एकादंता संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। ‘संकष्टी’ का अर्थ है संकटों को हरने वाली और ‘चतुर्थी’ चंद्रमास के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को कहते हैं। इस दिन भगवान गणेश के ‘एकादंता’ स्वरूप की पूजा की जाती है। ‘एकदंत’ का अर्थ है ‘एक दांत वाला’। एकादंता संकष्टी चतुर्थी मनाने का मुख्य कारण भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना है, जो सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करते हैं। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं ताकि उनके जीवन में आने वाली परेशानियां दूर हों और सुख-समृद्धि बनी रहे। यह व्रत संतान की रक्षा और उनकी लंबी आयु के लिए भी किया जाता है।
एकादंता संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) के मौके पर एकादंता स्वरूप की पूजा विशेष रूप से ज्ञान, बुद्धि और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह व्रत संतान की रक्षा और उनकी लंबी आयु के लिए भी किया जाता है। इसके साथ ही लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में आने वाले कष्टों से सामना करने की ताकत मिलती है।
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 मई दिन शुक्रवार को सुबह 04 बजकर 03 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 17 मई दिन शनिवार को सुबह 05 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, एकादंता संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 मई को रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) की पूजा का समय चंद्रोदय के अनुसार होता है। ऐसे में इस दिन चंद्रोदय का समय रात 10 बजकर 39 मिनट है।
कैसे शुरू हुई परंपरा?
संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसकी शुरुआत कब हुई, इसके बारे में विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। एक लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, सतयुग में राजा पृथु ने सौ यज्ञ किए थे। उनके राज्य में दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे, जिनकी बड़ी बहू अपनी सास की आज्ञा के विरुद्ध संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखती थी। गणेशजी की कृपा से उसे सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कथा से इस व्रत के महत्व और फल का पता चलता है।
कुछ अन्य कथाओं में भगवान गणेश को सभी देवताओं में श्रेष्ठ घोषित किए जाने के दिन के रूप में भी संकष्टी चतुर्थी के महत्व को बताया गया है। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश पृथ्वी पर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं। हर महीने की संकष्टी चतुर्थी का अपना विशिष्ट नाम और महत्व होता है, और एकादंता संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) ज्येष्ठ माह में मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेश के एकादंता स्वरूप की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
एकादंता संकष्टी चतुर्थी (Ekadanta Sankashti Chaturthi) भगवान गणेश के एकादंता स्वरूप की पूजा करके जीवन के संकटों को दूर करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनाई जाती है। इसकी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह भक्तों के बीच गहरी आस्था का प्रतीक है। एकादंता संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है।