सियाराम पांडेय ‘शांत’
चीन के पापों का धड़ा भर गया है। उसकी बदनीयती उसे कहीं का नहीं रहने देगी। दूसरे देशों की जमीन हड़पने वाली अपनी नीति के चलते वह दुनिया भर में बदनामी का दंश झेल रहा है। वह किसी का भी सगा नहीं है। चीन अपने दोस्त देशों को भी सुख नहीं दे सकता, यह बात पूरी तरह प्रमाणित हो चुकी है।भारत ने चीन के साथ दिल से दोस्ती की, चीन ने उसे युद्ध की आग में झोंक दिया। उसकी भूमि हथिया ली। पंचशील के सिद्धांत उसके लिए तब भी मायने नहीं रखते थे और आज भी मायने नहीं रखते।
चीन की प्रवक्ता हुआ चिनयिंग ने कहा है कि अपने स्थापना काल के बाद के 70 वर्षों में न तो कभी देश को युद्ध के लिए उकसाया है और न ही किसी भी देश की एक इंच भूमि हड़पी है। सवाल यह उठता है कि अगर चीन इतना ही निर्दोष है तो भारत के साथ उसका विवाद क्यों हैं? पिछले पांच माह से वह पूर्वी लद्दाख में वह कर क्या रहा है?
दुनिया के तमाम देश उस पर विस्तारवादी होने का आरोप क्यों लगा रहे हैं? भारत समेत 23 देशों के राष्ट्राध्यक्ष चीन पर अपनी जमीन हड़पने का आरोप क्यों लगा रहे हैं? बिना आग के धुआं तो उठता नहीं। फिर चीन के खिलाफ अगर 23 देश बोल रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि चीन की दाल में कुछ तो काला है ही।
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नेपोलियन बोनापार्ट जिसकी डायरी में असंभव शब्द था ही नहीं, अगर उसने भी आज के 200 साल पहले चीन को सोता हुआ दैत्य कहा था और यह आशंका जाहिर की थी कि अगर चीन जागेगा तो दुनिया भर में आतंक मचा देगा तो वह अकारण नहीं था। चीन का राष्ट्रीय चिह्न भी ड्रैगन है। ड्रैगन यानी दैत्य। नेपोलियन बोनापार्ट की भविष्यवाणी को सच होते पूरा संसार देख रहा है।
चीन निर्मित कोरोना वायरस से पूरी दुनिया त्राहि—त्राहि कर रही है। सामने वाले की दोनों आंखें अगर फूटते देखने का सुख मिले तो कुछ लोग अपनी एक आंख फुड़वाने में भी गुरेज नहीं करते, चीन के साथ भी कुछ ऐसा ही है। चीन में चाहे राजतंत्र रहा हो या गणतंत्र अथवा साम्यवादी शासन, हर काल में उसने अपनी ताकत और हथियार के बल पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया है। चीन के कई प्राचीन राजवंशों ने देश की सीमा को कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया और मध्य एशिया तक बढ़ाया था।
1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी शासन की स्थापना के बाद तो चीन की विस्तारवादी नीति और तेजी से बढ़ी। माओ त्से तुंग ने तो खुले तौर पर कहा था कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। बंदूक और गोली की बात करने वाला चीन अहिंसक और शांतिप्रिय कैसे हो सकता है?
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शी जिनपिंग सरकार के प्रवक्ता को चीन की निर्दोषिता साबित करने से पूर्व कम से कम माओ त्से तुंग के उक्त कथन और उसके भावार्थ पर ही विचार कर लेना चाहिए था। चीन के डीएनए में ही शांति और सौहार्द का भाव नहीं है। चीन अपने 14 पड़ोसियों की जमीन पर ही दावा नहीं करता, वह अपने से 8 हजार किलोमीटर दूर अमेरिका के एक हवाई द्वीप को भी अपना बताता है।
चीन का मानना है कि कोलंबस से पहले ही चीन के नाविकों ने अमेरिका की खोज कर ली थी। उसका बस चले तो वह पूरे अमेरिका को अपना बता बैठे लेकिन केवल दावे से बात नहीं बनती। चीन का दावा है कि चीनी नाविकों ने कोलबंस से बहुत पहले ही अमेरिका की खोज कर ली थी। अमेरिका के न्यू मैक्सिको राज्य के चट्टानों पर बने चित्रों को वह इसका प्रमाण बताता है। उसका दावा तो यह भी है कि यूरोप की खोज से शताब्दियों पहले उसके नाविक आस्ट्रेलिया में बस गये थे।
1949 में माओ त्से तुंग की साम्यवादी सरकार ने सर्वप्रथम पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया था जिसे वह आज अपना शिनजियांग प्रांत कहता है। चीन ने मई 1950 में तिब्बत पर आक्रमण कर इसे अपने अधीन कर लिया। यूं तो चीन शिनजियांग और तिब्बत को स्वायत्त क्षेत्र बताता है लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में उसका दमनचक्र भी किसी से छिपा नहीं है। मंगोलिया पर भी उसने कब्जा कर रखा है। 1969 में पूर्वी एशिया में उसूरी नदी के एक टापू को लेकर चीन रुस से भी भिड़ चुका है। इस सैन्य झड़प में चीन के 300 और सोवियत संघ के 31 सैनिक मारे गए थे। रूस से 52 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन का विवाद चल रहा है।
चीन का इतिहास रहा है कि उसने जिस किसी भी देश के साथ मित्रता की, उसकी जमीन उसने जरूर हड़पी या हड़पने का प्रयास किया। नेपाल का दृष्टांत बिल्कुल ताजा है। चीन ने भारत के साथ मित्रता की और लद्दाख में उसने उसकी 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली। 14,380 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अक्साई चिन का इसमें शामिल है। 5180 वर्ग किमी इलाका पीओके का पाक ने चीन को दे रखा है। अभी भी उसकी नजर पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी पर कब्जा करने की है।
चीन की नजर तकरीबन दो दर्जन देशों की जमीनों पर है। यूं तो चीन की सीमा 14 देशों से ही लगती है, लेकिन वह 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं पर अपना दावा जताता है। चीन अब तक दूसरे देशों की 41 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि कब्जे में ले चुका है, यह मौजूदा चीन के क्षेत्रफल का 43 प्रतिशत है। 60-70 साल में अगर चीन का क्षेत्रफल दोगुना हो गया है तो यह उसकी नापाक विस्तारवादी नीति का ही नतीजा है।
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माओ से शी जिनपिंग तक के राजनीतिक सफर में चीन ने पड़ोसी देशों में अनधिकृत कब्जे भी किए हैं और उन देशों को युद्ध के लिए उकसाया भी है। बगुला भगत बनने से पहले चीन को अपने द्वारा अब तक किए गए कब्जों पर भी नजर डाल लेनी चाहिए। उसे अपना अंतर्मन टटोलना चाहिए लेकिन जिनके दिल मलीन होते हैं, आंखों पर लोभ का पर्दा पड़ा रहता है, वे अंतर्मंथन नहीं किया करते। चीन के साथ भी कुछ ऐसा ही है। 1934 से 1949 तक पूर्वी तुर्किस्तान का 16.55 लाख वर्ग किमी भूमि चीन अपने कब्जे में ले चुका था। 7 अक्टूबर 1950 को उसने 12.3 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले तिब्बत पर कब्जा कर लिया। 11.83 लाख वर्ग किमी भूभाग वाले इनर मंगोलिया पर चीन ने अक्टूबर 1945 में हमला कर वहां अपना आधिपत्य जमा लिया। 35 हजार वर्ग किमी वाले समुद्रों से चारों ओर से घिरे ताइवान पर चीन की गिद्धदृष्टि किसी से छिपी नहीं है।
1949 में कम्युनिस्टों की जीत के बाद चीन के राष्ट्रवादियों ने ताइवान में शरण ली। चीन उसे अपना हिस्सा मानता है, लेकिन ताइवान डटकर उसके सामने खड़ा है। ताइवान को अमेरिकी समर्थन प्राप्त है। यही वजह है कि चीन चाहकर भी उस पर हमला नहीं कर पा रहा है। चीन ने 1997 में हांगकांग पर जबरन कब्जा कर लिया था। इन दिनों वह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर हांगकांग पर शिकंजा कसना चाहता है। मकाउ पर पहले ही वह कब्जा किए पड़ा है। पूर्वी चीन सागर में चीन का विवाद जापान से चल रहा है। 81 हजार वर्ग किमी के आठ द्वीपों पर चीन हड़पना चाहता है। 2013 में चीन के वायु सीमा जोन बनाने से विवाद बढ़ गया था।
दक्षिण चीन सागर में 7 देशों की भूमि हड़पने की चीन पूरी कोशिश कर रहा है। ताइवान, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, सिंगापुर से उसके रिश्ते छत्तीस के हैं। 35.5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिणी चीन सागर के 90 प्रतिशत क्षेत्र पर चीन अपना दावा करता है। पेंटागन अगर इस बात पर चिंता जाहिर कर रहा है कि चीन भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार के अलावा थाईलैंड,सिंगापुर, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशलस् , तंजानिया, अंगोला और तजाकिस्तान में भी अपने सैन्य अड्डे बना रहा है तो इससे उसके विघातक इरादों और कुटिलता का पता चलता है।
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एक ओर तो पूर्वी लद्दाख के मुद्दे पर वह भारत से सैन्यवार्ता कर रहा है और दूसरी ओर चोटियों पर कब्जा करने और एएलसी का भूगोल बदलने की कोशिश करता है लेकिन उसे समझना होगा कि इस बार उसका पाला 1962 के भारत से नहीं, 2020 के न्यू इंडिया से है। भारत जिस तरह उसे आर्थिक, सामरिक और वैश्विक कूटनीति के मोर्चे पर शिकस्त दे रहा है। अगर इसके बाद भी चीन नहीं चेता तो इसका मतलब साफ है कि उसे बड़ी चपत लगेगी और फिर कभी वह उबर नहीं पाएगा। पूरी दुनिया उसके घात—प्रतिघात से नाराज है लेकिन चीन है कि अपनी मनमानियों से बाज नहीं आ रहा। नीति कहती है कि कुकर्मी वह अभागा है जिसका विपत्ति में कोई साथी नहीं होता। अब भी समय है जब चीन को अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए ।