नवरात्र (Sharadiya Navratri) का शुभारंभ तीन अक्टूबर से हो रहा है। इस साल मां दुर्गा डोली पर आयेंगी और उनका प्रस्थान चरणायुध (बड़े पंजे वाले मुर्गे) पर होगा। मां का आना व जाना शुभ नहीं माना जा रहा है। जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि कलश स्थापना तीन अक्टूबर को पूरे दिन में किसी भी समय की जा सकती है लेकिन जहां तक अमृत मुहूर्त का सवाल है तो वह समय प्रातः 7: 16 मिनट से 8: 42 मिनट तक तथा सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त सुबह 11: 12 मिनट से 11: 58 मिनट तक विशेष फलदायक है। कलश स्थापना सदैव पूजा घर के ईशान कोण में करनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा इस वर्ष नवरात्र (Sharadiya Navratri) में कैलाश से धरती पर पधारेगी। इसलिए उनका आगमन हस्त नक्षत्र में गुरुवार के दिन होने के कारण डोली की सवारी होगा। जो अत्यंत ही विनाश कारक माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस वर्ष माता का आगमन डोली पर होता है उस वर्ष देश में रोग, शोक, प्राकृतिक आपदा आती है। माता का कैलाश प्रस्थान इस वर्ष चरणायुध की सवारी होगा। ऐसी स्थित में लोगों में तबाही की स्थिति रहेगी।
कलश स्थापना विधि:
कलश की स्थापना मंदिर या घर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए। मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। स्नानादि करने के बाद सबसे पहले कलश स्थापना वाली जगह को गाय के गोबर से लीप लें या गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें।
फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में जल या गंगाजल भरें और इसमें आम का पत्ता रखें। इसके बाद कलश के ऊपर रखी जाने वाली प्लेट में कुछ अनाज भर लें और उसके ऊपर नारियाल रखें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें।
चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है।
कलश स्थापना के साथ ही पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं। अखंड ज्योति में गाय का घी शुद्धता के साथ घर में बना घी ही बेहतर होगा।
विशेष मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।’ मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें।