• About us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Contact
24 Ghante Latest Hindi News
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
No Result
View All Result

बाजार ने समझी हिंदी की ताकत, हम भी समझें

Writer D by Writer D
14/09/2022
in शिक्षा
0
hindi diwas

Hindi Diwas

14
SHARES
176
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

हमारी अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा के प्रति निष्ठा, वचनबद्धता, ममत्व लगाव और भावनात्मक जुड़ाव प्रकट करने का अवसर है । यह हिंदी (Hindi) के प्रचार-प्रसार, विकास और विस्तार के लिए संकल्प लेने का दिवस भी है । विश्वभर में हिंदी के प्रति चेतना जागृत करने वाले हिंदी हितैषियों, लेखकों, रचनाधर्मियों और साहित्यकारों की श्रेष्ठता को सम्मानित करने पावन दिन भी है। इसके साथ ही हिंदी की वर्तमान स्थिति का सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर चिंतन और मनन करने का स्मारक दिवस भी है।

भारतेंदु जी ने कभी बड़ी गहराई में उतर कर लिखा था- ‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, पै निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल’। निसंदेह है किसी भी राष्ट्र के विकास की बुनियाद उसकी निजी भाषा की संपन्नता में ही निहित होती है। विदेशी भाषा ‘हिय के सूल’ की अभिव्यक्ति में समर्थ नहीं होती। हमारी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, हर्ष, उल्लास, दर्द और व्यथा की मूल चेतना की वास्तविक अभिव्यक्ति निजी भाषा में ही संभव सकती है। इसीलिए भाषा हमारी अस्मिता की पहचान होती है। इसमें हमारे राष्ट्र का सामूहिक स्वर मुखरित होता है। जिस प्रकार राष्ट्रीय एकता अखंडता के प्रतीक स्वरूप राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगीत, संविधान और निश्चित भू- भाग अपरिहार्य होता है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र के वैविध्य को भावनात्मक एकता के सूत्र में गुंफित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है जो व्यापक स्तर पर बोलने सुनने-समझने-लिखने- पढ़ने और राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संपर्क, राजकीय कामकाज तथा विभिन्न भाषा-भाषियों के मध्य विचारों के आदान-प्रदान की युक्ति मात्र ही नहीं होती, वरन राष्ट्र की सामासिक संस्कृति, राष्ट्रीय स्वाभिमान और आत्म गौरव की भावना भी सृजित करती है।

निसंदेह इस पृष्ठभूमि में सदियों से हिंदी (Hindi) राष्ट्रभाषा के गौरव के लिए सर्वथा उपयुक्त रही है। यह भारत की आजादी के पूर्व हिंदी मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की भाषा रही। संतों की अमृतवाणी ने सांस्कृतिक विष को पचाने का संबल दिया। देश के सभी धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों की भाषा भी हिंदी रही। स्वाधीनता संग्राम की पूर्णाहुति में हिंदी का अवदान अद्वितीय है। हिंदी प्रदेशों के साथ ही देश के दूरस्थ अंचलों में बिखरे हुए जन-जन की संपर्क भाषा भी रही। यही नहीं अंग्रेजी और चीनी के बाद हिंदी ही देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा रही है।

भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी की राष्ट्रभाषा घोषित न करते हुए अनुच्छेद 343 में लिखा कि संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा किन्तु अधिनियम के खंड 2 में यह प्रावधान किया गया कि इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा जिसके लिए इसके लागू होने से तुरंत पूर्व होता था। अनुच्छेद की धारा 3 में व्यवस्था की गई संसद उक्त 15 वर्ष की कालावधि के पश्चात विधि द्वारा (क) अंग्रेजी भाषा का अथवा अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजन के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लिखित हो। इसके साथ ही अनुच्छेद 1 के अधीन संसद की कार्यवाही हिंदी अथवा अंग्रेजी में संपन्न होगी।

26 जनवरी, 1965 के पश्चात संसद की कार्यवाही केवल हिंदी (और विशेष मामलों मैं मातृभाषा) में ही निष्पादित होगी बशर्ते संसद कानून बनाकर कोई अन्यथा व्यवस्था न करे। संविधान के अनुसार हिंदी को 1965 के बाद पूरी तरह राजकीय कार्य की भाषा बन जाना था किंतु राष्ट्रभाषा के संदर्भ में गठित खेर आयोग (1955) और पंत समिति (1957)के प्रतिवेदनों पर विचार करने के बाद 1963 में बनाए गए राजभाषा अधिनियम के अनुसार ऐसी व्यवस्था कर दी गई कि 26 जनवरी, 1965 के पश्चात भी अंग्रेजी राजकाज की भाषा बनी रहेगी। 1967 में इसे संशोधित किया गया और कहा गया कि हिंदी ही संघ की राजभाषा होगी किंतु अंग्रेजी के प्रयोग की छूट तब तक बनी रहेगी जब तक हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान मंडल अंग्रेजी को समाप्त करने के लिए संकल्प न पारित करें। स्पष्ट है कि विधेयक के अनुसार अंग्रेजी का प्रयोग अनंत काल तक किया जा सकेगा। किसी निश्चित अवधि का उल्लेख वहां नहीं है। यदि एक भी राज्य हिंदी का प्रयोग न चाहे तब भी हिंदी राजकाज की अनिवार्य भाषा नहीं हो सकेगी।

संसद में इस संशोधन विधेयक का सेठ गोविंद दास ने प्रबलता से विरोध किया। बकौल सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ‘ वे छीनने आए हैं हमसे हमारी भाषा/ उल्लुओं की जबान में/ कोयल गा सकती है तो गाए/ जिसे सिखाना हो उसे सिखाए/ हमारे पास बहुत कम वक्त शेष है /एक गलत भाषा में /गलत बयान देने से /मर जाना बेहतर है /यही हमारी टेक है। संविधान में निर्देशित 15 वर्ष की अवधि में यह अपेक्षा की गई थी कि सभी राज्य अपनी राजभाषा में कार्य करेंगे। दुर्भाग्य से यह संभव नहीं हो सका। इस राष्ट्र के आराध्य प्रभु श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था और पांडवों का 12 वर्ष का किंतु हिंदी को 15 वर्ष का वनवास मिला। आजादी के 75 वर्ष बीत गए अमृत काल प्रारंभ हो गया किंतु हिंदी का राष्ट्रभाषा के पथ पर पदासीन होने का वनवास समाप्त नहीं हुआ।

देश में 2011 की जनगणना अनुसार 43.63 प्रतिशत से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। पूरे विश्व में 80 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। किंतु अंग्रेजी के प्रति मोह और आकर्षण ने हिंदी के मार्ग में अनेक कठिनाइयां निर्मित की है। अंग्रेजी को आज भी ज्ञान की अंतरराष्ट्रीय खिड़की, रोजगार की कुंजी और सफलता का द्वार तथा ‘स्टेटस सिंबल’ माना जाता है। वास्तविकता यह है कि मानवीय गरिमा के इतिहास को नई रोशनी और दिशा देने वाले जितने भी महान ग्रंथ हैं वे अंग्रेजी में नहीं लिखे गए। अंग्रेजी साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों की भूमिकाएं भी लेटिन भाषा में लिखी गई हैं। हिंदी साहित्य किसी भी दृष्टि से अंग्रेजी साहित्य से कमतर नहीं है। सूर, तुलसी, मीरा रसखान का रचनाधर्मी संसार गुणवत्ता की दृष्टि से अंग्रेजी साहित्य से ज्यादा समृद्ध है।

भगवत गीता के एक-एक श्लोक, रामचरित मानस की एक-एक चौपाई , कबीर की साखियों और सूरदास के पदों पर अंग्रेजी का समग्र साहित्य न्यौछावर किया जा सकता है। हमारे देश की विभिन्न भाषाओं में ऐसे अनेक रचनाकार, नाटककार, कवि और व्यंग्यकार हैं जो किसी भी दृष्टि से अंग्रेजी साहित्यकार से कम नहीं हैं। फिर भी अंग्रेजी की अनिवार्यता के तिलिस्म ने हिंदी को अपने ही घर में अजनबी और प्रवासिनि बना दिया है अर्थात रानी भई अब दासी, दासी अब महरानी है। 17 अप्रैल, 1977 को धर्मयुग पत्रिका में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की निम्न पंक्तियां उल्लिखित हैं- ‘बनने चली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी। सिंहासन पर अंग्रेजी को, लखकर दुनिया हांसी। लखकर दुनिया हांसी, हिंदी वाले हैं चपरासी। अफसर सारे अंगरेजीमय अवधि हों मद्रासी। कह कैदी कविराय, विश्व की चिंता छोड़ो। पहले घर में अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो।’

वैश्वीकरण के इस युग में हिंदी (Hindi) भाषा के प्रयोग में परिवर्तन परिलक्षित हुआ है। विश्व में हिंदी के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करने तथा हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से 10 जनवरी 1975 को नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया और उसके बाद निरंतर विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। आज विश्व के 180 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।हिंदी में उच्चतम साहित्य सृजित किया जा रहा है। हिंदी अब विभिन्न भाषाओं में अनुवाद का महत्वपूर्ण माध्यम बन गई है। समाचार पत्रों की दृष्टि से भी हिंदी पाठकों की संख्या बहुत विशाल है। आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों कंप्यूटर, मोबाइल, आईपैड, व्हाट्स ऐप, टि्वटर आदि में अपेक्षाकृत हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। सोशल मीडिया, इंटरनेट और गूगल पर हिंदी लिखने, बोलने और सुनने वालों की प्रभावी उपस्थिति हो रही है।

पूरे देश में हिंदी की स्वीकार्यता व्यापक रूप से बढ़ रही है। मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, नेपाल, बर्मा, भूटान, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, इंडोनेशिया, सिंगापुर आदि देशों में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में उभर रही है। यह हिंदी की वैश्विक स्वीकृति का प्रमाण है। हिंदी की इस ताकत को बाजार भी समझने लगा है और टीवी पर विदेशी चैनल हिंदी का उपयोग कर रहे हैं तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पाद को बेचने के लिए आवश्यक सूचनाएं तथा उत्पादों के विज्ञापन आदि हिंदी में उपलब्ध करा रही हैं। वस्तुतः हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदी का विरोध किसी भारतीय भाषा से नहीं है उसका विरोध केवल अंग्रेजी से है। वह भी अंग्रेजी के पठन-पाठन से नहीं बल्कि हिंदी के स्थान पर उसके प्रयोग से है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी के लिए शोर मचाने की बजाय हिंदी को बचाने उसको समृद्ध बनाने उसके विकास विस्तार और प्रयोग के लिए निष्ठा पूर्वक कार्य करने की है।

हिंदी (Hindi) भाषा की समृद्धि और विकास के लिए विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य को हिंदी में अनुवाद करने की नई क्रांति की आवश्यकता है। धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, आलोचना साहित्य, संदेश जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं को पुनर्जीवित कर बच्चों के लिए पश्चिमी कॉमिक्स के स्थान पर भारतीय परिवेश के मौलिक और स्तरीय बाल साहित्य के सृजन की महती आवश्यकता है। कंप्यूटर शब्दावली तथा हिंदी का मानक की बोर्ड बनाना चाहिए। हिंदी हमारी अस्मिता की पहचान है और इसे उजागर करने में हमें गर्व का अनुभव होना चाहिए। वैचारिक और व्यावहारिक दृष्टि से उचित यही है कि उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए हम अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करें। हिंदी के व्याकरण और उसके भाषिक मूल्यों की रक्षा करते हुए उनकी विशेषताओं को परस्पर विश्वास और सहयोग के आधार पर आत्मसात करें क्योंकि अन्य भारतीय भाषाओं का साहित्य भी किसी भी दृष्टि से हिंदी से कमतर नहीं है। हिंदी का आकर्षक आभा मंडल और अपार वैभव ‘ एक भाषा एक देश’ के आह्वान पर हिंदी को भविष्य की विश्व भाषा बनाने की दिशा में अग्रसर हो, ताकि भारत भारती का भाल विश्व प्रांगण में गर्वोन्नत हो सके।

Tags: hindi diwashindi siwas 2022
Previous Post

जानें कब है कुँवारा पितृपक्ष, ऐसे करें श्राद्ध

Next Post

बच्चों को ले जा रही स्कूल बस पलटी, 15 छात्र घायल

Writer D

Writer D

Related Posts

CM Yogi inaugurated the Gomti Book Festival.
उत्तर प्रदेश

अच्छी पुस्तक हमारी योग्य मार्गदर्शक और जीवन का पथप्रदर्शक : योगी आदित्यनाथ

20/09/2025
Ekalavya Schools
शिक्षा

एकलव्य स्कूलों में निकली बंपर भर्तियां, इस डेट तक करें आवेदन

20/09/2025
UP Police
Main Slider

यूपी पुलिस कंप्यूटर ऑपरेटर परीक्षा की डेट जारी, ऐसे होगा एग्जाम पैटर्न

18/09/2025
Operation Kayakalp
उत्तर प्रदेश

बॉर्डर जिलों के स्कूलों का कायाकल्प, स्मार्ट क्लास और टैबलेट से शिक्षा को मिल रही नई उड़ान

16/09/2025
TET
उत्तर प्रदेश

TET की अनिवार्यता पर रिवीजन दाखिल करेगी योगी सरकार

16/09/2025
Next Post
Road Accident

बच्चों को ले जा रही स्कूल बस पलटी, 15 छात्र घायल

यह भी पढ़ें

Yuzvendra Chahal is angry with Maxwell

जानिए आखिर क्यों मैक्सवेल से नाराज हैं युजवेद्र चहल

24/04/2021
Liquor

यूपी के इस गांव में मिला शराब का कुआं, पूरा मामला जानकार रह जाएंगे दंग

11/12/2020
Media

लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण, समाज को दिखाती है आइना

21/02/2023
Facebook Twitter Youtube

© 2022 24घंटेऑनलाइन

  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म

© 2022 24घंटेऑनलाइन

Go to mobile version