घर के निर्माण का कार्य शुरू कराने से पहले भूमि पूजन और नींव पूजन किया जाता है। जब भूमि पूजन हो जाए तब सबसे पहले उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में नल और भूमिगत टैंक का काम पूरा करना चाहिए। इसके बाद इसी नल के पानी से घर के निर्माण का काम शुरू करना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से घर के निर्माण कार्य के दौरान कभी पैसों की कमी नहीं होती है।
भवन निर्माण में प्रयुक्त होनेवाली सामग्री जैसे, सीमेंट, ईंट, पत्थर, लोहा, टाइल्स आदि चीजें भूखंड के दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य भाग में रखें। उत्तर-पूर्व या ईशान कोण का प्रयोग इस काम के लिए कभी न करें।
नींव खोदना हमेशा प्लॉट के ईशान कोण (उत्तर और पूर्व का कोना) से शुरू करना चाहिए। ईशान कोण से शुरू करके वायव्य कोण यानी उत्तर और पश्चिम के कोने तक जाना चाहिए। दूसरी तरफ ईशान से अग्नेय कोण यानी पूर्व और दक्षिण के कोने तक नींव खोदनी चाहिए। अंत में अग्नेय कोण से खुदाई शुरू कर नैऋत्य पर खत्म करें।
नींव की भराई का काम नैऋत्य कोण (दक्षिण पश्चिम का कोना) से शुरू करें और फिर अग्नेय कोण तक ले जाएं। इसके बाद वायव्य कोण से भराई का काम शुरू करें और नैऋत्य कोण तक ले जाएं। इसके बाद अग्नेय कोण से ईशान की तरफ ले जाएं और फिर अंत में वायव्य कोण से ईशान की तरफ नींव की भराई का काम करें।
भवन की दीवारों का निर्माण कार्य भी नींव के निर्माण के क्रम में ही करना चाहिए। जब शाम के समय चुनाई का काम बंद होने को हो तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उत्तर और पूर्व दिशा की दीवारें कभी भी दक्षिण-पश्चिम की दीवारों से ऊंची ना हो।
भवन का निर्माण कार्य कराते समय ईशान कोण को हमेशा गहरा या नीचा रखना चाहिए और नैऋत्य कोण यानी दक्षिण और पश्चिम का कोना हमेशा बाकी कोनों से ऊंचा होना चाहिए।