नई दिल्ली। हमारे समाज में प्रजनन स्वास्थ्य (reproductive health) को केवल महिलाओं (women) की जिम्मेदारी माना जाता है, जिससे बर्थ कंट्रोल (birth control) का भार भी उन पर आ जाता है। देश के शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (rural areas) में महिलाओं (women) दोनों से ही जुड़े फैसले लेने की आजादी कम होती है।
ग्रामीण क्षेत्रों (rural areas) में 60% से ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है। पतियों के फैसले मानकर वे गर्भनिरोधक (contraception) का इस्तेमाल नहीं करतीं, जिससे उन्हें बार-बार अनचाही प्रेग्नेंसी (unwanted pregnancy) से गुजरना पड़ता है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण इनके हाथ में फैमिली प्लानिंग करने की ताकत नहीं होती।
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आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों (rural areas) में केवल 5% पुरुष ही परमानेंट बर्थ कंट्रोल (birth control) के तरीके इस्तेमाल करते हैं। वहीं महिलाओं में नसबंदी 86% के साथ दूसरे सभी गर्भनिरोधक तरीकों को डोमिनेट करती है।
कम जानकारी, सीमित संसाधन और ऐसे पतियों के साथ रहते हुए जो फैमिली प्लानिंग में सहभागी नहीं बनना चाहते, बर्थ कंट्रोल का सारा भार औरतों पर आ जाता है।
हम पितृसत्तात्मक समाज में जी रहे हैं। यहां आज भी आपकी उम्र और जेंडर देखकर फैसले लिए जाते हैं। लगभग सभी घरों में पति ही मुखिया कहलाते हैं। ऐसे में बच्चे पैदा करने और उनकी संख्या को निर्धारित करने का अधिकार भी उन्हीं के पास होता है।
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आंकड़ों के अनुसार, जहां 90% महिलाएं अपने पतियों से फैमिली प्लानिंग के बारे में बात करती हैं, वहीं केवल 20% ही आखिरी फैसला ले पाती हैं। लगभग 55% पुरुष अपनी मंजूरी के बिना पत्नियों को गर्भनिरोधक इस्तेमाल नहीं करने देते। 20% पुरुष मानते हैं कि प्रेग्नेंसी से बचना महिलाओं की जिम्मेदारी है। यानी, हर मामले में औरतों को ही दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता है।
शहरी इलाकों में पुरुष कंडोम (male) (condom) जैसे मॉडर्न गर्भनिरोधक (modern contraception) का इस्तेमाल करते हैं। ये ग्रामीण इलाकों से लगभग दोगुना है। शहरों में बर्थ कंट्रोल(birth control)हाई और फर्टिलिटी रेट (fertility rate) लो देखा जाता है। इसका कारण महिलाओं के पास पर्याप्त जानकारी, संसाधन और आर्थिक स्वतंत्रता होना भी है। वे इंट्रायूट्रिन डिवाइस (UID) जैसे लॉन्ग टर्म तरीकों के फायदे और नुकसान समझकर उन्हें प्रिफर करती हैं।
महिला नसबंदी के फायदे ..
प्रेग्नेंसी रोकने में यह तरीका 99% कारगर है।
नसबंदी सेक्स में रुचि में हस्तक्षेप नहीं करती है।
इससे औरतों के हॉरमोन लेवल पर प्रभाव नहीं पड़ता।
महिला नसबंदी के नुकसान..
यह यौन सबंध के कारण होने वाली बीमारियों से नहीं बचाती, इसलिए कंडोम का इस्तेमाल करना जरूरी है।
नसबंदी मुश्किल से रिवर्स होती है।
नसबंदी कई बार फेल भी हो सकती है।
इससे संक्रमण और अंदरूनी ब्लीडिंग का थोड़ा खतरा होता है।
नसबंदी के बाद प्रेग्नेंट होने पर संभावना है कि यह एक्टोपिक प्रेग्नेंसी या अस्थानिक गर्भावस्था होगी।
भारत में कंडोम के यूज में 52% और पुरुष नसबंदी में 73% गिरावट आई है। ये आंकड़ें दर्शाते हैं कि पुरुष गर्भनिरोधक का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। ग्रामीण इलाकों में तो पुरुषों में बर्थ कंट्रोल का इस्तेमाल वैसे भी आधा है। इसका कारण कम जागरूकता और नसबंदी के प्रति गलतफहमी है।
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पुरुषों में गर्भनिरोधक का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए तीन चीजों की मदद ली जा सकती है। ये हैं प्रोवाइडर, प्रोटेक्टर और प्लेजरर। इसका मतलब आर्थिक प्रेरणा, नारीवादी विचारों को बढ़ावा देना और लिंग समानता पर सीधा संदेश। इनके जरिए पुरुषों की मानसिकता में बदलाव आएगा।
साथ ही, महिलाओं के लिए अभियान के अलावा सरकार को पुरुषों के लिए भी अलग से फैमिली प्लानिंग के अभियान चलाने चाहिए। दंपतियों को जागरूक करने के लिए कम्युनिटी स्पेस में बर्थ कंट्रोल से जुड़े मिथकों को खत्म करना चाहिए। पुरुषों के लिए केवल नसबंदी और कंडोम ही गर्भनोरधक के ऑप्शन्स हैं। इसलिए पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर को मिलकर इस क्षेत्र में रिसर्च का काम करना होगा।
फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FPA) के अनुसार, साल 2018 में 25 से कम उम्र की 74,871 महिलाओं ने अबॉर्शन करवाया था। वहीं 25 से कम उम्र के 1,60,076 पुरुषों ने फैमिली प्लानिंग और गर्भनिरोधक के बारे में काउंसिलिंग ली थी। डेटा में यह भी बताया गया है कि 25 से कम उम्र की 1,58,117 महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं।
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भारत की आधे से ज्यादा आबादी इस उम्र के दायरे में आती है। इसलिए सेक्स एजुकेशन, यौन सबंधित बीमारियां, प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों के प्रति जागरूकता जरूरी है। वैसे तो सरकार पहले से ही इसके लिए कई अभियान चला रही है, लेकिन और प्रयास किए जा सकते हैं। स्कूल में सेक्स एजुकेशन देनी चाहिए। ASHA और ANM वर्कर्स और बेहतर तरीके से जानकारी लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
साथ ही माता-पिता अपने बच्चों को घर पर इन विषयों से जुड़ी जानकारी दें। सभी जेंडर, सेक्स, संस्कृति, शरीर और नस्लों के लोगों का आदर करना सिखाएं।