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विश्व का सबसे छोटा युद्ध, जो मात्र 38 मिनट चला, जानिए किसके बीच हुई थी जंग

War

युद्ध (War), एक ऐसा शब्द है, जिसने सुनने के बाद खून-खराब, गोला-बारूद, गोलियों की तड़तड़ाहट और बम धमाकों की आवाज जेहन में आती है. शायद ही दुनिया में कोई ऐसा शख्स हो, जिसे युद्ध से लगाव हो. अगर कुछ एक सनकी तानाशाहों या बादशाहों को छोड़ दें, तो हमें नहीं लगता है कि युद्ध (War) से किसी को लगाव होगा. हालांकि, भले ही आप युद्ध से नफरत करें, लेकिन इसकी कहानियां लोगों का ध्यान हमेशा से ही अपनी ओर करती रही हैं. अगर आपको भी इतिहास की War Stories पसंद आती हैं, तो हम आज आपको ऐसी ही एक कहानी बताने जा रहे हैं.

दरअसल, हम आपको युद्ध की जो कहानी बताने जा रहे हैं, वो दुनिया के सबसे छोटे समय तक चले युद्ध (War) की कहानी है. आमतौर पर युद्ध कई हफ्तों, महीनों तक चलते हैं. लेकिन इतिहास में ऐसे भी लड़ाइयां हुई हैं, जो कई सालों तक चलती रही हैं. हालांकि, आज की कहानी World Shortest War की है, जो महज 38 मिनट यानी सिर्फ 2280 सेकेंड तक चला. इस युद्ध को इतिहास में Anglo-Zanzibar War के तौर पर दर्ज किया गया है.

ऐसे में आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर एंग्लो-जांजीबार युद्ध क्यों हुआ? अगर युद्ध हुआ तो वो क्या वजह थी, जिसके चलते सिर्फ 38 मिनट में ही ये खत्म हो गया. आइए इस युद्ध से जुड़े इन सवालों को जानते हैं.

क्यों शुरू हुआ एंग्लो-जांजीबार युद्ध (War)?

दरअसल, 1890 में ब्रिटेन और जर्मनी के बीच Heligoland-Zanzibar Treaty नाम से एक संधि हुई. इस संधि के तहत दोनों देशों को पूर्वी अफ्रीका के इलाकों पर राज करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र दिए गए. हेलिगोलैंड-जांजीबार संधि के तहत जांजीबार को अंग्रेजों को सौंपा गया, जो एक द्वीप था. जबकि इसके पास में मौजूद मुख्य भूमि तंजानिया के निकटवर्ती क्षेत्र जर्मनों को दिए गए. इस तरह जांजीबार को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना दिया गया.

ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बनने के बाद अंग्रेजों ने इस इलाके पर शासन के लिए जांजीबार के पांचवें सुल्तान हममद बिन थुवैनी को चुना. सब कुछ ठीक-ठाक और शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था. तभी अगस्त 1896 में सुल्तान की मौत हो गई. वहीं, सुल्तान की मौत के चंद घंटों के भीतर ही थुवैनी का भाई खालिद बिन बरगश ने जांजीबार पर दावा करते हुए गद्दी संभाल ली. उसने ऐसा करने से पहले अंग्रेजों से बात तक नहीं की.

दूसरी ओर, अंग्रेजों के गले से ये बात उतरी नहीं कि उनकी बिना इजाजत कोई गद्दी पर बैठ गया. यही वजह थी कि जांजीबार में तैनात ब्रिटिश राजनयिक और बासिल केव नाम के सेना प्रमुख ने खालिद को गद्दी छोड़ने को कहा. लेकिन खालिद युद्ध करने का मन बना चुका था. उसने हथियारों, सैनिकों और शाही जहाज के जरिए अपने किले को सुरक्षित कर लिया. वहीं, ब्रिटेन ने भी अब युद्ध की तैयारी कर ली.

सिर्फ 38 मिनट में खत्म हुआ युद्ध (War)

ब्रिटेन ने अपनै सैनिकों को इकट्ठा किया और फिर युद्ध की शुरुआत कर दी. एक तरह ब्रिटेन की सेना थी, तो दूसरी ओर जांजीबार की. ब्रिटिश जहाजों ने जांजीबार के किले पर हमला बोल दिया. सिर्फ दो मिनट के भीतर ही खालिद के तोप-गोले और हथियार तबाह हो गए. वहीं, किले को लकड़ी से बनाया गया था, जिसमें आग लग गई और वह धर-धराकर जमींदोज हो गया.

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युद्ध के समय किले में 3000 के करीब सैनिक थे, जो जिंदगी की जद्दोजहद के बीच फंस गए. इसकी वजह ये थी कि जो लकड़ी का किला कुछ देर पहले उनकी सुरक्षा कर रहा था, वो अब आग का गोला बनकर उन्हें ही निगलने पर आतुर था. सेना का मनोबल टूटता देख, खालिद पिछले दरवाजे से जान बचाकर भाग निकला. महज 40 मिनट से भी कम समय में सुल्तान का झंडा उतार दिया गया और युद्ध की समाप्ति हो गई.

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