पावर कॉर्पोरेशन में ‘अल्ला मेहरबान तो गधा पहलवान’ वाली कहावत चरितार्थ हो गयी। कॉर्पोरेशन के एक ताकतवर अधिकारी ने विभाग के एक बाबू को पहले तो विशेष कार्याधिकारी बना दिया। फिर उसे इस पद पर नियम विरुद्ध सेवानिवृत्ति दे दी। उस लिपिक ने एक अफसर के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर जहां मोटी रकम हासिल की, वहीं पावर कॉर्पोरेशन के खजाने को भारी चपत लगी है।
इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा से भी की गयी है। हालांकि अधिकारी मामले की लीपापोती में लगे हैं।
इस मामले में जो प्रमाण मिले हैं, उनसे पता चलता है कि शक्ति भवन में जवाहरलाल लिपिक के पद पर तैनात था। बाद में पावर कॉर्पोरेशन के निदेशक (कार्मिक एवं प्रशासन) उस पर मेहरबान हो गये। जनवरी 2019 में निदेशक मंडल बोर्ड की बैठक बुलायी गयी और उसमें जवाहरलाल को विशेष कार्याधिकारी पद पर प्रमोशन की मंजूरी दे दी गयी। जवाहरलाल की इस पद पर तैनाती 29 फरवरी 2020 तक मान्य थी। कॉर्पोरेशन के कार्यों का प्रचार-प्रसार करना जवाहर लाल के दायित्व में शामिल किया गया था।
इसके बाद बड़ा खेल हुआ। चूंकि जवाहरलाल की विशेष कार्याधिकारी पद पर तैनाती 29 फरवरी 2020 तक ही थी और वह इस पद पर नियमित न होकर एक तरह से प्रतिनियुक्ति पर था, इसलिए प्रबंधन ने उसकी तैनाती की अवधि खत्म होने से महज एक दिन पहले 28 फरवरी को ही उसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गयी।
इस पर पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष अरविंद कुमार से भी हस्ताक्षर करवा लिये गये। यहां तक कि तत्कालीन एमडी को भी नजरंदाज करके फाइल सीधे अध्यक्ष के पास भेज दी गयी। दरअसल शक्ति भवन में प्रबंधन के इर्द-गिर्द रहने वाला बाबू जवाहरलाल अपने मूल पद से सेवानिवृत्त होता तो उसे कम वेतनमान के हिसाब से छोटी रकम मिलती। पर, विशेष कार्याधिकारी के पद से वीआरएस लेने पर उसका वेतनमान मैट्रिक लेवल-11 (67700-208700 रुपये) हो गया। नियमानुसार कोई भी कर्मचारी या अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति उसी पद से ले सकता है, जिस पर वह नियमित हो। साथ ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए लगभग साल भर पहले प्रबंधन को लिखित सूचना देनी होती है, लेकिन जवाहरलाल के मामले में ऐसा नहीं हुआ। ऐसा पहली बार हुआ है कि एक बाबू ने बिना नियमित हुए उच्च अधिकारी के पे ग्रेड पर वीआरएस ले ली।
गौरतलब है कि पीसीएस से आईएएस में प्रोन्नत हुए और शासन में विशेष सचिव अवस्थापना के पद पर तैनात डा. राकेश वर्मा को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी थी। चूंकि वह आईएएस अफसर बन गये थे, इसलिए उन्होंने केन्द्र सरकार को प्रार्थना पत्र भेजा। पर, जिस समय वर्मा वीआरएस लेना चाहते थे, उस समय तक वह आईएएस काडर में नियमित नहीं हुए थे। अत: केंद्र सरकार ने कह दिया कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति सिर्फ नियमित पद पर ही मिलती है इसलिए वह राज्य सरकार को प्रार्थना पत्र दें। फिर राकेश वर्मा ने आईएएस कॉडर छोड़ा और पीसीएस कॉडर में रिवर्ट होने पर ही उनको स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मिली थी। पर, जवाहरलाल के मामले में नियमों को ताक पर रख दिया गया। उन्हें विशेष कार्याधिकारी के पद से ही वीआरएस दे दी गयी।
सूत्र तो यह भी बताते हैं कि इस पर कॉर्पोरेशन के विधि अधिकारी ने असहमति भी जतायी थी, लेकिन उनकी असहमति को नजरंदाज कर दिया गया।
‘मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। यदि कुछ भी गलत हुआ है तो उसकी जांच कराकर कार्रवाई की जायेगी। वैसे तो विभाग में सभी कार्य नियमत: ही होते हैं लेकिन ऐसा हुआ है तो कार्रवाई तय है।’
एम देवराज, अध्यक्ष, पावर कॉर्पोरेशन