जापान। सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री पद पर रहे शिंजो आबे ने बीमारी के चलते पेट से इस्तीफा दे दिया है। शिंजो आबे को साल 2021 तक अपने पद पर रहना था लेकिन बीमारी के चलते उन्होंने पहले ही पद छोड़ने का फैसला किया। आबे 2006 में 52 साल की उम्र में जापान के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने थे लेकिन एक साल बाद ही स्वास्थ्य संबंधी कारणों की वजह से वह पद से हट गए।
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इसके बाद दिसंबर, 2012 में आबे सत्ता में लौटे। आबे ने जापान के इतिहास में लगातार सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने का इतिहास बनाया है। इससे पहले 2,798 दिनों तक पद पर रहने का रिकॉर्ड इसाकु सातो के नाम था।
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प्रधानमंत्री आबे के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है। जापान में किसी भी नेता को प्रधानमंत्री बनने से पहले सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का अध्यक्ष बनना होगा। जानकारी के मुताबिक इसे लेकर 15 सितंबर को चुनाव करवाए जा सकते हैं।
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योशीहिदे सुगा- जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव और जापान सरकार के मुख्य प्रवक्ता योशीहिदे सुगा प्रधानमंत्री पद की रेस में बड़ा नाम हैं। उन्होंने अपने चुनाव लड़ने की इच्छा लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के महासचिव तोशीरो निकाई को बता दी है। पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं का हाथ भी उनके साथ है। साल 2012 में शिंजो आबे ने जापान की कुर्सी संभाली थी, तब के लेकर अब तक योशीहिदे सुगा सरकार के सबसे बड़े प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे हैं।
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शिगेरु इशिबा जापान पूर्व रक्षामंत्री हैं, साल 2012 के पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव के पहले दौर में उन्होंने शिंजो आबे को शिकस्त दे दी थी। पहले दौर के लिए ग्रासरूट वोटिंग की जाती है। सांसदों की वोटिंग वाले मदौर में शिंजो आबे शिगेरु इशिबा पर भारी पड़े। साल 2018 में एक बार फिर शिगेरु इशिबा को शिंजो आबे की लोकप्रियका आगे हार का सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री पद की रेस में तीसरा बड़ा नाम पूर्व विदेश मंत्री फुमियो किशिदा का है। किशिदा पार्टी के नीति प्रमुख भी हैं। शिंजो आबे के इस्तीफे के बाद फुमियो किशिदा ने भी चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। किशिदा साल 2012 से 2017 तक आबे के नेतृत्व में विदेश मंत्री रहे। वे जापान के हिरोशिमा इलाके से आते हैं।
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शिंजो आबे से पहले जापान की ऐसी छवि बनी हुई थी कि यहां के प्रधानमंत्री का कार्यकाल बेहद कम होता है। जापान ने आबे के शासनकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मजबूत संबंध देखे, लेकिन आबे के कट्टर राष्ट्रवाद की नीति ने कोरिया और चीन को नाराज करने का काम किया।
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आबे ने जापान को मंदी से बाहर निकाला, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था के सामने कोरोना वायरस महामारी के चलते एक नया संकट पैदा हुआ है। आबे अमेरिका द्वारा तैयार किए गए युद्ध विरोधी एवं शांतिवादी संविधान को औपचारिक तौर पर दोबारा लिखे जाने का लक्ष्य अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर सके क्योंकि इसपर उन्हें आम जन का ज्यादा समर्थन नहीं मिल सका।