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जल संरक्षण की परंपरा में है जल संकट का हल

Water Crisis

Water Crisis

जय प्रकाश पांडेय

पृथ्वी के 2.4 फ़ीसदी क्षेत्रफल पर विश्व की 17% आबादी का पोषण करने वाला भारत जल संसाधन की प्रचुरता का देश है। यहां कृषि-कार्य, औद्योगिक इकाइयों में एवं पेयजल-गृह कार्य के लिए लगभग 800 अरब क्यूबिक घनमीटर जल (Water) की वार्षिक मांग होती है। जबकि औसत मानसून इस मांग का पांच गुना लगभग 4000 अरब क्यूबिक घनमीटर वर्षा जल उपलब्ध कराता है। आजादी के 70 वर्षों बाद भी जल संचय की अक्षमता के कारण अच्छे मानसून की मूसलधार वर्षा का 85% जल नदियों में उफनते हुए लगभग 13 से अधिक राज्यों में बाढ़ की तबाही पैदा करते हुए समुद्र में चला जाता है। आज हमारा देश अपनी सकल जलापूर्ति के 70% हिस्से के लिए भूजल दोहन पर निर्भर है ।

अब यह भूजल भंडार भी डार्क -जोन तब्दील हो रहा है।यह वर्तमान जल संकट ( water crisis) राजनीतिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता एवं दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव को भी दर्शाता है। जल संकट ( water crisis) की भीषणता का अनुमान संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है जिसके अनुसार दुनिया का हर दसवां प्यासा व्यक्ति भारतीय है।

भारत का जल संकट ( water crisis) वर्षा- जल के संचय से जुड़ा है। हमारा राजनीतिक नेतृत्व बड़े,मझोले बांधों को ही जल संचय का मुख्य उपाय मानता है । मौजूदा समय में कुल 5200 बड़े तथा मझोले बांध है,जिनकी सकल जल भंडारण क्षमता 257 अरब घन मीटर है। ध्यातव्य है केंद्रीय जल आयोग के अनुसार औसतन इस सकल जल भंडारण क्षमता का 60 से 66% ही हासिल होता है। शत-प्रतिशत जल भंडारण क्षमता हासिल करने पर भी देश की सकल जल मांग की पूर्ति के लिए अभी हमें पांच गुना अधिक बांधों की जरूरत होगी ।

जबकि बांध निर्माण में अधिक धन- व्यय, पर्यावरणविदो के विरोध एवं न्यायिक हस्तक्षेप के कारण बड़ी परियोजनाएं विलंबित हो जाती है। अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल संचयन क्षमता 2000 घनमीटर होनी चाहिए। यह वार्षिक जल संचयन क्षमता आस्ट्रेलिया में 3223 घनमीटर प्रति व्यक्ति है , अमेरिका में 2193 घनमीटर,ब्राजील में 2632 घनमीटर,चीन में 416घनमीटर तो भारत में 200 घनमीटर प्रति व्यक्ति जल संचयन क्षमता है। यही कारण है कि देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगातार गिरती जा रही है 1951 में देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 5177 घन मीटर थी जो वर्तमान में 1300 घन मीटर प्रति व्यक्ति रह गई है।

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जाहिर है भारतीय संदर्भ में 1000 घन मीटर प्रति व्यक्ति से कम जल उपलब्धता वाटर स्ट्रेस्ड की स्थिति मानी जाती है। वर्षा जल के संचय की अक्षमता के साथ ही जल प्रयोग के स्तर पर निर्मम बर्बादी भी इस संकट को बढ़ा रही है। भारत में कुल जल खपत का 80% कृषि कार्य में लगता है यहां भी अब वैज्ञानिक सिंचाई के कारण लगभग 60% जल बर्बाद हो जाता है। अर्ध शुष्क एवं शुष्क क्षेत्रों में आर्द्रताग्राही फसलों (गन्ना-चावल) के आग्रह से भूजल के दोहन की प्रक्रिया तीव्र हुई है। नगरों में बोतलबंद पानी एक लाभदाई व्यापार बन गया है। 6000 से अधिक रजिस्टर्ड कंपनियां इस व्यापार में संलग्न है। औसतन प्रति कंपनी प्रति घंटे 20000लीटर भूजल उलीच कर बोतलबंद कर रही हैं। शहरों में लोकप्रिय हो चुका ‘आरो’ जल के शुद्धिकरण की प्रक्रिया में 70% जल बर्बाद करता है।

जल संरक्षण की संकल्पना हमारी लोक संस्कृति का प्रस्थान बिंदु है।नदी एवं सरोवरों में सामूहिक स्नान की परंपरा ग्रामीण भारत के नदी, नीर के प्रति निष्ठा की प्रतीक है। हमारे धर्मशास्त्रों। पुराणों) में ‘पूर्तधर्म’ की विस्तृत सूची में जोहड़,तालाब,सरोवर एवं कुंए के निर्माण तथा उनके संरक्षण को मोक्षदायी धार्मिक कर्तव्य माना गया है। यही कारण है कि व्यापारियो ने धनदान से, ग्रामवासियों ने अपने श्रमदान से भारत में दो लाख से अधिक जल स्रोतों (जोहड़, सरोवर तालाब एवं कूए) का निर्माण किया। देसी शासकों ने भी जल संचय पर बल दिया । मौर्य-गुप्त काल में निर्मित राजकोट से निर्मित जल स्रोतों में सौराष्ट्र की ‘सुदर्शन झील’,जैसलमेर का गड़ीसर, महोबा के सात तालाबों की श्रृंखला, तथा भोपाल के भोजसर जल संचय की परंपरा के साक्ष्य है। सुदूर दक्षिण के महान चोल राजाओं ने ग्राम स्वशासन में एक जल समिति(एरिवरियम) गठन कर तालाबों के निर्माण एवं उनके संरक्षणके लिए स्थानीय सहभागिता पर आधारित एक लोकतांत्रिक ढांचा विकसित किया। लेकिन विकास के आधुनिक मॉडल में हमने प्रगति के नाम पर परंपरा से नाता तोड़ लिया। पंपिंग सेट, ट्यूबवेल की तकनीक इजाद कर तालाब, जोहड़, सरोवर के निर्माण एवं संरक्षण का विकल्प भूगर्भीय जल के दोहन के रूप में उपलब्ध कर लिया। परिणामत: आज हम अपना 72% भूगर्भीय जल समाप्त कर चुके हैं।

जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्र में हर घर में नल कनेक्शन करके परिवार में प्रति व्यक्ति 55 लीटर प्रतिदिन स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति का लक्ष्य 2024 तक हासिल करना निर्धारित है। हर देशवासी तक स्वच्छ जल की आपूर्ति के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ में स्वच्छ जल को शामिल करते हुए इसे नागरिकों का मूल अधिकार घोषित किया है। जल जीवन मिशन जैसी परियोजनाएं सैद्धांतिक तौर पर अच्छी हैं पर इसमें जलापूर्ति का मुख्य स्रोत भूगर्भीय जल है ।जब राजस्थान, कठियावाड़, बुंदेलखंड, विदर्भ मैसूर,तेलंगाना आदि क्षेत्र डार्क जोन में तब्दील हो रहे हैं तो । सूखते कुंए, तालाब की तरह नल सूखने से कैसे बचेंगे? वर्षा जल के संचय एवं भूगर्भ जल के स्तर को बढ़ाने के लिए नीति आयोग द्वारा देश के 450 नदियों को जोड़कर एक राष्ट्रीय ग्रिड बनाने का प्रस्ताव को कार्यान्वित करना होगा। इससे बाढ़ प्रवण क्षेत्र का अतिरिक्त जल शुष्क क्षेत्र में पहुंच सकेगा। तमिलनाडु सरकार का प्रत्येक घर की संरचना में वर्षा जल संचय की अनिवार्यता का कानून एक सराहनीय पहल है। भारत के ‘जल पुरुष’ डॉ राजेंद्र सिंह ने राजस्थान के अलवर जिला में ग्रामवासियों की मदद से 6500 जोहड़ का निर्माण कराया, जिससे सूखते कुएं जल से भर गए, बारह से अधिक नदियों को पुनर्जीवन मिल गया। अलवर की बंजर बन चुकी जमीन अब सस्य श्यामला बन चुकी है। हमारी सनातन परंपरा नदी, नीर के विदोहन के स्थान पर संरक्षण और पोषण पर आधारित है। निश्चित रूप से समकालीन जल संकट के हल के लिए हमें परंपरा की ओर लौटना होगा। यह सर्वविदित है कि जल है तो कल है।

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