लाइफस्टाइल। जब तक कोरोना वायरस का कहर दुनिया से मिट नहीं जाता तब तक लोग इससे निजात पाने के लिए हर संभव कोशिश करते रहेंगे। कोरोना वायरस को खत्म करने का अब तक कोई ठोस इलाज नहीं आया है। ऐसे में वैक्सीन ही एक मात्र विकल्प है। वैक्सीन बनाने के लिए दर्जनों देश लगे हुए हैं। रूस ने सबसे पहले वैक्सीन का रजिस्ट्रेशन करा कर सितंबर से इसे आम लोगों में देने की घोषणा कर दी है, लेकिन दुनिया को रूस पर भरोसा नहीं है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन, भारत समेत कई देश को वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। हालांकि इस वैक्सीन को आम आदमी तक पहुंचने के लिए अब भी कम से कम छह महीने का समय और लगने की उम्मीद है। ऐसे में वैज्ञानिकों की कोशिश लगातार यही है कि कोरोना पर विजय प्राप्त करने के लिए कुछ न कुछ नई चीजें जल्दी आ जाए।
इसी कड़ी में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नोजल स्प्रे बनाया है। इस नोजल स्प्रे को बाहर जाने के दौरान नाक में लेने से कोरोना संक्रमण का खतरा कई गुना कम हो सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह नोजल स्प्रे फेस मास्क या पीपीई किट से ज्यादा सुरक्षित है। सैन फ्रैंसिस्को में कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐरो नैब नाम का यह नोजल स्प्रे बनाया है। इसे इनहेलर की तरह भी यूज किया जा सकता है। उम्मीद है कि यह इनहेलर कोरोना से बचने के लिए शॉर्ट टर्म टूल की तरह काम करेगा और जब तक वैक्सीन नहीं आ रही है तो लाखों लोग इस इनहेलर की वजह से कोरोना से बचने में कामयाब होंगे।
वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐरोनैब में नैनोबॉडीज मौजूद रहती है। यह नैनोबॉडीज एंटीबॉडी की तरह इम्यून प्रोटीन है। यह प्रोटीन भेड़, ऊंट आदि जानवरों में पाया जाता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस एंटीबॉडीज को संश्लेषित किया जा सकता है। इसमें इंजीनियरिंग करके इसे सार्स-किवड 2 के खिलाफ कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
लैब टेस्ट में पाया गया कि इसमें बहुत बारीक प्रोटीन पाया जाता है। इतना छोटा कि यह एंटीबॉडी के आकार का एक चौथाई है। इसलिए इसे बड़े पैमाने पर जल्दी में बनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब तक वैक्सीन नहीं आती तब तक इस इनहेलर का इस्तेमाल कोरोना के खिलाफ लड़ाई में किया जा सकता है।हालांकि इसका अभी और परीक्षण होन बाकी है लेकिन वैज्ञानिकों को भरोसा है कि जल्दी ही इसका परीक्षण सफल हो जाएगा।