पटना: बिहार की सियासी फिजाओं में इन दिनों ‘दलित पॉलिटिक्स’ की काफी चर्चा है। चर्चा इसलिए है कि, क्योंकि राज्य में कोरोना काल के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं। इस चुनावी साल में राजनीतिक दलों द्वारा कई मुद्दे बनाए जा रहे हैं। इन्हीं मुद्दों में एक मुद्दा जो हाल के दिनों में हावी हुआ है, वह ‘दलित कार्ड’ का।
दलित कार्ड की राजनीति बिहार में कोई अभी नहीं शुरू हुई है, बल्कि इसकी शुरुआत 60 के दशक के अंत में ही शुरू हो गई थी, जब बिहार के मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री बनें थे। लेकिन हाल के दिनों में बिहार की नीतीश कुमार सरकार में मंत्री रहे श्याम रजक ने जब जेडीयू को छोड़ते हुए, आरजेडी की ‘लालटेन’ संभाली तो, यह मुद्दा एक बार फिर सियासी फिजाओं में तैरने लगा।
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इसकी शुरुआत, खुद श्याम रजक ने नीतीश कुमार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाकर किया। फिर क्या था, इसके बाद मानों, बिहार में इस मुद्दों को लेकर सियासत गर्मा गई। आरजेडी ने अपनी दलित नेताओं की फौज उतारकर नीतीश सरकार पर निशाना साधा, तो सत्तापक्ष भी पलटवार करने में पीछे नहीं रही। सरकार के चार मंत्रियों ने भी रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नीतीश कुमार की दलित हितैषी छवि को पेश किया।
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इन सबके के बीच, एक और नाम है, जो बिहार की सियासत में बीते कुछ दिनों से मौजूं है, वह है पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी का। जीतन राम मांझी ने बीते दिनों महागठबंधन को अलविदा कह दिया और दलील दी कि, उनकी मांग को महागठबंधन द्वारा बार-बार नजरअंदाज किया जा रहा था।
मांझी की मानें तो, वह लगातार समन्वय समिति बनाने की मांग महागठबंधन में कर रहे थे। लेकिन समय देने के बावजदू, उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया। हालांकि, मांझी का यह कदम राजनीति के जानकारों के लिए चौंकाने वाला नहीं है। क्योंकि जो राजनीति समझते हैं, वह बहुत पहले ही भांप गए थे कि, मांझी जल्द ही महागठबंधन को ‘बाय-बाय’ बोल देंगे।
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जीतन राम मांझी का अब अगला कदम क्या होगा और वह अपनी मौजूदगी बिहार की सियासत में किस तरह बरकरार रखेंगे, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। क्योंकि मांझी ने महागठबंधन को अलविदा कहने के बाद, अपने पत्ते नहीं खोलें है। लेकिन उनकी पार्टी की तरफ से बस इतना ही कहा गया है कि, 2-3 दिन में मांझी कुछ बड़ा ऐलान कर सकते हैं।ऐसे में कयासों का बाजार गर्म है और एक कयास यह भी है कि, मांझी जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय कर सकते हैं या फिर एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, अभी तक ऐसी को पुख्ता सूचना नहीं मिली है, लेकिन एनडीए नेताओं द्वारा मांझी का गठबंधन में स्वागत करने की बात हमेशा कही जाती रही है।
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यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि, मांझी पहले जेडीयू में थे और नीतीश कुमार की कैबिनेट में 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले मंत्री थे। इसके बाद, जब 2014 में एनडीए द्वारा नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने की घोषणा हुई, तो जेडीयू गठबंधन से बाहर हो गई और नीतीश कुमार ने सीएम की कुर्सी छोड़ते हुए जीतन राम मांझी को सीएम बना दिया। लेकिन, 2014 के चुनाव के बाद, नीतीश से अनबन के बाद जेडीयू ने मांझी को सीएम पद से हटा दिया और दोबारा नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए। जबकि, मांझी ने अलग होकर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का गठन किया और 2015 विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़े। हालांकि, पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और सिर्फ मांझी ही विधानसभा पहुंचने में सफल हो पाए।
इसके बाद, मांझी एनडीए से भी अलग हो गए और बाद में महागठबंधन का हिस्सा बन गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में मांझी की पार्टी को तीन सीटें मिली, लेकिन स्वयं मांझी भी चुनाव हार गए। इसके बाद, बिहार विधानसभा चुनाव आते ही, मांझी की तरफ से महागठबंधन में समन्वय समिति की मांग लगातार होने लगी। लेकिन, आरजेडी-कांग्रेस की तरफ से उन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता रहा।