नई दिल्ली। मोरेटोरियम अवधि के दौरान टाली गई EMI पर ब्याज न लेने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 हफ्ते सुनवाई टाल दी है। कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले को फाइनल सुनवाई के लिए आखिरी बार टाला जा रहा है। इस दौरान सब अपना जवाब दाखिल करें और ठोस योजना के साथ अदालत आएं।
कोर्ट ने रिजर्व बैंक और सरकार को इस मसले पर ठोस निर्णय लेने के लिए दो हफ्ते का समय दिया। कोर्ट ने 31 अगस्त को खत्म मोरेटोरियम अवधि को बढ़ाने पर विचार की भी बात कही।
तीन सितंबर को लोन मोरेटोरियम मामले की सुनवाई 10 सितंबर के लिए टल दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फिलहाल किश्त भुगतान न होने के आधार पर किसी भी एकाउंट को NPA घोषित न किया जाए। सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने माना था कि जितने लोगों ने भी समस्या रखी, वह सही हैं। हर सेक्टर की स्थिति पर विचार जरूरी है। लेकिन बैंकिंग सेक्टर का भी ध्यान रखना होगा। बैंकिंग अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
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उन्होंने कहा कि जब मोरेटोरियम योजना लाई गई तो मकसद यह था कि व्यापारी उपलब्ध पूंजी का जरूरी इस्तेमाल कर सकें। उन पर बैंक की किश्त का बोझ न हो। मकसद यह नहीं था कि ब्याज माफ कर दिया जाएगा। कोरोना के हालात का हर सेक्टर पर अलग असर पड़ा है। फार्मा, IT जैसे सेक्टर ने अच्छा प्रदर्शन भी किया है।
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि हमारे सामने सवाल यह रखा गया है कि आपदा राहत कानून के तहत क्या सरकार कुछ करेगी? हर सेक्टर को स्थिति के मुताबिक राहत दी जाएगी? मेहता ने कहा, ”6 अगस्त के RBI के सर्क्युलर में बैंकों को लोन वसूली प्रक्रिया तय करने की छूट दी गई है। एक कमिटी भी बनाई गई है, जो 6 सितंबर को रिपोर्ट देगी।”
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इसके बाद बैंकों के समूह के वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि हर सेक्टर के लिए भुगतान का अलग प्लान बनाया जाएगा। उन्हें नया लोन भी दिया जाएगा। हमें लोन लेने वाले सामान्य लोगों के लिए भी सोचना है। उनकी समस्या उद्योग से अलग है। कोर्ट ने कहा कि एक तरफ मोरेटोरियम, दूसरी तरफ ब्याज पर ब्याज। दोनों साथ में नहीं चल सकते हैं।