रविवार को अफगानिस्तान में तालिबान युग लौट आया। सबसे बड़ा सियासी उलटफेर तब हुआ जब सत्ता परिवर्तन को हरी झंडी दिखा दी गई। एक तरफ अशरफ गनी देश छोड़कर ताजिकिस्तान चले गए, वहीं दूसरी तरफ तालिबानी नेता अहमद अली जलाली को अंतरिम सरकार का चीफ बनाने पर सहमति बन गई। शुरुआत में ये भी कहा गया कि तालिबान को भी जलाली को राज स्वीकार होगा।
तालिबानी प्रवक्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें अली अहमद जलाली का सत्ता में आना स्वीकार नहीं है और तालिबान भी उसका समर्थन नहीं करेगा। कहा गया कि अंतरिम सरकार का चीफ जलाली को नहीं बनाया जाएगा। तालिबान को ये प्रस्ताव मंजूर नहीं है। तालिबान का ये बयान काफी मायने रखता है। गनी के जाने के बाद जलाली की सरकार से अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की उम्मीद थी। लेकिन अगर तालिबान ने ही इस प्रक्रिया में साथ नहीं दिया तो मुश्किलें कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ सकती हैं।
अब तालिबान के राज में अफगानिस्तान के कई इलाकों पर तो कब्जा हो ही रहा है, महिलाएं भी अपनी सुरक्षा को लेकर डरी हुई हैं। तालिबान की जैसी विचारधारा रही है उसे देखते हुए सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब अफगानिस्तान में महिलाओं को काम और पढ़ाई करने दी जाएगी या नहीं? क्या अफगानिस्तान में महिलाएं-लड़कियां स्कूल जा पाएंगी या नहीं?
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तालिबानी प्रवक्ता Zabihullah Mujahid ने कहा है कि महिलाएं पढ़ाई कर सकती हैं। लेकिन उन्हें इस्लाम के शरिया कानून का सख्ती से पालन करना होगा। वहीं हिजाब पहनने पर भी जोर दिया गया है। इससे पहले भी तालिबान ने यही बयान जारी किया है। उन्होंने कहा है कि महिलाओं को पढ़ने की इजाजत दी जा सकती है, लेकिन हिजाब पहनना जरूरी रहेगा।
इस समय तालिबान, अफगानिस्तान के हर इलाके पर कब्जा भी जमा रहा है और जनता से भी अपील कर रहा है कि वे डरे ना। सेना को जरूर खदेड़ा जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि शांति स्थापित करनी है। ऐसे में इस समय तालिबान के दोहरे मापदंड दिख रहे हैं लेकिन इसका नुकसान सिर्फ और सिर्फ अफगानिस्तान को हो रहा है।