लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोना वायरस का बढ़ता संक्रमण एक तरह देश और दुनिया के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर इसकी वैक्सीन को लेकर अच्छी खबरें आ रही हैं। कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए दुनिया का इंतजार खत्म होता दिख रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है, जिनमें 21 से ज्यादा वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल में है। भारत, ब्रिटेन, रूस, अमेरिका, इस्रायल, चीन आदि देश वैक्सीन बनाने के काफी नजदीक पहुंच चुके हैं। कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए दुनिया का इंतजार खत्म होता दिख रहा है।रूस से तो शुक्रवार की शाम बड़ी खबर सामने आई है। खबरों के मुताबिक, रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ी एक संस्था गमलेया रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित इस वैक्सीन का चार दिन बाद पंजीकरण होने जा रहा है। यानी यह दुनिया की पहली पंजीकृत कोरोना वायरस वैक्सीन होगी।
खबरों के मुताबिक, रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने कहा है कि रूस की वैक्सीन ट्रायल में सफल रही है। अक्तूबर महीने से ही देश में व्यापक पैमाने पर लोगों का टीकाकरण शुरू किया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि इस टीकाकरण अभियान में आने वाला पूरा खर्च सरकार उठाएगी। वहीं, उप स्वास्थ्य मंत्री ओलेग ग्रिदनेव ने कहा है कि 12 अगस्त को दुनिया की इस पहली कोरोना वायरस वैक्सीन का पंजीकरण कराया जाएगा।
उप स्वास्थ्य मंत्री ग्रिदनेव ने शुक्रवार को ऊफा शहर में कहा कि इस समय वैक्सीन के ट्रायल का तीसरा और अंतिम चरण चल रहा है। यह ट्रायल बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन की प्रभावशीलता तब आंकी जाएगी जब देश की जनसंख्या के अंदर बड़े पैमाने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी।
सबसे पहले किसे मिलेगा टीका
वैक्सीन तैयार होने पर स्वास्थ्यकर्मियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके बाद यह रूस के अन्य नागरिकों के लिए उपलब्ध होगा। उप स्वास्थ्य मंत्री ओलेग ग्रिदनेव ने कहा, “हमें यह समझना होगा कि यह वैक्सीन सुरक्षित हो। पेशेवर स्वास्थ्यकर्मी और वरिष्ठ नागरिकों को सबसे पहले कोरोना वायरस का टीका लगाया जाएगा।”
क्लिनिकल ट्रायल में 100 फीसदी सफलता का दावा
इस वैक्सीन को रूस के रक्षा मंत्रालय और गमलेया नेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ने तैयार किया है। रूस इस बात का दावा कर चुका है कि उसकी कोरोना वैक्सीन अबतक हुए क्लिनिकल ट्रायल में 100 फीसदी सफल रही है। उसका कहना है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान जिन लोगों को यह वैक्सीन लगाई गई, उन सभी में कोरोना वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई गई।
खबरों के मुताबिक ट्रायल करीब छह हफ्ते पहले शुरू हुआ था। उस समय वॉलंटियर्स के तौर पर वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को मास्को के बुरदेंको सैन्य अस्पताल में कोरोना वैक्सीन लगाई गई थी। इन वॉलेंटियर्स को दोबारा अस्पताल बुलाकर जब उनकी सघन जांच की गई तो पता चला कि सभी लोगों में वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो चुकी है। ट्रायल के इन परिणामों से रूस की सरकार भी उत्साहित है।
स्पुतनिक न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वैक्सीन के ट्रायल की समीक्षा में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि वैक्सीन लगने की वजह से मजबूत प्रतिरोधक प्रतिक्रिया विकसित हुई है। किसी भी वॉलेंटिंयर पर वैक्सीन का किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं हुआ है। बड़े पैमाने पर जनता के बीच इस्तेमाल से पहले सरकार की स्वीकृति ली जाएगी।
रूस का दावा है कि कोरोना वायरस के खिलाफ जारी वैश्विक लड़ाई में वैक्सीन बनाने की रेस में वह अन्य देशों से कई महीने आगे चल रहा है। क्लिनिकल ट्रायल में सफलता के बाद रूस वैक्सीन की प्रभावी क्षमता जांचने के लिए व्यापक परीक्षण करने जा रहा है। खबरों के मुताबिक, रूस ने अगले महीने यानी सितंबर तक कोरोना वैक्सीन को पूर्ण रूप से विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, ताकि अक्तूबर से देशभर में टीकाकरण अभियान की शुरुआत कर सके।
रूस की तमाम तैयारियों और दावों से इतर वैक्सीन पर कई देश संदेह जता रहे हैं। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी रूस की इस वैक्सीन को लेकर संदेह जता चुका है। ब्रिटेन ने रूस की इस वैक्सीन के इस्तेमाल से इनकार कर दिया है। ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई अन्य देशों के विशेषज्ञ भी इस वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं। आरोप है कि रूस ने इस वैक्सीन के परीक्षण को लेकर कोई साइंटिफिक डाटा जारी नहीं किया है। हालांकि रूस अपनी इस वैक्सीन को लेकर निश्चिंत है और अक्तूबर से टीकाकरण अभियान शुरू करने की तैयारी में है।