इस्लाम धर्म में वैसे तो दो ईदें सबसे अहम मानी जाती हैं, लेकिन इन दोनों ईदों के अलावा मुसलमान एक और ईद धूमधाम से मनाते हैं, जिसे ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) कहते हैं। ईद-ए मिलाद उन नबी को 12 वफ़ात और मौलिद भी कहते हैं। ईद-ए मिलाद उन नबी हर साल इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने ‘रबी-उल-अव्वल’ की 12वीं तारीख को मनाई जाती है। ईद-ए मिलाद उन नबी को इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के जन्म और वफ़ात (मृत्यु) की याद में मनाया जाता है।
ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) 2025 कब है?
इस साल ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) 5 सितंबर को मनाई जाएगी। इसी दिन 12 रबी-उल-अव्वल भी है। इसे खुशी और गम दोनों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था। “मिलाद” (Milad) शब्द का मतलब है जन्म। यह अरबी मूल शब्द ‘मौलिद’ से आया है और इस्लाम में इसका मतलब है पैगंबर मुहम्मद का जन्मदिन। फारसी भाषा में भी “मिलाद” का अर्थ “जन्म” होता है।
मुसलमान ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) क्यों मनाते हैं?
12 वफ़ात को पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के यौम-ए-पैदाइश (जन्मदिन) और उनकी वफ़ात (निधन) दोनों के तौर पर मनाया जाता है, जो रबी-उल-अव्वल के महीने की 12वीं तारीख को होती है। “वफ़ात” शब्द का मतलब “मृत्यु” है, इसलिए कुछ लोग इस दिन को उनकी मृत्यु की याद में मनाते हैं, जबकि कुछ लोग इसे उनके जन्म के उत्सव के रूप में मनाते हैं, जिसे ईद-ए मिलाद उन नबी भी कहा जाता है।
पैगंबर साहब की पैदाइश और इंतकाल
इस्लाम से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक, रबी-उल-अव्वल महीने की 12 तारीख के दिन ही पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्म मक्का में हुआ था और इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था। इसलिए इसे “बारह वफ़ात” कहा जाता है, जहां ‘बारह’ तारीख को और ‘वफ़ात’ का मतलब इंतकाल (मृत्यु) है। सुन्नी मुसलमान 12 रबी-उल-अव्वल को ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) मनाते हैं, जबकि शिया मुसलमान 17 रबी-उल-अव्वल को ईद-ए मिलाद उन नबी मनाते हैं।
मुसलमान 12 वफ़ात कैसे मनाते हैं?
ईद-ए मिलाद उन नबी (Eid-e Milad) के दिन मुस्लिम समुदाय पैगंबर मुहम्मद साहब की सुन्नतों को पर अमल करते हैं और उनपर दुरूद शरीफ भेजते हैं। इस दिन को लेकर इस्लामिक समुदाय के लोगों में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोग इस दिन पैगंबर के जन्मदिवस के रूप में जश्न मनाते हैं, वहीं कुछ लोग इस दिन शांति से इबादत (प्रार्थना) करते हैं। 12 वफ़ात के दिन मुसलमान मस्जिदों में खास नमाज अदा करते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं, दुरूद शरीफ पढ़ते हैं और पैगंबर मुहम्मद के बताए रास्ते पर चलने का इरादा करते हैं। इस दिन बड़े पैमाने पर जुलूस भी निकाले जाते हैं।