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 विधि विधान से बंद हुए बद्रीनाथ धाम के कपाट

विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट इस यात्रा वर्ष शीतकाल हेतु शनिवार, मार्गशीर्ष 5 गते प्रतिपदा को वृष लग्न राशि में सायं छह बजकर 45 मिनट पर विधि-विधान से बंद हो गये।

इस अवसर पर बद्री विशाल पुष्प सेवा समिति, ऋषिकेश द्वारा मंदिर को भब्य रूप से फूलों से सजाया गया था। धाम की सुदूर पहाड़ियों पर बर्फ जमी है, जिससे धाम में भी तापमान कम है तथा मौसम सर्द बना हुआ है।

आज प्रात: ब्रह्म मुहुर्त में श्री बदरीनाथ मंदिर के द्वार खुल गये थे। भगवान बदरी विशाल जी की अभिषेक पूजा हुई। कुछ देर पूजा-अर्चना एवं दर्शन पश्चात बाल भोग समर्पित किया गया। श्रद्धालुओं ने दर्शन किये। दिन का भोग प्रसाद चढाया गया। विष्णुसहस्त्रनाम पूजाएं तथा शयन आरती संपन्न हुई। शाम साढे चार बजे से कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गयी। इसके पश्चात, शाम साढे पांच बजे श्री उद्धव जी एवं कुबेर जी, एवं गरूड़ जी के मंदिर गर्भ गृह से बाहर मंदिर परिसर में आते ही रावल जी द्वारा स्त्रैण भेष धारणकर मां लक्ष्मी को मंदिर भगवान बदरी विशाल के समीप विराजमान किया‌।

ततपश्चात, सीमांत पर्यटन ग्राम माणा के महिला मंडल द्वारा भगवान बदरी विशाल को भेंट किया गया ऊन से बना घृत कंबल भगवान श्री बदरी विशाल को ओढ़ाया गया। इसके बाद रावल जी द्वारा गर्भ गृह के कपाट बंद कर दिये गये। इस अवसर पर रावल जी सहित श्रद्धालुगण भी भावुक हो गये तथा रावल जी समारोह के साथ मंदिर के मुख्य द्वार से बाहर की तरफ प्रस्थान हुए। शाम 06 बजकर 45 मिनट पर भगवान बदरी विशाल मंदिर का मुख्य द्वार शीतकाल हेतु बंद कर दिया गया। इस दौरान सेना के बैंड की भक्तिमय स्वर लहरियां बदरीनाध धाम में गुंजायमान होती रही। गर्भ गृह में रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी जी द्वारा कपाट बंद करने की प्रक्रिया पूरी की गयी।

कपाट बंद होने का संपूर्ण कार्यक्रम उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी. डी. सिंह की देखरेख में संपन्न हुआ। सेना ने आगंतुक तीर्थयात्रियों हेतु भंडारे लगाये। ऋषिकेश, मेरठ, दिल्ली और गोपेश्वर के दानदाताओं ने भंडारे आयोजित किये। स्थानीय माणा, बामणी,पांडुकेश्वर की महिला भजन मंडलियों ने भगवान बदरीविशाल के भजन, झूमेलो कार्यक्रम प्रस्तुत किये।

उल्लेखनीय है कपाट बन्द होने से पूर्व, मंगलवार 16 नवंबर से पंच पूजाएं शुरू हुई थी। पंच पूजाओं में 16 नवंबर को गणेश जी की पूजा एवं कपाट बंद हुए। फिर 17 नंवंबर को आदिकेदारेश्वर जी के कपाट बन्द होने के बाद, 18 नवंबर को खडग पुस्तक पूजन, वेद ऋचाओं का वाचन बंद किया गया। इसके बाद 19 नवंबर को चौथे दिन मां लक्ष्मी जी का आव्हान के बाद आज पांचवे दिन कपाट बंद हो गये। इस अवसर पर चार हजार से अधिक श्रद्धालु कपाट बंद होने के गवाह बने।

कपाट बंद होने के बाद देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का बदरीनाथ कार्यालय अब शीतकाल के लिए जोशीमठ से संचालित होगा। भगवान बदरी विशाल के खजाने के साथ श्री गरूड़ भगवान की विग्रह प्रतिमा श्री बदरीनाथ धाम से नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंचेगी।

श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ भविष्य बदरी मंदिर सुभाई तपोवन(जोशीमठ) तथा मातामूर्ति मंदिर माणा सहित श्री घ़टाकर्ण मंदिर माणा के कपाट तथा बदरीनाथ धाम में अधीनस्थ मंदिरों के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गये हैं।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि श्री घंटाकर्ण महाराज जी, भगवान बदरीविशाल के प्रधान क्षेत्रपाल कहलाते है शीतकाल हेतु 16 नवंबर को भगवान घंटाकर्ण जी की मूर्ति को मूल मंदिर से पश्वाओं द्वारा अज्ञात स्थान पर शीतकाल हेतु विराजमान कर दिया गया। साथ ही, माणा गांव स्थित श्री घंटाकर्ण मंदिर के कपाट शीतकाल हेतु बंद हो गये। इस अवसर पर माणा ग्राम में पारंपरिक उत्सव भी आयोजित हुआ जिसमें बड़ी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल हुए।

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आज श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद कल प्रात: 21 नवंबर श्री उद्वव जी एवं कुबेर जी रावल जी सहित आदिगुरु शंकराचार्य जी की पवित्र गद्दी के साथ रात्रि प्रवास के लिए योग बदरी मंदिर पांडुकेश्वर पहुंचेगी।

श्री कुबेर जी अपने पांडुकेश्वर स्थित मंदिर में तथा उद्धव जी श्री योग -बदरी पांडुकेश्वर में विराजमान में हो जायेंगे जबकि 22 नवंबर को रावल जी एवं आदिगुरु शंकराचार्य जी की गद्दी श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में विराजमान होंगे।इसके साथ ही योग बदरी पांडुकेश्वर एवं श्री नृसिंह मंदिर जोशी मठ में शीतकालीन पूजाएं भी शुरू होंगी।

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