आगरा। भारत को एक वैश्विक धरोधर देने वाले शंहशाह शाहजहां ने अपनी जिंदगी के अंतिम वर्ष कैद में बिताए। इतना ही नहीं उन्होंने कैद में ही अपने प्राण गंवा दिए। आगरा को मोहब्बत की निशानी देने वाले शहंशाह को उनके ही बेटे औरंगजेब ने आगरा के किले में बंदी बना लिया। मुसम्मन बुर्ज से अपनी बेगम मुमताज महल के मकबरे को देखते हुए ही उसने अंतिम सांसे ली थी। शाहजहां का यह किस्सा गाइड जब सुनाते हैं तो इस दास्तां को सुनकर पर्यटक भावुक हो जाते हैं।
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शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद उसके पुत्रों में सत्ता के लिए संघर्ष हुआ था। शाहजहां अपने बड़े पुत्र दाराशिकोह को अपने बाद गद्दी पर बैठाना चाहता था। सत्ता के लिए हुए संघर्ष में औरंगजेब की विजय हुई और उसने दाराशिकोह को मरवा दिया। शाहजहां को उसने वर्ष 1658 में आगरा किला में बंदी बना लिया। बंदी काल में शाहजहां आगरा किला स्थित मुसम्मन बुर्ज से ताजमहल को निहारा करता था। यहीं जनवरी, 1666 में उसकी मौत हो गई। बेइंतहा खूबसूरत मुसम्मन बुर्ज का निर्माण शाहजहां ने सफेद संगमरमर से करवाया था। अष्टकोणीय मुसम्मन बुर्ज यमुना किनारा की तरफ बना हुआ है। किले में सबसे अधिक ऊंचाई पर बना यह भवन पूर्व मुखी है। इसमें पच्चीकारी का आकर्षक काम है, जिसमें कीमती पत्थर जड़े हुए हैं। बुर्ज में सामने की ओर बने फुव्वारे के तो कहने ही क्या? यहां पच्चीकारी के काम को देख सैलानी चकित हो जाते हैं।
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अकबर ने बनवाया था मसम्मन बुर्ज
आगरा किला में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा लगाए गए सांस्कृतिक नोटिस बोर्ड के अनुसार मुसम्मन बुर्ज को शाह बुर्ज या झरोखा भी कहा जाता था। इसका निर्माण शहंशाह अकबर ने झरोखा दर्शन के लिए रेड सैंड स्टोन से कराया था। वो यहीं से सूर्योदय के समय सूर्योपासना किया करता था। जहांगीर भी इसका इस्तेमाल झरोखे के रूप में करता था। वर्ष 1632-40 के दौरान शाहजहां ने इसका निर्माण करवाया था। यह भवन खास महल, दीवान-ए-खास, शीश महल व अन्य भवनों से जुड़ा हुआ है। औरंगजेब की कैद में वर्ष 1658 से 1666 तक शाहजहां यहीं रहा था। एएसआइ ने पिछले वर्ष मुसम्मन बुर्ज का संरक्षण कराया था। खराब हुए संगमरमर के पैनल, सामने का टूटा हुआ तोड़ा, निकले हुए पच्चीकारी के पत्थर दोबारा लगाए गए थे। संगमरमर की टूटी हुई जाली लगाई गई थी। संरक्षण पर करीब 24 लाख रुपये व्यय हुए थे।