इटावा। जिले में हिमालयन गिद्दो ने अपनी मौजूदगी से वन विभाग अमले के साथ-साथ पर्यावरणीय को भी गदगद कर दिया है। असल में बलरई के बाद भरथना ब्लाक क्षेत्र के ग्राम नगला गिरंद के समीप खाली पड़े ऊसर की जमीन में करीब 18 के आसपास हिमालयन गिद्दो के देखे जाने के बाद आस-पास के गांव में कौतूहल है। हर कोई गिद्धों को देखने के लिए खेत खलियान की ओर जा पहुंचा। स्थानीय ग्रामीणों की माने तो यह गिद्ध धूप निकलते ही ऊसर में मृत पड़े जानवर के शव के आसपास आसमान में मंडराते हुए नजर आ रहे थे और धीरे-धीरे एक-एक कर जमीन पर उतर कर मृत जानवर के समीप जा पहुंचे। जिन्हें देखने के लिए आसपास के कई ग्रामो के लोग खेतों की ओर चल दिए।
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गिद्धों के होने की जानकारी जैसे ही वन विभाग के वन दरोगा का लक्ष्मी नारायण तथा वनरक्षक सुनील को मिली तो वह भी नगला गिरंद के समीप जा पहुंचे। हिमालयन गिद्ध को देख वनरक्षक की टीम उन्हें अपने अपने मोबाइलों में कैद करने लगी। इसी दौरान वह अपने को असुरक्षित महसूस कर के पास के खेतों के पीपल के पेड़ पर क्रमबद्ध तरह से बैठा हुआ देखा जा सकता है।
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पहली दफा साल 2016 के दिसम्बर माह मे हिमालयन गिद्ध को चंबल घाटी मे देखा गया था तब इसकी मौजूदगी को लेकर विभिन्न स्तर पर खोजबीन और पड़ताल की गई थी क्योकि इससे पहले कभी भी हिमायलन गिद्ध को देखा नही गया था इस कारण यहाॅ के अधिकारियो को इसकी पहचान मे खासी कठिनाई हुई। वर्ष 2016 मे लखना रेंज के ही सारंगपुरा के बीहडो मे 23 दिसम्बर को इसी प्रजाति का एक विशाल गिद्ध मिला था जो चलने फिरने से काफी लाचार था। माना जा रहा है कि उसको जंगली जानवरो के झप्पटे के शिकार हो जाने के बाद चोट आई थी। तब यह माना गया था कि हिमालयी इलाके से भटक कर चंबल में यह गिदद आ पहुंचा है लेकिन 25 दिसंबर को इसकी मौत हो गई थी। मौत का शिकार हुआ यह गिद्ध करीब 8 फुट लंबा और 15 किलो वजनी था।
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23 दिसंबर को यह गिदद बकेवर इलाके के सांरगपुरा गांव के पास देखा गया जो चलने फिरने की स्थिति में नहीं था जिसको वन विभाग के कर्मियों ने अपने कब्जे में लेने के बाद चिकित्सकों से इसका उपचार करवाया लेकिन इसकी उस स्थिति में किसी भी शक्लो-सूरत में सुधार नहीं हुआ और उसकी मौत हो गई।
इसके बाद 2017 मे 6 जून को लवेदी थाना क्षेत्र के महात्मा गांधी इंटर कालेज परिसर मे मिले दुर्लभ प्रजाति के गिदद भी हिमालयन गिदद से मेल खाता दिखा। यह गिद्ध करीब 6 माह से अधिक का नहीं था। चलने मे असमर्थ मिले इस गिद्ध के इसी इलाके मे कही जन्मे का अनुमान लगाया गया क्योंकि जितना छोटा यह गिद्ध है वह हिमालियन क्षेत्र से भटक कर चंबल इलाके तक नहीं आ सकता है।
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इससे यह निश्चित होता हुआ दिख रहा है कि हिमालियन गिद्ध की फैमली ने चंबल मे अपना घोंसला बनाया हुआ है, जिसकी यह प्रजाति यहाॅ पर देखी जा रही हो। इटावा के आसपास पर्यावर्णीय दिशा में काम करने वाले सोसाइटी फार कंजर्वेशन संस्था के महासचिव डा.राजीव चौहान का कहना है कि सर्दी के मौसम मे हिमालय क्षेत्र से गिद्धों का झंड चंबल में आ गया है जिसको इस इलाके मे लगातार देखा जा रहा है। गिद्धों की गणना मे भी इनको देखा जाना कही ना कही खुशी का एहसास कराया जाना माना जा सकता है। इनकी मौजूदगी इस लिहाज से भी बेहतर कही जायेगी क्योंकि विलुप्तता के बाद गिददो को कम उम्र के बच्चे तो पहली दफा इनको देख कर के आंनदित हो रहे होगे।