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जब लोककल्याण के लिए योगी ने तोड़ दी थी मंदिर से बाहर न निकलने की परंपरा

गोरखपुर। मुख्यमंत्री, गोरक्षपीठाधीश्वर और नाथपंथ की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारत वर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) देश और प्रदेश में सुख, शांति, आरोग्य और समृद्धि के लिए विशेष अनुष्ठान कर चैत्र नवरात्र पर नौ दिन का व्रत रखेंगे। मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करेंगे। कभी नवरात्र के नौ दिनों तक मंदिर से बाहर न निकलने वाले योगी आदित्यनाथ ने लोककल्याण के लिए इस परंपरा को तोड़ दिया था।

गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ नवरात्र में गोरक्षपीठ से बाहर नहीं निकलते थे, लेकिन वर्ष 2014 में लोक कल्याण के लिए उन्होंने यह परम्परा तोड़ी। तब वे सांसद थे। नंदानगर में हुए रेल हादसे के दौरान पहली बार परम्परा तोड़ कर योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल का दौरा किया था। उस समय इनकी संवेदशीलता को सभी ने सराहा था। लोगों का कहना था कि मठ की परंपरा की बजाय लोकहित को बड़ा मनाने वाले योगी आदित्यनाथ, गुरु गोरक्षनाथ के दिखाए मार्ग पर चलने वाले सच्चे संत हैं।

कलश स्थापना से शुरू होगी आराधना

शनिवार को गोरखनाथ मंदिर में मठ के प्रथम तल स्थित शक्ति मंदिर एवं मंदिर परिसर स्थित दुर्गा मंदिर में कलश स्थापना होगी। शक्ति मंदिर में कलश स्थापना कर मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ मां शैलपुत्री की अराधान करेंगे। गोरक्षपीठ के मंदिर मानसरोवर मंदिर में कलश स्थापना कर मां शैलपुत्री की आराधना भी होगी। गोरक्षपीठ से जुड़े मां मंगला देवी मंदिर बेतियाहाता में भी घट स्थापना कर मां शैलपुत्री की आराधना होना है।

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बोले मंदिर के सचिव

मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी ने कहा कि गोरखनाथ मंदिर, मंगला देवी मंदिर और मानसरोवर मंदिर में हर दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ होगा। नौ दिनों तक मां की आराधना का क्रम चलता रहेगा। नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना के साथ ही गोरखनाथ मंदिर के मठ के प्रथम तल पर स्थित शक्ति मंदिर में दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू हो जाएगा।

09 अप्रैल को होगी निशा पूजा

आचार्य रामानुज त्रिपाठी बताते हैं कि 09 अप्रैल को नवरात्र की अष्टमी है। जिस दिन रात को निशा पूजन होगी। 10 अप्रैल को नवमी है। उस दिन कन्या पूजन होगा। अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन में गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ भी शामिल हो सकते हैं।

वर्षों पहले से होती है सभी देवी-देवताओं की पूजा

मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी का कहना है कि मंदिर में कालांतर से ही सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती रही है। पहले दीवारों में मूर्तियां थीं। वर्ष 1974 में हुए बड़े आयोजन में जिसमें देवरहा बाबा, शंकराचार्य समेत देश के संत-महात्मा शामिल हुए थे। उसी वर्ष यहां देवी-देवताओं के मंदिर बने और मूर्तियां स्थापित हुईं। नाथपंथ हमेशा से लोकहित के लिए समर्पित रहा है।

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