सियाराम पांडे ‘शांत’
कोरोना संकट से पूरी दुनिया जूझ रही है। भारत उससे अछूता नहीं है । अपने नागरिकों को टीका लगाना उसका दायित्व है। दुनिया के सभी देश अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं लेकिन भारत अपनी पीड़ा के साथ ही पड़ोसी देशों की पीड़ा को भी समझता है। यही वजह है कि उसने पड़ोस प्रथम नीति के तहत पड़ोसी एवं सहयोगी देशों को कोविड-19 के टीके की आपूर्ति बुधवार को शुरू कर दी और इस श्रृंखला में भूटान और मालदीव को टीके की खेप पहुंचाई गई।
भारत ने सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया द्वारा उत्पादित कोविशील्ड टीके की डेढ़ लाख खुराक भूटान को भेजी जबकि एक लाख खुराक मालदीव पहुंचाई है।
कोविशिल्ड टीके की 20 लाख खुराक वह बांग्लादेश प्और 10 लाख खुराक नेपाल को भेजने वाला है। इससे पता चलता है कि भारत ही है जो पड़ोसी देशों को छाया देने का काम करता है। इन टीकों की आपूर्ति उसने अपने पड़ोसी देशों को सहायता अनुदान के तहत की है जबकि जगजाहिर है कि अपने देश के लोगों को टीकों की कमी न पड़े, इसलिए उसने रूस और अमेरिका को टीके की खरीद का ऑर्डर भी कर रखा है। पाकिस्तान को भारत शायद इसलिए भी मदद न करे क्योंकि उसने अभी इस बावत भारत से संपर्क नहीं किया है। वजह चाहे जो भी हो। भारत, श्रीलंका, अफगानिस्तान और मारीशस से टीके की आपूर्ति के लिये जरूरी नियामक मंजूरी की पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है।
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ऐसा लगता है कि डैगन का सब कुछ प्री-प्लान है कि पहले कोरोना वायरस फैलाया जाये और इसके कहर से जब दुनिया संकट में पड़ जाये तब आर्थिक संकट से बचाने, मेडिकल सहायता देने और फिर जैसे-तैसे वैक्सीन बनाकर मदद के नाम पर तमाम हथकंडों के जरिए छोटे-छोटे गरीब देशों को कुख्यात कर्ज कूटनीति के टैप में फंसाया जाये। जो देश चीन के टैप में न फंसे उसको संकट में डालकर उसकी जमीनों पर कब्जा कर लिया जाये या फिर और तरीकों से कमजोर कर दिया जाये। कोरोना वायरस के पैदा होने से लेकर अब तक चीन का जो संदिग्ध बर्ताव रहा है उससे इन बातों की पुष्टिहोती है। अब तो डब्ल्यूएचओ की टीम ने भी वुहान पहुंचकर यह संकेत दे दिया है कि कोरोना के फैलाव में चीन का हाथ है। दरअसल पिछले साल जब दिसम्बर में कोरोना फैला तो चीन ने इसे काफी समय तक दबाये रखा।
डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को महामारी तब घोषित किया जब पूरी दुनिया में पहुंच गया था। कोरोना फैलने के बाद चीन ने छोटे देशों को मेडिकल सहायता के नाम पर घटिया मॉस्क, सेनेटाइजर, पीपीई किट दूसरे देशों को सप्लाई कर दिया। आरोप तो यह भी है कि चीन ने उपयोग किये गये मॉस्क एवं पीपीई किट भी दूसरे देशों को भेजा। जब पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही थी तभी चीन ने धोखे से गलवान में कब्जे की कोशिश की, ताइवान और नेपाल की सीमाओं में भी घुसपैठ की। अब जबकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई पूरी दुनिया में तेज हो गयी है तो चीन वैक्सीन के जरिए छोटे-छोटे देशों को फंसाने की कोशिश कर रहा है।
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चीन ने सबसे पहले चार वैक्सीन को मंजूरी दे दिया था। हालांकि चीन की वैक्सीन को न डब्ल्यूएचओ से मंजूरी मिली है, न कोई उस पर भरोसा करता है और खुद चीन अपने नागरिकों के वैक्सीनेशन के लिए फाइजर एवं मडर्ना की वैक्सीन के जुगाड़ में है। लेकिन भारत को घेरने की नीयत से नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका जैसे तमाम देशों के साथ वैक्सीन सहयोग का पांसा फेंक रहा है। चीन वैक्सीन ट्रायल में वालंटियर का भुगतान करने, वैक्सीन खरीदने के लिए कर्ज देने का दांव भी चल रहा है। चीन की इस चाल को विफल करने के लिए भारत ने भी अपनी दो विश्वसनीय वैक्सीनों के साथ कदम बढ़ा दिया है।
भारत ने मानवता की रक्षा के लिए वैक्सीन के विकास के साथ ही उसको पूरी दुनिया को सस्ते में उपलब्ध कराने का वायदा संयुक्त राष्ट्र महासभा में किया था। अब उसी दिशा में बढ़ भी रहा है। भारत का यह कूटनीतिक दांव सफल भी है। नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों ने चीन की वैक्सीन को मना कर दिया है। मालदीव जो पहले चीन के प्रभाव आ गया था अब बदली हुई परिस्थितियों में वह भारत के साथ खड़ा है और कोरोना की लड़ाई में सारी मदद भारत से लेने के साथ ही वैक्सीन भी ले रहा है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ ही मैक्सिको, ब्राजील, कंबोडिया आदि को भी मदद का भरोसा दिया है।
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भारत की सस्ती और विश्वसनीय वैक्सीन मिलने पर शायद ही कोई चीन की महंगी एवं संदिग्ध वैक्सीन का जोखिम उठाये। भारत को मानवता को बचाने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ते हुए पूरी दुनिया को सस्ते में और गरीब देशों को फ्री या सहायता के जरिए वैक्सीन की मदद देनी चाहिए ताकि मानवता की रक्षा के साथ ही चीन के दांव को भी विफल किया जा सके।