नई दिल्ली। रूस में वैक्सीन आने के बाद दुनियाभर में चर्चाएं तेज हो गई हैं। रूस ने दावा किया है कि उसके यहां 12 अगस्त को वैक्सीन का पंजीकरण होगा और अक्तूबर महीने से पूरे देश में बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा।
हालांकि रूस के इन दावों पर ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई अन्य देशों के विशेषज्ञों ने इस वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं। इस बीच पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी बता दिया है कि उसकी वैक्सीन कब तक बाजार में आ जाएगी।
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सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। वह भारत में कोविशील्ड नाम से वैक्सीन लॉन्च करने जा रही है। इस वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। इसे तैयार करने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी के करार किया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि कोरोना वैक्सीन इस साल के अंत तक तैयार हो सकती है। उन्होंने इसकी कीमत के बारे में कहा कि अगले दो महीने में वैक्सीन के दामों का एलान किया जाएगा।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने हाल ही में बताया था कि वैक्सीन के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और गावी के साथ बड़ी साझेदारी हुई है। इसके तहत भारत और निम्न आय वाले देशों के लिए वैक्सीन की 100 मिलियन यानी 10 करोड़ खुराक के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
बता दें कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के अलावा सीरम इंस्टीट्यूट नोवावैक्स की वैक्सीन का भी उत्पादन करने वाला है। इन दोनों वैक्सीन के उत्पादन में साझेदारी के तहत बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने करीब 150 मिलियन डॉलर की मदद करने का फैसला लिया है। सीरम इंस्टीट्यूट को इसे बनाने में प्रति खुराक तीन डॉलर की लागत आ सकती है। यह भारतीय रुपये के हिसाब से करीब 225 रुपये होता है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि इस वैक्सीन की कीमत 225 रुपये हो सकती है।
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अदार पूनावाला ने पहले कहा था कि अगस्त के अंत तक, पुणे और मुंबई में 4,000 से 5,000 लोगों को वैक्सीन का इंजेक्शन लगाया जाएगा, जो कि ट्रायल का ही एक भाग होगा और यह दो महीने तक चलने वाला है। उन्होंने कहा था कि कंपनी का लक्ष्य साल के अंत तक 300 मिलियन से 400 मिलियन यानी 30 करोड़ से 40 करोड़ खुराक बनाने का है।
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कहा जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड की इस वैक्सीन ने कोरोना वायरस के खिलाफ दोहरा मार करने में सफलता हासिल की है। ट्रायल के दौरान वैक्सीन के प्रभाव से इंसानी शरीर में एंटीबॉडी और टी-कोशिकाएं दोनों बनीं। आपको बता दें कि टी-कोशिकाएं वायरस की पहचान करने में मदद करती हैं, जबकि एंटीबॉडी वायरस से लड़ती है। इस वैक्सीन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं।