दो पक्षों को पाबंद करने और शांतिभंग की धारा के तहत यदि व्यक्ति को पुलिस द्वारा हिरासत में लिया जाना साबित हो गया तो सरकार ने पीड़ित को 25 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है।
परिशांति कायम रखने के उद्देश्य से धारा-107/116/151 के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को प्राप्त शक्तियों के क्रियान्वयन के विषय में शासन द्वारा विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। यह निर्णय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के निदेर्शों के क्रम में लिया गया है, जिसमें इस विषय पर एक उचित कार्य प्रणाली विकसित किये जाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने को कहा गया था।
इस क्रम में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों सहित पुलिस महानिदेशक, सभी जोनल, एडीजी, सभी रेंज के आईजी व डीआईजी और जिलों के पुलिस कप्तानों को शासन द्वारा जारी दिशा-निदेर्शों का कड़ाई से अनुपालन कराने के निर्देश दिये गये हैं।
निदेर्शों में शासन द्वारा सभी जिला मजिस्ट्रेट, उसके अधीनस्थ सभी कार्यपालक मजिस्ट्रेट्स तथा विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट्स से यह अपेक्षा की गयी है कि उन्हें प्रदत्त की गयी शक्तियां, उनके क्षेत्राधिकार में शांति व्यवस्था एवं लोक प्रशान्ति बनाये रखने के लिए हैं।
शासन द्वारा कहा गया है कि इनका पालन सदैव गुण दोष के आधार पर युक्ति-युक्त न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग करते हुये, विधि एवं निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किया जाय, ताकि आम जन को संविधान से प्राप्त मौलिक अधिकार संरक्षित रहे।
शासन द्वारा जारी निर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति की अवैध रूप से हिरासत प्रमाणित पायी जाती है, तो पीड़ित व्यक्ति को 25 हजार रुपए की धनराशि का भुगतान मुआवजे के रूप में दिया जायेगा। इसके साथ ही अवैध हिरासत किये जाने के उत्तरदायी अधिकारी के विरूद्ध भी नियमानुसार कार्यवाही की जायेगी।