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ये हैं देश के पांच प्रमुख कालभैरव मंदिर, हर मनोकामना होगी पूरी

Desk by Desk
10/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली
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kaal bhairav

कालभैरव

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लाइफ़स्टाइल डेस्क।  पुराणों के अनुसार भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की उत्पत्ति मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुई थी। ऐसी मान्यता है इस दिन काल भैरव की पूजा करने से सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है। देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में श्रीभैरव की पूजा होती है। भैरव, देवी तीर्थ में हैं तो शिवधाम में भी हैं। भैरव बड़े-बड़े महलों में, चौक-चौराहे व नगर के प्रवेश द्वार पर विराजमान हैं। भारत में कई स्थानों पर प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर है जिनका अपना अलग-अलग महत्व है।

भारत में शिव के अवतार कालभैरव के अनेकों मंदिर हैं। उनमें से काशी के काल भैरव मंदिर की विशेष मान्यता है। उत्तर प्रदेश में काशी नगरी को मोक्षदायनी नगरी कहा जाता है। यहां साक्षात भगवान विश्वनाथ विराजमान हैं, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहते हैं कि इस नगरी की रक्षा भैरवनाथ करते हैं इसलिए उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। यह काशी के विश्वनाथ मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता है उसकी पूजा सफल नहीं मानी जाती है।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित काल भैरव का मंदिर चमत्कारिक है। कालभैरव का मंदिर उज्जैन नगर के क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहां भैरवनाथ की मूर्ति साक्षात है जो मदिरापान करती है। आश्चर्य की बात यह है कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें मदिरा का भोग लगाया जाता है खाली हो जाता है। यह शराब कहां जाती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है। यहां रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखती है। कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यहां ऐसी परांपरा है कि लोग भगवान काल भैरव को प्रसाद को रूप में केवल शराब ही चढ़ाते हैं।

बटुक भैरव मंदिर दिल्ली में स्थित है। बाबा बटुक भैरव की मूर्ति यहां पर विशेष प्रकार से एक कुएं के ऊपर विराजित है। बटुक भैरव नाथ मंदिर में भगवान भैरव बाबा का सिर्फ चेहरा ही है और चेहरे पर बड़ी-बड़ी दो आंखे हैं। बटुक भैरव नाथ मंदिर में मदिरा, दूध व गुड का प्रसाद भगवान को अर्पित किया जाता है तथा प्रसाद को स्थानीय भक्तों में वितरित कर दिया जाता है। यह प्रतिमा पांडव भीमसेन काशी से लाए थे।

नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यह गोलू देवता के नाम से प्रसिद्धि है। मंदिर में विराजित इस श्वेत गोल प्रतिमा की पूजा के लिए प्रतिदिन बहुत श्रद्धालु भक्त यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से पूजा और प्रार्थना की जाए तो भैरवनाथ उसे पूरी करते हैं। मुराद पूरी होने पर इस मंदिर में घंटी भेंट की जाती है।

श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ एक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल है। जो जोधपुर से 116 किमी. तथा बालोतरा से 12 किमी.जोधपुर- बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है। यहां जैन समाज के तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दसवीं शताब्दी की प्राचीनतम मूर्ति के साथ भैरवनाथ विराजमान हैं। जैन मंदिर में भैरवनाथ की मूर्ति स्वयं बटुक भैरव की इच्छा से विराजमान हुई थी। गुरुदेव हिमाचल सुरीश्वरजी को एक बार एक सुंदर बालक ने दर्शन देकर यहां भैरव प्रतिमा को स्थापित करने की बात कही थी। बाबा भैरव के चमत्कारों के कारण हज़ारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोडा भैरव के दर्शन करने यहां आते है और मनवांछित फल पाते हैं।

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