आज भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष षष्ठी है जिसे हल षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इस दिन को ‘हलषष्ठी’, ‘ललई छठ’ या ‘हरछठ’ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मूसल हैं। इसी कारण उन्हें ‘हलधर’ भी कहा जाता है।
मान्यता है कि जो महिलाएं हल षष्ठी व्रत करती है उनके परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके अलावा हल षष्ठी व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा-विधि।
हलषष्ठी व्रत का महत्व
‘हलषष्ठी’ व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। इस व्रत से जुड़ी कई कहानियां भी प्रचलीत है। कहा जाता है कि जो महिलाएं हलषष्ठी व्रत को पूरे मन और सच्ची आराधना के साथ करती है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन हल पूजा का विशेष महत्व है।
हलषष्ठी व्रत की पूजा-विधि
सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े धारण कर हलषष्ठी व्रत का संकल्प लें
हलषष्ठी व्रत में महुआ के दातुन से दांत साफ किया जाता है।
इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना वर्जित माना गया।
यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों को विशेष तौर पर करना चाहिए।
इस दिन दिनभर निर्जला व्रत रखने से अधिक लाभ मिलता है।
इस व्रत को हलषष्ठी, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ और खमर छठ भी कहा जाता है।