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शिवलिंग के होते है तीन हिस्से, जानिए कौन-सा हिस्सा किसका प्रतीक होता है

Writer D by Writer D
31/07/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली
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Jyotirlingas

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क्या आप जानते है कि जिस शिवलिंग की हम और आप पूजा करते हैं, दरअसल उसका भी अपना एक विज्ञान है. शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है. मध्य भाग में आठों ओर एक समान सतह बनी होती है. अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है. इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है.

ये तीन भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं. शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए एक मार्ग से निकल जाता है. शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) और एक बिंदू होता है, ये रेखाएं शिवलिंग पर समान रूप से अंकित होती हैं.

सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है. प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है.

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पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं. इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं.सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे. सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं. इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है..

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वैसे तो प्रमुख रूप से शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग. लेकिन पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख रूप से 06 प्रकार होते हैं.

देव लिंग : जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं. असुर लिंग : असुरों द्वारा जिसकी पूजा की जाए, वह असुर लिंग. रावण ने एक शिवलिंग स्थापित किया था, जो असुर लिंग था. अर्श लिंग : प्राचीनकाल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित इस तरह के लिंग की पूजा की जाती थी.

पुराण लिंग : पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है. मनुष्य लिंग : प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है. स्वयंभू लिंग : भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं. इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं. भारत में स्वयंभू शिवलिंग कई जगहों पर हैं.

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पश्चिमी हिमालय में अमरनाथ नामक गुफा में हर जाड़े में गुफा के तल पर पानी टपकाने से बर्फ का शिवलिंग बनता है. बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इसके दर्शन के लिए जाते हैं. आंध्र प्रदेश की बोरा गुफाओं में भी प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग मौजूद हैं. बाणलिंग नर्मदा नदी के बिस्तर पर पाए जाते हैं. छत्तीसगढ़ का भूतेश्वर शिवलिंग एक प्राकृतिक चट्टान है जिसकी ऊंचाई लगातार बढ़ रही है. अरुणाचल प्रदेश का सिद्धेश्वर नाथ मंदिर का शिवलिंग सबसे ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग माना जाता है.

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कदावुल मंदिर में 320 किलोग्राम, 3 फुट उच्चा स्वयंभू स्फटिक शिवलिंग स्थापित है. ये सबसे बड़ा ज्ञात स्वयंभू स्फटिक शिवलिंग है.

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान कालीबंगा और अन्य खुदाई के स्थलों पर मिले पकी मिट्टी के शिवलिंगों से प्रारंभिक शिवलिंग पूजन के सबूत मिले हैं. सबूत ये बताते हैं कि शिवलिंग की पूजा 3500 ईसा पूर्व से 2300 ईसा पूर्व भी होती थी.

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