सियाराम पांडेय’शांत’
उत्तराखंड। उत्तराखंड में भाजपा सरकार की लगातार गिर रही साख से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का केंद्रीय नेतृत्व भी चिंतित है। अब वह त्रिवेंद्र सिंह रावत को और समय देने के पक्ष में नहीं है।
शासकीय कार्यों में गति लाने एवं लंबित पत्रावलियों के त्वरित निस्तारण की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की घोषणा को संघ ने खास तवज्जो नहीं दी है। जब चुनाव होने में एक-डेढ़ वर्ष ही शेष हैं। तब इस तरह की बयानबाजी यह साबित करती है कि त्रिवेंद्र अपने सहायकों पर कितने आश्रित हैं?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के रवैये से नाराज हैं चंद्रशेखर उपाध्याय
पं.दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र न्यायविद् चंद्रशेखर उपाध्याय ने वर्षो से लंबित दो पत्रावलियों को अकारण रोके जाने पर त्रिवेंद्र से सवाल किया है। यह पहला मौका है जब भारतीय जनसंघ के शलाका पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय के परिजनों ने अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर व्यक्त की है।
सूत्रों की मानें तो चंद्रशेखर 24 अगस्त को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता करने जा रहे हैं, 24 अगस्त 2004 को ही चंद्रशेखर उपाध्याय ने उत्तराखंड के एडिशनल एडवोकेट जनरल का पद ग्रहण किया था। नाना जी देशमुख की सलाह पर तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री पं. नारायण दत्त तिवारी ने चंद्रशेखर को इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति दी थी।
सूत्रों के मुताबिक संघ के केंद्रीय नेतृत्व ने चंद्रशेखर को दिल्ली आने एवं नरेंद्र मोदी व अमित शाह के साथ बैठक कराने का भरोसा दिलाया है। संघ का केंद्रीय नेतृत्व लगातार त्रिवेंद्र को इन दोनों पत्रावलियों को निस्तारित करने के लिए कह चुका है परंतु हमेशा नतीजा सिफर ही रहा है।
संघ का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय संघ नेतृत्व से भी नाखुश है कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर उसने त्रिवेंद्र, उनके सलाहकारों एवं चंद्रशेखर को एक साथ क्यों नहीं बैठाया? संघ राज्यपाल की भूमिका पर भी क्षुब्ध है। दो साल बीत जाने के बाद भी राज्यपाल ने कभी चंद्रशेखर को बुलाकर वार्ता नहीं की जबकि उनके शपथ ग्रहण करने के पांच दिन बाद 31 अगस्त को ही उन्हें संपूर्ण विषयों की जानकारी दे दी गई थी।
चंद्रशेखर के परिवार एवं राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के परिवार के बेहद आत्मीय ताल्लुकात रहे हैं। आगरा में चंद्रशेखर का निवास और राज्यपाल का मायका आसपास ही है। राज्यपाल चंद्रशेखर की भाभी डॉ. कमला उपाध्याय की विद्यार्थी रही हैं।
सूत्रों के अनुसार अभी पिछले तीन चार नवंबर को ही संघ के केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा के प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू एवं सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश को निर्देश दिया था कि तत्काल दोनों विषयों पर त्रिवेंद्र के साथ चंद्रशेखर को बैठाया जाए। वार्ता में दोनों को मौजूद रहने के लिए कहा गया था, परंतु नौ महीने बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ मुमकिन नहीं हो सका।
करुण नायर के कोविड-19 पॉजिटिव की खबर भड़के सतीश मेनन
चंद्रशेखर देश में हिंदी को रोजी-रोटी से जोड़ने के अभियान के अगुवाओं में शुमार हैं। उनके कई अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय कीर्तिमान हैं। वे लगातार नैनीताल हाईकोर्ट में हिंदी भाषा में संपूर्ण वाद कार्यवाही प्रारंभ किए जाने हेतु संघर्षरत हैं, उनकी कई कोशिशें मिसाल रही हैं। परन्तु त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास उनसे मिलने का समय नहीं है। यह दिलचस्प है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों पं. नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा एवं हरीश रावत तीनों ने उन्हें सहयोग दिया है।
भारतीय जनसंघ के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की यह नाराजगी किस-किस को राज-काज से वंचित करेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड सचिवालय फाइलों पर कार्यवाही की सुस्त रफ्तार को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहा है। राज्य गठन से अब तक ऐसे तमाम मौके आए जब राजनेताओं ने फाइलों की सुस्त रफ्तार पर अपनी नाराजगी जाहिर की, लेकिन नतीजे वहीं ढाक के तीन पात वाले रहे।
गत दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को को जब आदेश होने के 14महीनेे तक एक फाइल के लटके होने की जानकारी दी गई तो उनके आदेश पर लोक निर्माण विभाग के एक अनुभाग अधिकारी से लेकर कंप्यूटर आपरेटर तक को हटा दिया गया। यह मामला संज्ञान में आने के बाद फाइलों पर होने वाली कार्यवाही की स्थिति जांचने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री ने खुद उठा ली है। फाइलों के मामले में राज्य सचिवालय का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सचिवालय की कार्य प्रणाली पर अपनी व्यथा जाहिर की थी कि उनकी फाइलों की जलेबी बना दी जाती है। हालांकि उन्होंने भी ई आफिस से इस समस्या का इलाज कराने की ठानी थी,लेकिन ई आफिस शुरू नहीं हो सका मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि सचिवालय में फाइलों को लेकर मैंने सभी सचिवों की बैठक बुलाई है।
इसमें उनके अनुभागों की फाइलों के बारे में जानकारी ली जाएगी। जिन अनुभागों में बिना किसी कारण के फाइलों को लंबे समय तक लटकाने के मामले में मिलेंगे, उनमें कार्रवाई की जाएगी। सचिवालय पूरे प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था का केंद्र है। हमने ई आफिस शुरू किया है। इसे जल्द से जल्द सभी अनुभागों से जोड़ा जाएगा।
गौरतलब है कि अक्सर नीतियों व योजनाओं की फाइलें इन विभागों के मंत्रालयों व अनुभागों में फंस कर रह जाती है। जिन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है और आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा है कि वे अब शासन के सभी सचिवों से उनके विभागों से जुड़े अनुभागों की फाइलों का हिसाब लेंगे,जिन अनुभागों में फाइलों पर कार्यवाही का रिकॉर्ड खराब होगा, वहां तैनात कार्मिकों को बदलने का अभियान चलाएंगे।
इसके विपरीत चंद्र शेखर उपाध्याय का कहना है कि दो पत्रावलियां 3 साल 5 महीने से मुख्यमंत्री की दराज में रखी हुई हैं । इनमें एक पत्रावली जहां 8 साल 11 महीने से लम्बित है वहीं दूसरी 7 साल 5 महीने से। क्या मुख्यमंत्री इनके निस्तारण का साहस दिखायेंगे? उन्होनें यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री जब खुद पत्रावली दबाए बैठे हैं तो उनके मातहत भी तो उन्हीं का अनुसरण करेंगे। बड़े लोग जो करते हैं,वही तो आदर्श बनता है।
चंद्रशेखर उपाध्याय के कांग्रेस में जाने की अटकलें तेज
मिली जानकारी के अनुसार राजनीतिक गलियारों में चंद्रशेखर उपाध्याय के कांग्रेस में जाने की अटकलें तेज हैं। मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी व अहमद पटेल से कई मुलाकातें हो चुकी हैं।