कृषि कानून को लेकर जारी देशव्यापी विरोध के बीच सोमवार को लखनऊ में ऐसे ही प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने निकलने से पहले ही घर में नजरबंद किये जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे सरकार के पागलपन का प्रतीक बताया है।
श्री जैन ने अपने और दूसरे कांग्रेसी नेताओं को घर में ही नजरबंद किये जाने के प्रशासन के कदम पर कड़ा विरोध जताते हुए सोमवार को कहा कि हमें किस कानून की, किस धारा के तहत नजरबंद किया गया है। हमें बतायें कि हमने किया क्या है। न तो हमने कोई विरोध प्रदर्शन किया और न ही किसी कानून का उल्लंघन फिर किस धारा के तहत हमें नजरबंद किया गया है। इस तरह के काम सरकार के पागलपन के ही प्रतीक हैं। हम किसान विरोधी कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से लखनऊ में प्रदर्शन करने जा रहे थे और इसके बाद राज्यपाल को ज्ञापन सौंपना था लेकिन लखनऊ में प्रदर्शन तो दूर हमें झांसी में ही हमारे घर में निकलने से पहले ही ऐसे नजरबंद कर दिया गया जैसे हम कोई बड़े अपराधी हों। इस तरह की नजरबंदी से हमारी सामाजिक छवि को भी छूमिल करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है और सबसे बड़ी बात है कि यह सब तब हो रहा है जब हमने अभी तक कुछ किया ही नहीं।
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उन्होंने केंद्र और प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि ऐसे कदम बताते हैं कि यह तानाशाहों की सरकार है जिसमें किसी तरह के विरोध की इजाजत नहीं दी जाती। विरोध की आवाज को दबाने के काम में पूरी सरकारी मशीनरी को झोंक दिया जाता है। यह नया कृषि कानून पूरी तरह से किसान विरोधी हैं और यह बात देश के अन्नदाता को भी समझ आती है ,यही वजह है कि पूरे देश में किसान इसके खिलाफ है । बिना बहस के इतने महत्वपूर्ण विधेयकों को जिस तरह से राज्यसभा में पास कराया गया उसकी बानगी इस सरकार से पहले किसी विधेयक को पारित कराने के लिए किसी दल की सरकार के समय देखने को नहीं मिली है।
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सरकार दावा करती है कि यह किसानों के हित में लाया गया कानून है तो देश भर का किसान इनके विरोध में सड़कों पर क्यों है इसका जवाब है इस सरकार के पास। न्यूनतम समर्थन मूल्य जो किसान को अपनी उपज को लेकर एक सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराता है उसका जिक्र तक इस कानून में नहीं है । यदि किसान इसके जारी रहने की गारंटी सरकार से लिखित में चाहता है तो अन्नदाता के हित में ऐसा कर क्यों नहीं किया जाता । क्यों यह सरकार और इनके मुखिया मात्र मौखिक आश्वासन देने में लगे हैं। इनकी किस बात पर भरोसा किया जाएं इन्होंने काले धन की विदेशों से वापसी का दावा किया था ऐसा कुछ नहीं हुआ, ढाई करोड लोगों को रोजगार देने की बात कही थी आज आलम यह है कि सरकारी नौकरियों में भर्ती ही बंद की जा रही है,नोटबंदी से कोई बड़ा फायदा हुआ नहीं है तो ऐसे में जब इन्होंने अपनी कही किसी बात को पूरा नहीं किया तो इस नये आश्वासन को किसान कैसे मान लें। इनका एकमात्र छिपा एजेंडा जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटे रखना और सरकारी संपत्तियों का निजीकरण कर लोगों की मेहनत की कमाई की लूट करना है।
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इस सरकार के समय राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों की गरिमा भी तार तार हुई हैं जिस किसान विधेयकों को लेकर देश में इतना विरोध हो रहा है लेकिन इनके कठपुतली राष्ट्रपति ने उन पर तुरंत ही हस्ताक्षर कर कानून बना दिया। उन्होंने एक बार भी आमजनता के इस जबरदस्त विरोध का संज्ञान लेते हुए पुनर्विचार की बात नहीं की जबकि प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए विवादित विधेयक को तीन तीन बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजा था। अगर इनकी मंशा साफ है तो एमएसपी जारी रहने का प्रावधान यह कानून के तहत क्यों नहीं कर रहे हैं। यह बताता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका है।
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यह किसान विरोधी कानून हैं और कांग्रेस इस मामले में किसानों के साथ खड़ी है और उस समय तक खड़ी रहेगी जब तक सरकार इन काले कानूनों को वापस नहीं ले लेती। किसानों के हित में कांग्रेस लगातार आंदोलन कर रही है और करती रहेगी। मोदी सरकार को इस काले कानून को वापस लेना ही होगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री के अलावा झांसी में कांग्रेस के शहर अध्यक्ष अरविंद वशिष्ठ, उपाध्यक्ष राजेन्द्र रेजा ओर सचिव जितेन्द्र भदौरिया को भी घर में नजरबंद कर दिया गया है। इन सभी नेताओं के घर पर फोर्स को तैनात किया गया है जिससे वे लखनऊ में आज हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल होने लिए न जा सकें।