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बेल खारिज करने पर SC ने यूपी के जज को सुनाई सजा, ट्रेनिंग पर भेजा

Supreme Court

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नई दिल्ली। यूपी में एक सेशंस जज को आरोपियों को जमानत न देना भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट से एक सेशंस जज के न्यायिक अधिकार वापस लेने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही उन्हें स्किल्स डेवलप करने के लिए ज्यूडिशियल एकेडमी ट्रेनिंग पर भेजने के लिए कह दिया।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 21 मार्च को कहा था कि अगर कोई बार-बार ऐसे फैसले सुनाता है तो उससे न्यायिक जिम्मेदारी ले ली जाएगी और उसे ट्रेनिंग पर भेज दिया जाएगा। जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच को बताया गया था कि जज निर्देशों का पलन नहीं कर रहे हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाई कोर्ट से इस मामले में 4 हफ्ते के भीतर एक हलफनामा दायर करने को भी कहा है।

दो मामलों में जज ने नहीं दी आरोपी को बेल

एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दो ऐसे मामले कोर्ट के सामने रखे थे, जिसमें जमानत के आदेश नहीं दिए गए थे। शादी से जुड़े विवाद के मामले में लखनऊ के सेशंस जज ने आरोपी, उसकी मां, पिता और भाई को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जबकि उनकी गिरफ्तारी तक नहीं हुई थी। वहीं, दूसरे मामले में एक आरोपी कैंसर पीड़ित था, इसके बाद भी गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने उसे जमानत देने से मना कर दिया था। बेंच ने निराशा जताते हुए कहा कि ऐसे बहुत से आदेश दिए जा रहे हैं, जो हमारे आदेशों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। कोर्ट में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं। 10 महीने पहले फैसला देने के बाद भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है।

लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं

बेंच ने कहा कि 21 मार्च को हमारे आदेश के बाद भी लखनऊ के सेशंस जज ने इसका उल्लंघन किया। हमने इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान में भी डाला। हाई कोर्ट को इस मामले में जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और जजों की न्यायिक कुशलता को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

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उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जहां कस्टडी की जरूरत न हो तो 7 साल से कम की सजा के प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है।

आरोपी अगर जांच में कर रहा मदद तो

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आरोपी जांच में सहयोग कर रहा है तो उसे चार्जशीट दाखिल करने के बाद ही हिरासत में लिया जाना चाहिए। जुलाई में कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है, ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि संविधान की गरिमा को बनाए रखें।

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