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‘ये दिल मांगे मोर…’ कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की आखिरी आवाज अब तक गूंजती हैं कानों में…  

नई दिल्ली. 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस 1999 की जंग को 22 साल पूरे हो गए. कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों के अदम्य साहस को कभी भुलाया नहीं जा सकता. कारगिल युद्ध की जब भी चर्चा होती है, तब परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की शौर्य गाथा को जरूर याद किया जाता है. और उनका रेडियों पर आखिरी आवाज ‘ये दिल मांगे मोर’ लोगों की कान में अभी भी गूँजता है।

कैप्टन विक्रम बत्रा ने 24 वर्ष की उम्र में भारत के लिए साहस का एक ऐसा उदाहरण स्थापित किया जो हर दौर के युवाओं को प्रेरित करता रहेगा. 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने सर्वोच्च आदेश का नेतृत्व प्रदर्शित किया और राष्ट्र के लिए खुद का बलिदान दिया.

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टीचर के परिवार में जन्म

कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में गिरधारी लाल बत्रा (पिता) और कमल बत्रा (मां ) के यहां हुआ था. उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे, जबकि उनकी मां एक स्कूल टीचर थीं. माता-पिता के टीचर होने का प्रभाव उनके जीवन पर देखने को मिलता है. विक्रम शुरू से अनुशासन में रहने वाले छात्र थे.

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खेलकूद में रूचि

कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) पालमपुर में डीएवी पब्लिक स्कूल में पढ़े. फिर उन्होंने वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए केंद्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया. वर्ष 1990 में, उन्होंने अपने भाई के साथ अखिल भारतीय केवीएस नागरिकों के टेबल टेनिस में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया था. कैप्टन विक्रम बत्रा कराटे में ग्रीन बेल्ट थे और मनाली में नेशनल लेवल पर खेल में भाग लिया था.

अपने कॉलेज के दिनों में, कैप्टन विक्रम बत्रा एनसीसी, एयर विंग में शामिल हो गए. कप्तान विक्रम बत्रा को अपनी एनसीसी एयर विंग इकाई के साथ पिंजौर एयरफील्ड और फ्लाइंग क्लब में 40 दिनों के प्रशिक्षण के लिए चुना गया था. कैप्टन विक्रम बत्रा ने ‘C’ सर्टिफिकेट के लिए क्वालिफाई किया और NCC में कैप्टन विक्रम बत्रा का रैंक दिया गया.

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IMA में सेलेक्शन के बाद छोड़ दी कॉलेज

1996 विक्रम बत्रा का इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) में सेलेक्‍शन हो गया और वह कॉलेज बीच में छोड़कर देहरादून चले गए. 6 दिसंबर 1997 को, उन्होंने 19 महीने की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद, IMA से स्नातक किया. उसके बाद उन्हें 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया. जनवरी 1999 में, उन्हें बेलगाम, कर्नाटक में दो महीने के कमांडो कोर्स को पूरा करने के लिए भेजा गया. पूरा होने पर, उन्हें सर्वोच्च ग्रेडिंग – Instructor’s Grade से सम्मानित किया गया.

कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत से पहले, उन्होंने 1999 में होली के त्यौहार के दौरान सेना से छुट्टी पर अपने घर का दौरा किया था. 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में विजय हासिल हुई थी. कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से स्कूल सिलेबस में भी शामिल करने की तैयारी की जा रही है.

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आखिरी आवाज- ‘ये दिल मांगे मोर’

कारगिल का जिक्र आए और कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम होंठों पर न आए, ऐसा भला कैसे हो सकता है. हिमाचल के शेर कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल के पांच बेहद महत्वपूर्ण प्वाइंट्स पर तिरंगा फहराने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा विक्रम के निडर जज्बे का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने प्वाइंट 5140 को पाक के कब्जे से मुक्त कराया.

कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा के माता-पिता

इसके बाद उन्होंने अपनी कमांड पोस्ट को रेडियो पर एक मैसेज दिया- ‘ये दिल मांगे मोर’, उसके बाद अपनी मां और मुझसे से बात की थी. परमवीर चक्र पाने वाले शहीद विक्रम बत्रा के बारे में तत्कालीन इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वह जिंदा लौटकर आते, तो इंडियन आर्मी के हेड होते. विक्रम बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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