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कोरोना संकट के चलते कर्ज पुनर्गठन कराना हुआ मुश्किल

Desk by Desk
03/11/2020
in ख़ास खबर, राष्ट्रीय
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economy

अर्थव्यवस्था

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नई दिल्ली| कोरोना संकट के चलते छह माह तक किस्त चुकाने की छूट (लोन मोरेटोरियम) के बाद छोटे और व्यक्तिगत कर्जदाताओं को कर्ज पुनर्गठन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। बहुत सारे लोग इस बात की शिकायत करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहे हैं।

उनका कहना है कि वह अपनी पात्रता बैंक को समझाने में असमर्थ है जिससे उनका कर्ज पुनर्गठन नहीं हो पा रहा है। ऐसा कर्ज पुनर्गठन को लेकर सभी बैंकों के अलग-अलग नियम होने से हुआ है। बैंक अपनी मर्जी के अनुसार फैसला कर रहे हैं। वहीं, लोन मोरेटोरियम में आरबीआई द्वारा एक नियम बनाने से किसी को मसस्या नहीं हुई थी।

व्यक्तिगत कर्जदारों का कहना है कि बैंक पात्रता नियमों की अपनी व्याख्या के आधार पर ऋण पुनर्गठन के अनुरोधों को अस्वीकार कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि सरकारी बैंकों के मुकाबले निजी बैंकों में लोन पुनर्गठन ठुकराने के मामले कई गुना अधिक है।

रिजर्व बैंक ने नौ नवंबर से बाजार का बढ़ाया समय

गौरतलब है कि कोरोना संकट के कारण छह महीने के लोन मोरेटोरियम (किस्त चुकाने की छूट) के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय रूप से कमजोर कर्जदाताओं को दो साल के लिए कर्ज पुनर्गठन कराने की सुविधा दी थी। हालांकि, इसके लिए आरबीआई ने कोई तय नियम नहीं बनाया और वह बैंकों को स्वविवेक पर फैसला करने को कहा था।

बैंक के ग्राहकों को लोन पुनर्गठन की शर्तों और शुल्क की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। बैंक लोन पुनर्गठनके लिए प्रोसेसिंग फीस 1000 रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक वसूल रहे हैं। इतना ही नहीं बैंक बकाया लोन पर ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी कर रहे हैं।

बैंकिंग विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना संकट के बीच बैंकों द्वारा लोन पुनर्गठन के लिए प्रोसेसिंग फीस और उच्च ब्याज वसूलना बिल्कुल गलत है। बैंक इस आपदा में कमाई के अवसर तलाश रहे हैं। इससे आम लोगों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति खराब होगी। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को इस मामले में फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए और आम लोगों को दी जानी चाहिए।

Tags: corona crisiseconomyLoan MoratoriumModi governmentproduction of companiesRBIअर्थव्यवस्थाआरबीआईकंपनियों का उत्पादनकोरोना संकटमोदी सरकारलोन मोरेटोरियम
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