• About us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Contact
24 Ghante Latest Hindi News
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
No Result
View All Result

आंदोलन छोड़ें, मंगल होगा

Writer D by Writer D
29/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, राजनीति, राष्ट्रीय, विचार
0
Farmer protest

Farmer protest

14
SHARES
176
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

थाली पीटना बुरा नहीं है। अपने देश में थाली पीटी भी जाती है। फोड़ी भी जाती है। थाली खाने के भी काम आती है और कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं, उसमें छेद भी करते हैं। किसान नाराज हैं।उनका आरोप है कि सरकार उनकी सुन नहीं रही है। एक महीने से वे इस कड़ाके की ठंड में सड़क पर बैठे हैं और सरकार अपने बनाए कृषि कानूनों को वापस नहीं ले रही है।

सरकार का तर्क है कि किसान अपनी बात खुद कहते तो और बात थी। उनके आंदोलन को राजनीतिक दल हवा दे रहे हैं। उनके लिए राजनीतिक दल आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार का तर्क है कि वह जिस दिन से सत्ता में आई है। किसानों के ही भले की बात कर रही है। उनके हित में जितने भी काम किए गए हैं, सब सिलसिलेवार गिना रही है। साथ ही यह भी बता रही है कि जो लोग किसानों के कंधे पर रखकर अपनी राजनीति की बंदूक चला रहे हैं, वे खुद कभी किसानों को इसी तरह की सुविधाएं देने की बात कर रहे थे। उनके आडियो—वीडियो तक जनता को सुनाए जा रहे हैं। सरकार ने तो किसानों के लिए विशेष रूप से सौ ट्रेनें चला रखी हैं। इससे पहले की किसी भी सरकार ने ऐसा नहीं किया था। ये ट्रेनें भी साधारण नहीं हैं, अपने आप में चलता—फिरता कोल्ड स्टोरेज हैं। ऐसा उसने इसलिए किया है कि कृषि उत्पाद रास्ते में खराब न हों। सरकार किसानों के आंदोलन से हतप्रभ है। उसे वह कहावत याद आ रही है कि ‘जेकरे खातिर चोरी करो, उहै कहै चोरवा।’ किसानों को इतनी बात तो सोचनी ही होगी कि विश्व व्यापार संगठन भी नहीं चाहता कि सरकार एमएसपी पर कृषि उत्पादों को खरीदे। वह चाहता है कि सरकार किसानों को समय —समय पर नकद राशि राहत स्वरूप देती रहे, जिससे कि उस पैसे से किसान दूसरी चीजों को खरीदें। कनाडा भी एमएसपी व्यवस्था का विरोध करता रहा है, आज अगर वह किसानों से वार्ता करने का सरकार पर दबाव दे रहा है तो इसके पीछे उसके अपने राजनीतिक हित हैं। यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में किसानों का अपना नफा —नुकसान खुद देखना होगा। उसे अगर थाली पीटनी ही है तो वह विकास की थाली पीटे। ऐसे काम करे जिससे कि उसके खेत सोना उगलें। आंदोलन से किसानों का न पहले भला हुआ है और न अब होने वाला है। इसलिए किसान सबकी सुनें लेकिन करें वही,जो उनके अपने हित की हो।

मामूली विवाद में दो पक्षों में हुआ खूनी संघर्ष, एक की मौत, छ्ह घायल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष के अंत में अपने मन की आखिरी बात की। उनकी मन की बात का दिल्ली सीमा पर आंदोलित किसानों ने थाली बजाकर विरोध किया और तर्क दिया कि  मोदी जी ने कहा था कि ताली बजाने और थाली बजाने से कोरोना भाग जाएगा। हम थाली इसलिए बजा रहे हैं कि कृषि कानून भाग जाए और हमारा नववर्ष मंगलमय हो जाए। सवाल उठता है कि किसानों को कानून चाहिए या नहीं। अपनी बात मनवाने के लिए वे पूरे एक माह से आंदोलन कर रहे हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है। किसान कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री अपने मन की बात कहकर चले जाते हैं लेकिन हमारी बात नहीं सुनते। उनके समर्थक नेता भी कुछ इसी तरह की बात करते हैं कि उनके मन की बात सुनी जाए। लोग अपने तरीके से अपने मन की बात करते भी हैं। इस देश का हर व्यक्ति कुछ न कुछ बोलता है लेकिन उसके सुने जाने की अपनी सीमा होती है। बात सब सुनें, इसके लिए पात्रता तो जरूरी होती ही है,बात में दम भी होना चाहिए। इस बात को कदाचित कोई समझना नहीं चाहता। तिस पर शिकायत यह कि कोई उसकी बात नहीं सुन रहा है। तर्क और तथ्य के आईने में कही गई बात पर ही संसार गौर करता है, इसमें कोई ननुनच नहीं है।

नेपाल पर चीन की चापलूसी पर भारत सरकार की कड़ी नजर

प्रधानमंत्री होने के नाते नरेंद्र मोदी को सबके मन की बात सुननी चाहिए। यह उनका धर्म भी है और दायित्व भी। अगर वे हर माह अपने मन की बात कहकर इस देश की जनता का मनोबल बढ़ाते हैं, उन्हें कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं। कुछ नवोन्मेष करने की बात करते हैं। कौशल प्रशिक्षण और अपने में काबिलियत पैदा करने की सलाह देते हैं तो इसमें गलत क्या है? वे उन प्रधानमंत्रियों में नहीं जिनकी आवाज छब्बीस जनवरी,पंद्रह अगस्त को ही पूरी राष्ट्र सुना करता था या किसी खास अवसर पर उनकी बातें सुनने को मिल जाया करती थीं। प्रधानमंत्री ने अपने छह साल बिना किसी अवकाश के देशहित के काम करते हुए बिताए हैं।

भारतीय संस्कृति में ताली तब बजाई जाती है जब किसी का अभिवादन करना हो, किसी को शाबासी देनी हो। थाली तब बजाई जाती है जब परिवार में कोई मंगल अवसर उपस्थित हुआ हो। मसलन परिवार में पुत्ररत्न आदि की प्राप्ति हुई हो लेकिन यहां विरोध की थाली बज रही है, यह बात समझ से परे है। जो लोग अपने हित के लिए देश के हितों को ताक पर रख रहे हैं। टोल नाका फ्री कराए बैठे हैं, वे देश का कितना नुकसान कर रहे हैं, शायद इसकी उन्हें कल्पना भी नहीं है।

रही बात कानून की,तो वह  व्यक्ति के काम करने और रहन—सहन की सीमा निर्धारित करता है। उसके लिए क्या  उचित है और  क्या अनुचित, यह तय करता है। कानून कुछ नहीं, व्यक्ति की जीवनशैली का नियमन है। व्यक्ति खुद नियंत्रित हो जाए तो उसे पुलिस और अदालत की वैसे भी कोई जरूरत नहीं  होती लेकिन जब देश का हर आदमी ऐसा करेगा तभी इसकी अहमियत है। वर्ना जो कुछ भी होगा, वह किसी बुरे सपने और भयावह मंजर से कम नहीं होगा।

कानूनगो का रिश्वत लेने का वीडियो वायरल, डीएम ने किया निलंबित

कानून के साथ एक सच यह भी है कि वह किसी व्यक्ति को स्वच्छंद नहीं रहने देता। संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो बंदिशों को पसंद करता हो। सबकी एक ही कोशिश होती है कि उस पर किसी का नियंत्रण न रहे। उसके काम—काज में कोई रोक—टोक, कोई व्यवधान न हो।’ परम स्वतंत्र न सिर पर कोई’ वाली भावभूमि ही सबको अच्छी लगती है लेकिन अगर कानून न हो, संविधान न हो, जीवन जीने की कोई आचार संहिता न हो तो क्या होगा? जीवन नर्क हो जाएगा। कोई रोक—टोक और आपत्ति करने वाला न हो तो व्यक्ति का जीना मुश्किल हो जाएगा। देश में बेहद अराजक माहौल सृजित हो जाएगा। सब अपने—अपने हित पर आमादा हो जाएंगे और संसार से शांति का नामोनिशान मिट जाएगा। सबको केवल ‘अपना कहा, अपना किया’ ही अच्छा लगेगा।  लोग एक दूसरे के हितों पर भारी पड़ने लगेंगे। जब कानून ही नहीं रहेगा तो व्यवस्था की कल्पना ही बेमानी है।

मन की बात तो सभी कहना चाहते हैं लेकिन कह कितने लोग पाते हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। मन की बात को कहना बहुत आसान नहीं है। मन हमेशा सुख की ही अनुभूति करे, ऐसा मुमकिन तो नहीं। सुख—दुख दोनों भाई हैं। दोनों के स्वभाव और प्रभाव अलग—अलग हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यूं समझें कि एक पेट है और दूसरा पीठ है। पेट—पीठ को जैसे एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता,वैसे ही सुख—दुख को भी व्यक्ति के जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। छाया तो प्रकाश के साथ ही रहती है।

बरेली सेंट्रल जेल में फूटा कोरोना बम, 21 कैदी समेत 49 लोग संक्रमित

कविवर रहीम ने तो यहां तक कहा है कि’रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय। सुनि इठलैंहैं लोग सब, बांटि न लैंहै कोय।’यह बहुत बड़ी सीख है लेकिन हमने इसे जीवन में कितना अपनाया, यह किसी से छिपा नहीं है। अधिकांश लोग कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे में है। संविधान खतरे में है लेकिन किसके चलते तो सबका एक ही जवाब होगा कि सरकार के चलते। सरकार किसने बनाई, इस तरफ कोई सोचता ही नहीं। सरकार जब आपने बनाई है तो सरकार के काम के लिए उत्तरदायी कौन है, इसका जवाब कौन देगा? जनता को सरकार से परेशानी है तो क्या सरकार नाम की व्यवस्था समाप्त कर दी जाए? संविधान से परेशानी है तो क्या संविधान खत्म कर दिया जाए? पुलिस—प्रशासन से परेशानी है तो क्या पुलिस प्रशासन की व्यवस्था खत्म कर दी जाए? ऐसे में बचेगा क्या? जनता और उसकी स्वच्छंदता। जनता का मतलब व्यक्ति और उसकी गतिविधियां। जब कोई काम का मूल्यांकन करने वाला ही नहीं होगा तो कौन किसकी बात मानेगा? यह अपने आप में बड़ा किंतु जटिल सवाल है और इसका जवाब आम जनमानस की ओर से आना ही चाहिए।

प्रधानमंत्री देशवासियों से अपील कर रहे हैं कि वे देश में बनाए सामानों का ही इस्तेमाल करें  जिससे देश के कारीगरों को,उत्पादकों को लाभ हो। कुछ लोगों का तर्क है कि वे सरकार से बात भी करेंगे और मानेंगे भी नहीं। यह तो वही बात हुई कि ‘पंचों की राय सिर माथे लेकिन खूंटा नहीं उखड़ेगा।’ ऐसी  वार्ता का तो कोई मतलब ही नहीं है। सरकार को लगता है कि उसने अच्छा कानून बनाया है और देश के अधिकांश किसानों को, बुद्धिजीवियों को लगता है कि पहली बार किसानों के लिए कुछ विशेष हुआ है, लेकिन मुट्ठी भर किसान ऐसे ही हैं जो इस बहाने सरकार पर दबाव बना रहे हैं। इसमें कुछ राजनीतिक दल भी नीम पर करैले की तरह चढ़ गए हैं। वे दरअसल बात बनने ही नहीं दे रहे हैं।

किसान नेता यह तो चाहते हैं कि उनका नववर्ष मंगलमय हो लेकिन वे नए कृषि कानूनों को हटवाकर ही दम लेना चाहते हैं। सरकार की समस्या यह है कि वह एक बार झुकी तो राजनीतिक दल उसे सही ढंग से काम ही नहीं करने देंगे। छोटी—छोटी समस्या लेकर लोग सड़कों पर उतरने लगेंगे। मतलब समस्या के बादलों के आने का नहीं, परचने का डर है। इन कानूनों को खत्म करने का मतलब है, बड़े आढ़तियों और बड़े व्यापारियों की दुरभिसंधि का सफल होना। इससे देश मजबूत नहीं होगा, वरन कमजोर ही होगा।

एक राजनीतिक दल सोवियत संघ की तरह ही भारत के टूटने के अगर दावे कर रहा है तो समझ सकते हैं कि षड़यंत्रों के तार कितने लंबे हैं और कहां—कहां फैले हैं। थाली और ताली पीटने से नहीं, अपने और देश के बारे में सोचने और तदनुरूप काम करने से ही किसानों का नववर्ष मंगलमय होगा। उनका भी और देश का भी।

Tags: 100 kisan trainfarmer protest in delhifarmer protest Newsfarmer protest updateskisan trainNational news
Previous Post

दारुल उलूम ने कोरोना वैक्सीन को लेकर नहीं जारी किया कोई फतवा : नौमानी

Next Post

आला अधिकारियों के पहुंचने से ग्रामीण आबादी दिखी संतुष्ट

Writer D

Writer D

Related Posts

Bada Mangal
Main Slider

मंगलवार को भूलकर भी न करें ये काम, बजरंगबली हो जाएंगे कुपित

28/10/2025
Worship
Main Slider

पूजा करते समय न करें ये गलतियां, हो सकता है बड़ा नुकसान

28/10/2025
Kitchen
Main Slider

किचन से जुड़ी हैं घर की बरकत, रखें इन बातों का ध्यान

28/10/2025
divyangjan
उत्तर प्रदेश

सरकारी भवनों को दिव्यांग हितैषी बना रही योगी सरकार

27/10/2025
CM Dhami
राजनीति

छठ पर्व हमारी सनातन संस्कृति की उस उज्ज्वल परंपरा का प्रतीक:

27/10/2025
Next Post
Rural population appeared satisfied with the arrival of top officials

आला अधिकारियों के पहुंचने से ग्रामीण आबादी दिखी संतुष्ट

यह भी पढ़ें

अबू यूसुफ

अबू यूसुफ के पिता बोले- बेटे की करतूत से बाप-दादाओं की कमाई इज्जत खाक में मिल गई

23/08/2020
Akhilesh Yadav

सपा ने निकाय चुनाव में परिवारवाद और जातिवाद को किया दरकिनार

13/04/2023

भारत-इंग्लैंड का पांचवा टेस्ट मैच रद्द, फैंस को लगा झटका

22/10/2021
Facebook Twitter Youtube

© 2022 24घंटेऑनलाइन

  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म

© 2022 24घंटेऑनलाइन

Go to mobile version