उत्तराखंड| उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (Chamoli) में बंशी नारायण मंदिर (Banshi Narayan Temple) स्थित है। यह मंदिर काफी लोकप्रिय है। भक्त साल भर इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पाते, क्योंकि यह पूरे साल बंद रहता है। हालांकि मंदिर के कपाट खास दिन पर सिर्फ 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं। जिस दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं, श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। लोग यहां इस दिन पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण (Banshi Narayan)का आशीर्वाद लेते हैं।
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अगर आप देश की ऐसी जगहों को घूमना चाहते हैं जो अपने आप में ही अद्भुत हैं तो भारत के मंदिरों से बेहतर कुछ नहीं होगा। यहां के मंदिरों की कहानियां, उनकी संरचना, मंदिरों से जुड़े चमत्कार आपको रोमांचक सफर का पूरा आनंद देंगे। ऐसे रोमांचक और अद्भुत सफर पर निकलने से पहले आपको पता होना चाहिए कि जाना कहां है और कब जाना है? देवभूमि उत्तराखंड (Uttarakhand) में आपको ऐसे कई अद्भुत कहानियों और चमत्कारी मंदिरों के बारे में जानने को मिलेगा। सुंदर पहाड़ों के बीच बसे इन मंदिरों में एक मंदिर ऐसा भी है जो साल भर बंद रहता है। यह मंदिर साल में एक दिन खास मौके पर सिर्फ 12 घंटे के लिए भक्तों के लिए खोला जाता है। तो अगर आपको साल भर बंद रहने वाले इस मंदिर के बारे में जानना है और इसके दर्शन करने हैं तो इस रोमांचक सफर के बारे में जान लीजिए।
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उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (Chamoli) में बंशी नारायण मंदिर (Banshi Narayan Temple) स्थित है। यह मंदिर काफी लोकप्रिय है। भक्त साल भर इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पाते, क्योंकि यह पूरे साल बंद रहता है। हालांकि मंदिर के कपाट खास दिन पर सिर्फ 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं। जिस दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं, श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। लोग यहां इस दिन पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण (Banshi Narayan)का आशीर्वाद लेते हैं।
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(Uttarakhand) चमोली(Chamoli) स्थित बंशी नारायण मंदिर (Banshi Narayan Temple) के कपाट श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ रक्षाबंधन के दिन के लिए खुलते हैं। इस दिन जब तक सूर्य की रोशनी रहती है, तब तक मंदिर खुला रहता है। सूर्यास्त होने पर मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। सुबह से ही दूर दराज से श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचने लगते हैं और बेसब्री से कपाट खुलने का इंतजार करते हैं।
बंशी नारायण मंदिर (Banshi Narayan Temple) से जुड़ी कथा
यह मंदिर भगवान विष्णु का है। माना जाता है कि विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर आए थे। तब देव ऋषि नारद ने भगवान नारायण की यहां पूजा अर्चना की थी। इसलिए मान्यता है कि मात्र एक दिन के लिए मनुष्यों को भगवान के दर्शन के लिए मंदिर को खोला जाता है।
एक कथा रक्षाबंधन से जुड़ी है। एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से उनका द्वारपाल बनने का आग्रह किया था। भगवान ने आग्रह मान लिया और वह राजा बलि संग पाताल तक चले गए। कई दिनों तक जब माता लक्ष्मी को जब भगवान विष्णु कहीं नहीं मिले तो उन्होंने नारद जी के कहने पर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का आग्रह किया। जिसके बाद राजा बलि विष्णु जी के साथ इसी स्थान पर माता लक्ष्मी से मिले थे।
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माना जाता है कि बाद में इस जगह पर पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। रक्षाबंधन के दिन मंदिर आने वाली महिलाएं भगवान वंशीनारायण (Banshi Narayan)को राखी बांधती हैं। इस मंदिर के पास दुर्लभ प्रजाति के फूल और पेड़ देखने को मिलते हैं। यहां का नजारा मनमोहक होता है।