी शबरी माता
माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था और वह भील समुदाय की शबरी जाति से संबंध रखती थीं। इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी पड़ा। उनके पिता भीलों के राजा थे। शबरी जब विवाह के योग्य हुई तो उनके पिता ने भील कुमार से उसका विवाह तय किया। उस समय विवाह में जानवरों की बलि देने का नियम था। इसलिए शबरी के पिता ने 100 जानवारों को बलि चढाने का फैसला किया। शबरी पूरी रात उन भेड़-बकरियों के पास बैठी रही और उनसे बाते करती रही। उसके मन में एक ही विचार था, कि कैसे वो इन निर्दोष जानवरों को बचा पाए। तब ही एकाएक शबरी के मन में ख्याल आता हैं और वो भौर होने से पूर्व ही अपने घर से भागकर जंगल चली गई, जिससे वो उन निर्दोष जानवरों को बचा सके। शबरी भलीभांति जानती थी, अगर एक बार वो इस तरह से घर से भाग जाएगी, तो कभी उसे घर वापस आने का मौका नहीं मिलेगा। फिर भी शबरी ने खुद से पहले उन निर्दोषों की सोची। घर से निकलकर शबरी एक घने जंगल में जा पहुंची।
मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची शबरी
अकेली शबरी जंगल में भटक रही थी, तब उसने शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से कई गुरुवरों के आश्रम में दस्तक दी, लेकिन छोटी जाति होने के कारण हर कोई शबरी को धुत्कार देता था। शबरी भटकती हुई मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची और उसने अपनी शिक्षा प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। मतंग ऋषि ने शबरी को सहर्ष अपने गुरुकुल में स्थान दे दिया अन्य सभी ऋषियों ने मतंग ऋषि का तिरस्कार किया, लेकिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में स्थान दिया।
श्री राम की भक्त थी शबरी
जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि, वह अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ रखती थीं। शबरी रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए। एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वह तुरंत समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं। उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते वह भागती हुई प्रभु राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया। अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए। शबरी की कथा रामायण, भागवत, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत आदि ग्रंथों में मिलती है।
देवी स्वरूप में पूजी जाती है शबरी
शबरी जंयती के दिन शबरी को देवी स्वरूप में पूजा जाता है, यह जयंती श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि शबरी माला देवी की पूजा करने से वैसे ही भक्ति भाव की कृपा मिलती है जैसे शबरी ने भगवान राम से प्राप्त की थी।