केंद्र सरकार ने सीबीआई के 5 अधिकारियों और एक वरिष्ठ सरकारी वकील को जबरन रिटायर कर दिया है। जानकारी के मुताबिक केंद्र ने इन अधिकारियों और वकील को मौलिक नियमों के जनहित से जुड़े खंड 56 (जे) के तहत हटाया है।
रिटायरमेंट के साथ अधिकारियों को सरकार की ओर से 3 माह का वेतन और भत्तों का भुगतान किया गया है। बता दें कि रिटायर किए गए पांच अधिकारियों में से एक सहायक पुलिस अधीक्षक और चार पुलिस उपाधीक्षक हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि यह ईमानदारी और कर्तव्य के प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए सीबीआई में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का हिस्सा है। मौलिक नियमों के जनहित से जुड़े खंड 56 (जे) के तहत सरकार को कम से कम तीन महीने का लिखित नोटिस देकर रिटायरमेंट देने का अधिकार है। वहीं नोटिस न देने की स्थिति में कर्मचारी को 3 महीने का वेतन और भत्ता देकर किसी भी सरकारी कर्मचारी को सार्वजनिक हित में सेवानिवृत्त करने का पूर्ण अधिकार है।
बता दें कि यह कोई पहली दफा नहीं है कि जब सरकार ने कर्मचारियों को जबरन रिटायरमेंट दी हो। इससे पहले जून 2019 में केंद्र सरकार ने ऐसा ही फैसला लिया था। दरअसल, सरकार ने आयकर विभाग के 12 सहित 27 वरिष्ठ भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था।
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सरकार ने एक जॉइंट कमिश्नर रैंक के अधिकारी समेत 12 वरिष्ठ आयकर अधिकारियों को भ्रष्टाचार और पेशेवर कदाचार के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद अगस्त 2019 में सरकार ने 22 कर अधिकारियों पर भष्टाचार और अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए बर्खास्त कर दिया था।
गौरतलब है कि सरकारी सेवा में 50 साल की उम्र पूरी होने के बाद या सेवा के 30 साल पूरे करने के बाद खंड 56 (जे) के सीसीएस (पेंशन) रूल्स रिटेंशन के तहत सरकार किसी भी सरकारी सेवक को जबरन सेवानिवृत्ति देने का अधिकार रखती है। हालांकि इस संबंध में फैसला लेने से पहले सरकार कर्मचारियों के काम-काज की समीक्षा करती है। इस दौरान अगर सरकार को लगता है कि किसी कर्मचारी को सेवा से हटाने की जरूरत है तो इस संबंध में फैसला लिया जाता है।