देश की दो आयुर्वेदिक दिग्गज कंपनियों के बीच च्यवनप्राश को लेकर छिड़ी कानूनी जंग सुर्खियों में है। दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम अंतरिम आदेश जारी करते हुए पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) को निर्देश दिया है कि वह डाबर च्यवनप्राश (Dabur Chyawanprash) के खिलाफ कोई भी “अपमानजनक” या नकारात्मक विज्ञापन न प्रकाशित करे और न ही प्रसारित।
यह आदेश डाबर इंडिया लिमिटेड (Dabur India Limited) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जो पतंजलि के हालिया विज्ञापनों को लेकर अदालत पहुंची थी। अब यह मामला न केवल व्यापारिक प्रतिस्पर्धा बल्कि ब्रांड प्रतिष्ठा की रक्षा से भी जुड़ गया है – और इसी ने इस विवाद को आम उपभोक्ता की दिलचस्पी का विषय बना दिया है।
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने डाबर की ओर से दायर अंतरिम राहत की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा, “आवेदन स्वीकार किया जाता है।” इसका अर्थ है कि अदालत ने डाबर को फिलहाल राहत प्रदान करते हुए पतंजलि (Patanjali) को किसी भी ऐसे विज्ञापन से रोक दिया है, जो डाबर च्यवनप्राश की छवि को खराब या नीचा दिखाने का प्रयास करते हों।
क्या है पूरा मामला ?
डाबर इंडिया लिमिटेड ने अदालत में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि पतंजलि आयुर्वेद की ओर से हाल ही में जारी किए गए कुछ विज्ञापन डाबर च्यवनप्राश को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। डाबर ने कहा कि ये विज्ञापन गुमराह करने वाले, तथ्यों से परे, और ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले हैं। यह मामला पहली बार 24 दिसंबर 2023 को अदालत में पहुंचा था, जब डाबर ने पतंजलि के खिलाफ विज्ञापन संबंधी शिकायत के साथ अंतरिम राहत की मांग की थी। अदालत ने उस समय समन जारी कर पतंजलि (Patanjali) से जवाब मांगा था। डाबर का कहना है कि पतंजलि का यह दावा कि केवल “वेदिक” और “आयुर्वेदिक” ज्ञान रखने वाले व्यक्ति ही च्यवनप्राश बना सकते हैं, उद्योग में पारंपरिक विशेषज्ञता और वर्षों की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को कमतर आंकता है याचिका में यह भी दावा किया गया कि पतंजलि के विज्ञापनों में अपने उत्पादों को बेहतर बताते हुए डाबर के उत्पादों को संदिग्ध और हानिकारक बताया गया है, जो कि प्रतिस्पर्धा कानून और विज्ञापन आचार संहिता का उल्लंघन है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा ने डाबर की अंतरिम राहत की मांग पर सहमति जताते हुए कहा कि, “इस स्तर पर डाबर की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाले किसी भी विज्ञापन को रोका जाना आवश्यक है।” अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि कोई कंपनी दूसरी कंपनी को बदनाम करने का अधिकार रखती है। इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई है, जब दोनों पक्षों की ओर से अधिक विस्तृत दलीलें सुनी जाएंगी। अदालत तब यह तय करेगी कि पतंजलि के विज्ञापनों पर स्थायी रोक लगाई जाए या नहीं।
डाबर का आरोप : एक सप्ताह में 6,000 से अधिक बार चला नकारात्मक विज्ञापन
डाबर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने अदालत को बताया कि पतंजलि ने पिछले साल दिसंबर में समन मिलने के बावजूद एक सप्ताह के भीतर 6,182 बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए जो डाबर च्यवनप्राश को गलत तरीके से पेश करते हैं। डाबर का आरोप है कि पतंजलि अपने विज्ञापनों में यह झूठा दावा कर रही है कि उनका च्यवनप्राश 51 से अधिक जड़ी-बूटियों से बना है, जबकि वास्तविकता में उसमें केवल 47 जड़ी-बूटियाँ हैं। डाबर ने यह भी आरोप लगाया कि पतंजलि के उत्पाद में पारा (Mercury) जैसे तत्व पाए गए हैं, जो बच्चों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। सेठी ने कहा कि पतंजलि (Patanjali) का यह दावा कि केवल वही ‘वेदिक ज्ञान’ और ‘आयुर्वेदिक समझ’ के आधार पर “असली च्यवनप्राश” बना सकते हैं, डाबर जैसे स्थापित ब्रांड की साख को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने आगे कहा, “वे हमें साधारण कहते हैं। वे बाज़ार के एकमात्र आयुर्वेद विशेषज्ञ होने का दावा करते हैं। यह पूरी तरह से नकारात्मक प्रचार है, जिसका उद्देश्य डाबर की 61.6% बाज़ार हिस्सेदारी को प्रभावित करना है।
पतंजलि (Patanjali) का पक्ष : हमारे उत्पाद सुरक्षित
वहीं, पतंजलि (Patanjali) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने अदालत में इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि पतंजलि के च्यवनप्राश में उपयोग की गई सभी सामग्रियां आयुर्वेदिक मानकों के अनुसार हैं और मानव उपभोग के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं। मेहता ने तर्क दिया कि विज्ञापन में पतंजलि ने कोई झूठा या अपमानजनक दावा नहीं किया, बल्कि अपने उत्पाद की गुणवत्ता और विशेषताओं को सामने रखा है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रांड प्रचार और प्रतिस्पर्धा के बीच एक स्पष्ट रेखा होनी चाहिए, जिसे पतंजलि ने पार नहीं किया है।
ब्रांज विवाद से बदलेगा FMCG विज्ञापन का तरीका ?
डाबर च्यवनप्राश भारत का सबसे लोकप्रिय आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सप्लीमेंट माना जाता है, जिसकी बाजार हिस्सेदारी वर्षों से मजबूत रही है। वहीं, पतंजलि आयुर्वेद ने भी पिछले कुछ वर्षों में अपनी स्वदेशी ब्रांडिंग और बाबा रामदेव की छवि के बल पर आयुर्वेदिक उत्पादों की दुनिया में अपनी मजबूत जगह बनाई है। इन दोनों कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा काफी तेज रही है, लेकिन हालिया कानूनी विवाद ने इस प्रतिस्पर्धा को कानूनी लड़ाई में बदल दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट का यह आदेश भारतीय बाज़ार में विज्ञापनों की नैतिकता और सीमाओं को लेकर एक अहम संदेश है। यह फैसला बताता है कि प्रतिस्पर्धा करते हुए कंपनियों को एक-दूसरे की साख और ब्रांड इमेज का सम्मान करना चाहिए। अब देखना यह होगा कि 14 जुलाई को कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम निर्णय सुनाता है और यह फैसला भारत के विज्ञापन जगत पर क्या प्रभाव डालता है।