लखनऊ। यूपी के विधानसभा चुनावों में इस बार प्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक चौधरी अजित सिंह, भारतीय जनता पार्टी के नेता लालजी टंडन, समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की कमी खलेगी।
ये सभी दिग्गज चुनावी लड़ाई में अपनी पार्टी और उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं के बीच लहर पैदा करने के लिए जाने जाते थे और इनके बयानों और राजनीतिक प्रभावों के भी हमेशा निहितार्थ निकाले जाते रहे हैं। इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इनकी हर गतिविधि पर बारीक नजर रखते थे।
इस बार के चुनावों में इनके न होने की कमी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को जरूर खलेगी। हालांकि, इन नेताओं की अगली पीढ़ी उनकी अनुपस्थिति में खुद को साबित करने के लिए सक्रिय दिख रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने राज्य में अपनी पार्टी के लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को एकजुट किया। पश्चिमी उप्र में उनकी मजबूत पकड़ और स्वीकार्यता रही और उनके आशीर्वाद से 2017 में अलीगढ़ जिले की उनकी परंपरागत अतरौली सीट से उनके पौत्र संदीप सिंह ने जीत सुनिश्चित की और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बने। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा के सांसद हैं। कल्याण सिंह के निधन को भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति बतायी जा रही है।
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इसी तरह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में रहे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी व लखनऊ में भाजपा का एक प्रमुख चेहरा माने जाने वाले बिहार और मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और उप्र सरकार के पूर्व मंत्री लालजी टंडन की भी कमी महसूस की जायेगी। टंडन का 21 जुलाई, 2020 को निधन हो गया था। लालजी टंडन के जीवित रहते उनके पुत्र आशुतोष टंडन राजनीति में सक्रिय हुए और 2017 में योगी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री भी बने, लेकिन इस बार पिता की अनुपस्थिति में उन्हें चुनाव लड़ना है। लालजी टंडन लखनऊ की लगभग सभी सीटों मजबूत पकड़ के लिए जाने जाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया।
उधर, राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह पहला चुनाव होगा जब इसके अध्यक्ष जयंत चौधरी अपने पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह की अनुपस्थिति में अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगे। हालांकि, चौधरी अजित सिंह ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार का स्वाद चखा, लेकिन जाट वोट बैंक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर उनकी पकड़ को राजनीति में कभी भुलाया नहीं जा सकता। पार्टी के नेता मानते भी हैं कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग अजीत सिंह का सम्मान करते हैं। इस बार वे जयंत चौधरी का नेतृत्व स्थापित करके उन्हें श्रद्धांजलि देंगे और सुनिश्चित करेंगे कि अगली सरकार सपा के साथ बने। इस बार रालोद ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है और जयंत चौधरी राज्य में अपनी पार्टी की उपस्थिति फिर से दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं।
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समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता रहे पूर्व सांसद अमर सिंह का एक अगस्त, 2020 को निधन हो गया था, जबकि 27 मार्च, 2020 में मुलायम सिंह यादव के करीबी विश्वासपात्र बेनी प्रसाद वर्मा का निधन हुआ था। अति पिछड़ी कुर्मी बिरादरी के सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले बेनी वर्मा और अपने चुटीले बयानों और चुनावी प्रबंधन से राजनीति में हलचल पैदा करने वाले अमर सिंह भी इस बार चुनावी परिदृश्य में नहीं दिखेंगे।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य बेनी प्रसाद वर्मा ने 2009 में सपा छोड़ दी थी। 2016 में फिर उसमें शामिल हुए और पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। उनके बेटे राकेश वर्मा सक्रिय राजनीति में हैं और बाराबंकी से सपा के संभावित उम्मीदवार हैं। वह राज्य सरकार में एक बार मंत्री भी रह चुके हैं। रायबरेली के दिग्गज नेता अखिलेश सिंह की अनुपस्थिति में रायबरेली सदर सीट जीतने के लिए उनकी बेटी अदिति सिंह को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है। वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। अखिलेश के जीवित रहते ही अदिति रायबरेली से 2017 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गयी थीं।