कानपुर। हिस्ट्रीशीटर विकास के गैंग में दो बर्खास्त सिपाहियों के शामिल होने की सूचना भी एसटीएफ को मिली है। यह दोनों घटना के दिन यहां मौजूद नहीं थे मगर पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर इन्होंने विकास की कई बार मदद की थी। इसके अलावा अवैध असलहा कहां से और कैसे मिलेंगे, इसकी जानकारी भी दोनों समय-समय पर देते रहते थे। विकास की सीडीआर में एसटीएफ को दोनों के नम्बर मिले हैं। इनके बारे में और जानकारी जुटाई जा रही है।
दुबे के एनकाउंटर के बाद पुलिस उसके नेटवर्क को लेकर पड़ताल में लगी है। आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपित 11 गुर्गे फरार हैं। उनकी तलाश में एसटीएफ और पुलिस की टीमें लगातार काम कर रही हैं। इसी दौरान विकास की सीडीआर पर काम करने वाली एसटीएफ टीम को दो संदिग्ध नम्बर मिले। इन नम्बरों की पड़ताल की गई तो यह दो बर्खास्त सिपाहियों के निकले। जिन्हें सालों पहले फोर्स से निकाल दिया गया था। वर्तमान में इन दोनों के पते पुलिस के हाथ नहीं लग सके हैं मगर दोनों की विकास से कई बार बात हुई है इसके बारे में जानकारी मिली है।
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एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक दोनों सिपाही घटना के दिन यहां मौजूद नहीं थे। न ही उसके बाद विकास से इनकी बातचीत का कोई रिकॉर्ड मिला है। हालांकि घटना से पहले कई बार इन लोगों की बातचीत के रिकॉर्ड मिले हैं जिन्हें वेरीफाई कराया जा रहा है। दोनों बर्खास्त सिपाहियों के बारे में जानकारी मिली है कि वह विकास से कई साल से सम्पर्क में थे। पुलिसिया हथकंडों के बारे में यह दोनों भी विकास से सूचनाएं साझा करते थे। इसके अलावा अपने नेटवर्क के जरिए वह दुबे को अवैध असलहा दिलवाने का भी काम करते थे। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इन दोनों की तलाश जारी है। इनकी गिरफ्त में आने के बाद विकास के नेटवर्क के बारे में और भी तथ्यों के बारे में जानकारी होगी।
विकास दुबे के साथियों पर कसा और शिकंजा
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद कानपुर के ब्रह्मनगर में रहने वाले कारोबारी जय बाजपेई और करीबियों पर शिकंजा कसने लगा है। चंद वर्षों में चार हजार रुपए की नौकरी से अरबपति बने जयकांत की संपत्तियों, बैंक खातों और नकद लेन-देन की जांच आयकर विभाग की बेनामी विंग (शाखा) और आयकर निदेशालय (जांच) ने शुरू कर दी है।
आय के स्रोत की जांच होगी
जय की कानपुर में खरीदी गई सम्पतियों के स्रोत क्या हैं, इसकी जांच अलग टीम कर सकती है। साथ ही 50 हजार रुपए सालाना कमाने वाला व्यक्ति 7 साल में 12 लाख का आईटीआर कैसे भरने लगा, इसे भी जांच में शामिल किया गया है। आयकर विभाग उन जांच रिपोर्टों पर भी गौर कर सकता है जो स्थानीय प्रशासन की ओर से बीच में कराई गई थी।