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स्वच्छता का संदेश देती शीतला माता

Writer D by Writer D
01/04/2024
in धर्म
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Sheetala Mata

Sheetala Ashtami

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हमारे देश में विविध पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक सोच व तत्व-दर्शन निहित है। होली के एक सप्ताह बाद मनाये जाने वाले शीतलाष्टमी त्योहार पर शीतला माता (Sheetala Mata) का पूजन कर व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि माता के पूजन से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों का मुक्ति मिलती है। चूंकि ऋतु-परिवर्तन के दौरान इस समय संक्रामक रोगों के प्रकोप की काफी आशंका रहती है। इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए श्रद्धालु शीतलाष्टमी के दिन माता का विधिपूर्वक पूजन करते हैं जिससे शरीर स्वस्थ बना रहे।

शीतला माता (Sheetala Mata) स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है। इनका सैदव से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। शीतला-मंदिरों में प्रायः माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी – हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती – रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।

शीतला माता (Sheetala Mata) देवी है जो गधे पर सवार होती हैं और नीम के पत्तों की माला का श्रृंगार करती हैं। इस दिन घर में बासी पुआ, पूड़ी, दाल9भात और मिठाई का भोग लगाया जाता हैं। शीतला माता को भोग लगाने के बाद घर के सदस्य खुद इसका सेवन करते हैं। सामान्य तौर पर शीतला माता का पूजन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं। उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्योहार बसौड़ा नाम से भी प्रचलित है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।

इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की पांच अंगुली घी से लगाई जाती है। इस पर रोली और चावल लगाकर देवी माता के गीत गाये जाते हैं। इसके साथ, शीतला स्तोत्र तथा कहानी सुनी जाती है। रात में जोत जलाई जाती है। एक थाली में बासी भोजन रखकर परिवार के सारे सदस्यों का हाथ लगवाकर शीतला माता के मंदिर में चढ़ाते हैं। इनकी उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।

शीतला माता (Sheetala Mata) की महत्ता के विषय में स्कंद पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें उल्लेख है कि शीतला देवी का वाहन गर्दभ है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किये हैं। इनका प्रतीकात्मक महत्व है। आशय यह है कि चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम की पत्तियां फोड़ों को सड़ने नहीं देतीं। रोगी को ठंडा जल अच्छा लगता है, अतः कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं।

स्कंद पुराण में शीतला माता (Sheetala Mata) की अर्चना का स्तोत्र है शीतलाष्टक। माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने की थी। यह स्तोत्र शीतला देवी की महिमा का गान कर उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित करता है।

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्,

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।

अर्थात गर्दभ पर विराजमान दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से स्पष्ट है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाड़ू) होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में चेचक, खसरा, दाह, ज्वर, पीतज्वर, दुर्गधयुक्त फोड़े और नेत्रों के रोग आदि दूर हो जाते हैं। माता के रोगी के लिए यह व्रत बहुत मददगार है।

मां शीतला को लगाया जाता है बासी खाने का भोग, जानें वजह

आमतौर पर, शीतला रोग के आक्रमण के समय रोगी दाह (जलन) से निरंतर पीड़ित रहता है। उसे शीतलता की बहुत जरूरत होती है। गर्दभ पिंडी (गधे की लीद) की गंध से फोड़ों का दर्द कम हो जाता है। नीम के पत्तों से फोड़े सड़ते नहीं है और जलघट भी उसके पास रखना अनिवार्य है। इससे शीतलता मिलती है।

लोक किंवदंतियों के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता (Sheetala Mata) की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढिया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढिया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढिया ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढिया का घर जलने से बचा लिया। बुढिया की बात सुनकर गांव वालों ने शीतलामाता से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।

इस दिन मनाई जाएगी शीतलाष्टमी, ऐसे लगाएं माता को बसौड़ा का भोग

संसार में दो प्रकार के प्राणी होते है। पहला सौर शक्ति प्रधान और दूसरा चान्द्र शक्ति प्रधान। सौर शक्ति के बारे में कहा जाता है कि सौर शक्ति जीव बहुत चंचल, चुलबुले, तत्काल बिगड़ उठने वाले और असहनशील होते हैं जबकि चान्द्र शक्ति प्रधान व्यक्ति इसके विपरीत होते है। चान्द्र शक्ति प्रधान जीवों में प्रमुख गधा ही माता शीतला का वाहन हो सकता है। यहां गधा संकेत देता है कि चामुण्डा के आक्रमण के समय रोग का अधिक प्रहार सहन करते हुए रोगी को कभी अधीर नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त शीतला रोग में गर्दभी का दूध, गधा लोटने के स्थान की मिट्टी और गधों के संपर्क का वातावरण उपयुक्त समझा जाता है। कहते हैं कि कुम्हार को चामुण्डा का भय नहीं होता है। वहीं ऊंट वाले को कभी पेट का रोग नहीं होता। चामुण्डा शववाहना के अनुसार चामुण्डा का वाहन शव होता है। इसका तात्पर्य यह है कि चामुण्डा से आक्रान्त रोगी को शव की भांति निश्चेष्ट होकर उचित समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

Tags: Sheetala Ashtami 2024Sheetala Ashtami aartiSheetala Ashtami datesheetala ashtami mantrasheetala mata
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