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हाईकोर्ट का फैसला, कहा- अपराध की सूचना देने पर तथ्य छिपाने का आरोप सही नही

इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि पुलिस भर्ती मे चयनित अभ्यर्थी अपने खिलाफ आपराधिक मामले की जानकारी होने पर तुरंत जिलाधिकारी को सूचित कर देता है तो यह नही माना जायेगा कि उसने जानबूझकर तथ्य छिपाया और गलत जानकारी दी है।

न्यायालय ने एस पी अंबेडकरनगर के उसे प्रशिक्षण पर भेजने से इंकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है जिसके तहत याची को हलफनामे में पंजीकृत अपराध की जानकारी न देने के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया गया था।

न्यायालय ने कहा है कि याची ने आनलाइन आवेदन में दर्ज एन सी आर का उल्लेख नही किया । उसे इसकी जानकारी नही थी। जैसे ही जानकारी मिली ,उसने डेढ माह के भीतर गृह जिला गाजीपुर के जिलाधिकारी को सूचित किया और मार पीट के केस में दोनो पक्षों के बीच समझौते की भी सूचना दी। जिलाधिकारी ने अनापत्ति देते हुए नियुक्ति की संस्तुति की और जिला आवंटित किया गया।

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न्यायालय ने कहा कि छोटे अपराधो और परिस्थितियों पर विचार कर अधिकारियों को उचित निर्णय लेना चाहिए। न्यायालय ने याची को प्रशिक्षण पर भेजने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने हिन्दी भाषा मे फैसला सुनाते हुए कहा कि याची का प्रकरण उच्चतम न्यायालय के अवतार सिंह केस के फैसले से आच्छादित है।

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न्यायालय ने कहा कि याची के खिलाफ दर्ज एन सी आर मे एक से दो साल की सजा एवं जुर्माना लगाया जा सकता था। यह मामूली अपराध है। इससे न किसी को उपहति हुई और न लोक शांति भंग हुई। कोई संगीन अपराध नही है। जिस पर गंभीरता से विचार किया जाय। वैसे भी जानकारी मिलते ही सूचित किया गया है ।

केस मे समझौता भी हो गया। जिलाधिकारी ने नियुक्ति के लिए अनापत्ति भी दे दी तो प्रशिक्षण पर भेजने से इंकार करने का आदेश उचित नही कहा जा सकता। याची पुलिस पी ए सी भर्ती में चयनित हुआ है।

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