दिवाली (Diwali) से एक दिन पहले छोटी दिवाली (Choti Diwali) मनाने का पुराना धार्मिक रिवाज है। छोटी दिवाली नरक चतुर्दशी के दिन मनायी जाती है। मान्यता के अनुसार, छोटी दिवाली की रात में घरों में बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा एक दीपक जलाकर पूरे घर में घुमाया जाता है और उस दीपक को घर से बाहर कहीं दूर रख दिया जाता है। इस दिन मुख्य द्वार पर दीपक जलाने का विधान है लेकिन क्या आप जानते है कि छोटी दिवाली क्यों दीपक क्यों जलाया जाता है, आइए पौराणिक कथाओं से जानते है कि इसके पीछे की वजह-
चांद न निकलने की वजह से जलाया जाता है दीया
दरअसल छोटी दिवाली (Choti Diwali) अमावस्या की रात से एक दिन पहले पड़ती है और अमावस्या तिथि के स्वामी यमराज होते हैं। अमावस्या की रात चांद नहीं दिखाई पड़ता है और चांद ना निकलने की वजह से कही भटक ना जाएं इसके लिए एक बड़ा दीपक घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाता है।
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार रति देव नाम के एक धर्मात्मा थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन फिर भी मृत्यु के दौरान उन्हें नरक लोक मिला यह देखकर राजा बोले कि मैंने कभी कोई पाप नहीं किया तो फिर आप क्यों मुझे लेने आए हो आपके आने का मतलब मुझे नरक में स्थान मिला है।
जब राजा ने मांगा एक वर्ष का समय
यह बात सुनकर यमदूत ने कहा कि हे वत्स एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा पेट लौट गया था, यह आपके उसी कर्म का फल है। इस बात को सुन राजा ने यमराज से एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों के पास अपनी इस समस्या को लेकर पहुंचे तब ऋषियों ने उन्हें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे माफी मांगने को कहा।
ऐसे शुरू हुई दीप जलाने की परंपरा
एक साल बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए, इस बार उन्हें नरक के बजाय स्वर्ग लोक ले गए तब ही से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष को दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। ताकि भूल से हुए पाप को भी क्षमादान मिल सके।
दीपक जलाने की विधि
छोटी दिवाली पर घर के सबसे बड़े सदस्य को एक बड़ा दीया जलाना चाहिए। इस दीये को पूरे घर में घुमाएं। घर से बाहर जाकर दूर इस दीये को रख आएं। घर के दूसरे सदस्य घर के अंदर ही रहें और इस दीपक को न देखें।