नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के एक नाबालिग लड़के ने गंभीर रूप से बीमार अपने पिता को लिवर दान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) के आदेश से पहले ही नाबालिग के पिता की मौत हो गई। इस संबंध में अदालत को बुधवार को जानकारी दी गई। इसके बाद जस्टिस कौल और जस्टिस अभय ओका की पीठ ने मामले की कार्यवाही स्थगित करने का फैसला किया।
यह मामला इससे पहले शुक्रवार को चीफ जस्टिस यूयू ललित के संज्ञान में लाया गया था, जिन्होंने मामले की तत्परता को समझते हुए इसे सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए थे। पीठ ने कहा था कि बेटे ने स्वेच्छा से अपना लिवर पिता को दान करने की इच्छा जताई है। लेकिन उसके नाबालिग होने की वजह से संबंधित कानून के तहत ऐसा करने की मंजूरी नहीं है। अदालत ने इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस जारी कर राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी को सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहने को कहा था।
इस बीच अदालत ने कहा था कि लिवर दान किया जा सकता है या नहीं, यह देखने के लिए संबंधित अस्पताल में नाबालिग का प्रारंभिक परीक्षण किया जाना चाहिए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस मामले में नाबालिग की मां भी लिवर डोनेट करने को तैयार थी लेकिन मेडिकल टेस्ट में वह लिवर डोनेट करने के लिए फिट नहीं पाई गईं।
जीवित नाबालिगों के अंगदान को लेकर छिड़ी बहस
इस मामले से यह बहस भी शुरू हो गई है कि क्या जीवित नाबालिगों को अंगदान की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं क्योंकि कानून के अनुसार कोई भी नाबालिग मौत से पहले अपने शरीर का कोई भी अंग या टिश्यू टोनेट नहीं कर सकता।
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बता दें कि 17 साल के एक नाबालिग लड़के ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) का रुख किया था। नाबालिग ने याचिका में कहा था कि उसके पिता की हालत गंभीर है और उन्हें तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है। मैं अपने पिता को लिवर देना चाहता हूं। इसी को लेकर नाबालिग ने कोर्ट से अनुमति मांगी थी।