सियाराम पांडे ‘शांत’
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। विभिन्न कार्यक्रम हुए। अलग-अलग-अलग क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। महिलाओं को एक दिन की डीएम, उसपी, एडीएम और कोतवाल तक बनाया गया। महिलाओं को सम्मान देने के जितने भी तौर-तरीके हो सकते थे, वे सभी अपनाए गए। पूरा देश यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः की भावना से ओत-प्रोत रहा। सवाल यह है कि यह महज एक दिन का आदर है या इसकी निरंतरता बनी रहेगी। देश भर में नारी सशक्तीकरण अभियान चलाए जा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रांतीय, जिला और नगर कार्यालयों में आयोजनों की कमान महिलाओं के हाथ रही। महिला समानता की बात की गई। यह और बात है कि जब देश भर में महिला सशक्तीकरण अभियान चलाया जा रहा है, उसी वक्त में सर्वोच्च न्यायालय ने यह जानना चाहिए कि क्या आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक कर दिया जाए। महिलाएं तो कायदतन 33 प्रतिशत भी आरक्षण नहीं पा रही है। अगर उन्हें समानता देनी हैं। सेवा में समानता के अवसर उपलब्ध कराने हैं तो उनको 50 प्रतिशत आरक्षण देने ही होंगे । ऐसे में अनुसूचित जातिध् अलुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लोगों का क्या होगा।
सर्वोच्च न्यायालय की एक मात्र न्यायाधीश ने कहा है कि उच्च न्यायालयों में तो महिलाओं को महत्व है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में नहीं है। इसमें शक नहीं कि इस देश में महिला राष्ट्रपति भी रह चुकी हैं और प्रधानमंत्री भी, महिला मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं और महिला राज्यपाल भी। देश की वित्तमंत्री भी महिला ही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से एक दिन पूर्व पश्चिम बंगाल में महिलाओं के अपमान का मामला उठाया था तो महिला दिवस के दिन राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महिला मार्च निकाल दिया और यह कह दिया कि महिलाएं उत्तर प्रदेश और बिहार में अपमानित हो रही हैं, उपेक्षित हो रही हैं। बंगाल की लड़कियां तो अपने निर्णय खुद ले रही हैं। यह देश 1975 से ही महिला दिवस मनाता आ रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि तमाम सरकारी और सामाजिक कोशिशों के बाद देश में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन इस पढ़ाई को उसी दर से करियर में बदलना महिलाओं के लिए अब भी दूर की कौड़ी है। जमीनी सच का अंदाज इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि, बोर्ड एग्जाम में टॉप करने वाली लड़कियों में 40 प्रतिशत को विदेश जाकर पढ़ने का मौका मिलता है। लड़कों में यह दर 63 प्रतिशत है।
आजादी के 73 साल बाद भी नौकरशाही हो या न्यायपालिका महिलाओं की नाममात्र मौजूदगी है। कुछ ऐसा ही हाल देश का सर्वोच्च भारत रत्न जैसे सम्मान और फिल्म फेयर जैसे बेहद मशहूर अवॉर्ड का है। इनमें भी महिलाओं की संख्या नगण्य जैसी ही है। सुप्रीम कोर्ट की 30 महिला जज में से केवल दो महिला जज हैं। 26 उच्च न्यायायालयों में केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश है जबकि उच्च न्यायालयों में 1079 जजों में केवल 2 महिला जज हैं। यह स्थिति बताती है कि महिलाओं को वह अधिकार नहीं मिल पाया है जिसकी वे हकदार हैं। महिलाओं को हर क्षेत्र की तरह राजनीतिक क्षेत्र में भी पूरी भागीदारी नहीं मिली है।
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण अब तक नहीं मिला है। 33 फीसदी आरक्षण की लंबे समय से मुहिम चल रही थी। बिल राज्यसभा में पास हुआ, लेकिन लोकसभा में अटक गया। आप देखिए राजनीतिक दलों में महिलाओं को आज 10 फीसदी टिकट नहीं मिलते। राजस्थान में ही देख लीजिए, 200 विधानसभा सीटों में से 20 महिलाओं को टिकट देने में भी कितना मुश्किल और संघर्ष होता है। पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की वजह से महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन अब लोकसभा-विधानसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू होना समय की मांग है। हमें महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखना होगा। आज भी महिलाएं बेखौफ होकर बाहर नहीं जा सकतीं। महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। इस पर अभी बहुत काम किए जाने की जरूरत है। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की घटनाएं बहुत भयावह तस्वीर पेश कर रही हैं। हमारा सिस्टम अब भी महिलाओं को सुरक्षा देने में सफल नहीं हो पाया है। सरकारी क्षेत्र में तो वेतन को लेकर पुरुष और महिला में कोई भेदभाव नहीं है, लेकिन गैर सरकारी क्षेत्र में आज भी यह मुद्दा है। जो महिलाएं मनरेगा, असंगठित मजदूरी या कुली का काम करती हैं उन्हें पुरुषों से कम पैसा दिया जाता है।
आंगनबाड़ी वर्कर्स को बहुत कम वेतन दिया जाता है। समान काम के बदले समान वेतन दिया जाए। यह मूलभूत अधिकार है, लेकिन भेदभाव हो रहा है। इस मामले में हमें अभी भी बहुत काम करने की आवश्यकता है। इसमें शक नहीं कि महिलाओं ने विकास का आकाश छूने की कोशिश की है। कई प्रतिष्ठित संस्थानों की मुख्या कार्याधिकारी महिलाएं ही हैं और कहना न होगा कि वे बेहतर कर रही हैं। खुद तो आगे बढ़ ही रही हैं, देश को भी आगे ले जा रही है लेकिन जब तक महिलाओं को हमेशा सम्मान नहीं दिया जाएगा तब तक वे आगे नहीं बढ़ पाएंगी। महिलाओं का विकास की दौड़ में पिछड़ना देश का पिछड़ना है। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर भी तत्काल अंकुश लगाए जाने की जरूरत है। बिना इसके बात बनने वाली नहीं है।