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बलात्कार पर बेमतलब की राजनीति

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बलात्कार पर राजनीति

सियाराम पांडेय ‘शांत’

हाथरस में बलात्कार के बाद लड़की की मौत का मामला सुर्खियों में हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में माताओं-बहनों के सम्मान-स्वाभिमान को क्षति पहुंचाने का विचार मात्र रखने वालों का समूल नाश सुनिश्चित है।

यूपी सरकार प्रत्येक माता-बहन की सुरक्षा और विकास हेतु संकल्पबद्ध है। यह हमारा संकल्प है। वचन है। इससे बड़ा आश्वासन भला और क्या हो सकता है लेकिन इसके बाद भी  विपक्ष के कुछ नेता हाथरस दिवंगत पीड़िता के परिजनों को आश्वासन देने जा रहे हैं। पुलिस उन्हें रोक रही है। धक्का—मुक्की में वे गिर रहे हैं। राहुल गांधी गिर चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन और प्रतिमा मंडल गिर चुकी हैं। ममता ठाकुर ने तो पुलिस पर इस तरह के गंभीर आरोप लगा दिए हैं जैसा आरोप लगाने से पहले महिलाएं सौ बार सोचती हैं।

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हाथरस में सबको पता है कि धारा 144 लगी है। सांसदों को इतना पता तो है ही कि धारा 144 भीड़ एकत्र न होने देने की इजाजत नहीं देती फिर भी कुछ नेता आश्वासन देना चाहते हैं। कोरे आश्वासन से वैसे भी क्या होना —जाना है। आश्वासन की जगह लाख—दो लाख दे देते तो परिजनों का कुछ भला भी होता। कोरे आश्वासन और सहानुभूति से होता ही क्या है लेकिन नेता हैं कि मान ही नहीं रहे हैं। आश्वासन देने हाथरस जा रहे हैं। पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं। राहुल गांधी को महात्मा गांधी की जयंती से एक दिन पूर्व हाथरस नहीं जाने दिया गया था। उनकी यात्रा कार और पैदल दिल्ली से नोएडा तक ही सिमट कर रह गई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

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गांधी जयंती पर राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि ‘मैं दुनिया में किसी से नहीं डरूंगा। मैं किसी के अन्याय के समक्ष झुकूं नहीं, मैं असत्य को सत्य से जीतूं और असत्य का विरोध करते हुए मैं सभी कष्टों को सह सकूं। संकल्प अच्छा है। ईश्वर उनके इस संकल्प को पूरा करे । गांधी जयंती से एक दिन पहले भी उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा था। दूसरे दिन से सरकार ने सीमित संख्या में विपक्ष को पीड़िता के गांव जाने की इजाजत भी दे दी।

दोषी पुलिस अफसरों पर कार्रवाई भी की और घटना की सीबीआई जांच के आदेश भी दिए लेकिन इसके बाद भी हाथरस जिले में स्थित पीड़िता के गांव में विपक्षी दलों का जाना थमा नहीं है। अति उत्साही नेता पुलिस से उलझ भी रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जिन्हें उत्तर प्रदेश का विकास रास नहीं आ रहा है, वे राजनीतिक दल, स्वयंसेवी संगठन उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में जुटे हैं। विषयांतर हुएबगैर हम केवल राजनीतिक आश्वासनों की बात करना चाहेंगे।

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विचारणीय तो यह है कि आश्वासन कहीं से भी दिया जा सकता है, कभी भी दिया जा सकता है।आज का युग डिजिटल है। आश्वासन ही नहीं, आर्थिक सहयोग भी दिया जा सकता है। जब पूरी राजनीति  ट्वीट और वेबिनार पर हो सकती हैं। चुनावी रैलियां तक वेबिनार से हो रहे हैं। बड़े—बड़े सेमिनार और समारोह वेबिनार पर हो रहे हैं तो आश्वासन देना कौनसी बड़ी बात है। आश्वासन देने के चक्कर में कोरोना अपनी चपेट में न ले ले, इस लिहाज से भी इससे मुफीद रास्ता दूसरा नहीं है। आश्वासन देने के लिए पूरा देश हैं, जहां—जहां इस तरह की घटना होती है, हर जगह विपक्ष को जाना चाहिए, आश्वासन देना चाहिए। दुखियों के आंसू पोंछने चाहिए  लेकिन वह एक ही विंदु पर आत्मकेंद्रित क्यों हो जाता है, मंथन तो इस पर होना चाहिए।

सवाल यह है कि आश्वासन ट्वीट पर दिया तो जा सकता है लेकिन मौके पर जाकर आश्वासन देने की बात ही जुदा है। वह बात नहीं बनती, वह अनुभूति नहीं होती जो आष्वासन देते वक्त होनी चाहिए। देने वाले को भी, लेने वाले को भी। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा। राजनीति का मोर तो नाचता भी है और दिखता भी है। राजनीति में जो दिखता है, वही तो बिकता है। राजनीति का आदमी उसी को फल खिलाता है जो उसका प्रचार करे। किसी गूंगे को फल खिलाने पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करता क्योंकि गूंगा व्यक्ति अंदर ही अंदर रसदार फल खाकर खुश तो हो सकता है लेकिन उसे दूसरों को बता नहीं सकता। दूर से दिया गया आश्वासन भी कुछ इसी तरह का है और जब कहीं पर निगाहें—कहीं पर निशाना वाली बात हो तो इन आश्वासनों की अहमियत और भी बढ़ जाती है।

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आश्वासन देना है तो लाठी भी खानी पड़ेगी, गिरना भी पड़ेगा। हरामखोर और नॉटी का अंतर न समझने वाले शिवसेना नेता संजय राउत ने बजां फरमाया है कि राहुल गांधी इंदिरा गांधी के पोते और राजीव गांधी के बेटे हैं। दोनों ने देश हित में अपना सर्वोच्च बलिदान किया है। इसलिए उनके निरादर की, उनका गिरेबान पकड़ने की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती। किसी सांसद को पीड़िता के घर जाने से रोकना तो लोकतंत्र से बलात्कार है। मुंबई में किसी को ऐसा करने की इजाजत वे देते हैं क्या? कभी दिया है क्या? जवाब ना में ही मिलेगा।

सवाल यह है कि दो—तीन रोज पहले ही मुंबई में एक लड़की को अगवा कर उसके साथ तीन लोगों ने बलात्कार किया। कुछ दिन पहले क्वारंटीन सेंटर में एक महिला से बलात्कार हुआ। हालांकि मुंबई में इस तरह के बलात्कार आम तौर पर होते ही रहते हैं, तब प्रियंका वाड्रा को एक बेटी का मां होने का अहसास क्यों नहीं हुआ। तब राहुल गांधी पीड़िता और उसके परिजनों से क्यों नहीं मिले। राजस्थान के बारा में दो बहलों के साथ तीन लोगों ने गैंग रेप किया। अजमेर में एक महिला के साथ दुष्कर्म की घटना हुई, राहुल गांधी वहां क्यों नहीं गए। पूरे देश में बलात्कार की 87 घटनाएं रोज होती हैं। फिर हाथरस ही क्यों? जबकि इस मामले में दुष्कर्म प्रमाणित नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल में तो पंचायत चुनाव में बलात्कार को चुनावी हथियार बना लिया गया था। वहां भी बलात्कार की घटनाएं कम नहीं होती। आईना दिखाने का मतलब यह नहीं कि बलात्कार की आलोचना न हो लेकिन वह स्वस्थ होनी चाहिए और उसमें भेदभाव की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। बलात्कार संसार का सबसे घृणित अपराध है। यह किसी महिला बच्ची और युवती को जीवित मार देने जैसा है जिसका दंश वह जीवन भर झेलती है।

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हाल ही में योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट ने निर्णय लिया था कि महिलाओं से छेड़छाड़ और दुष्कर्म करने वालों और उनके मददगारों के पोस्टर चौराहों पर लगाए जाएंगे लेकिन सरकार के ऐसा करने से पर्व ही विपक्ष ने लखनऊ और आजमगढ़ में भाजपा के उन नेताओं के पोस्टर चिपका दिए जो या तो जेल में हैं या जमानत पर जेल से बाहर हैं।

पुलिस का काम पुलिस को ही करने दिया जाना चाहिए। यही उपयुक्त भी है। पुलिस के काम में हस्तक्षेप कर हम उससे बेहतर कार्य परिणाम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? अच्छा होता कि विपक्ष सरकार, पुलिस और अदालत पर यकीन करता। बलात्कार पर बेवजह की राजनीति ठीक नहीं है। सभ्य समाज  और इस देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। विपक्ष को देशहित में कुछ रचनात्मक सोचना और करना चाहिए।

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