नई दिल्ली। केरल के वायनाड के भूस्खलन (Wayanad Landslide) प्रभावित क्षेत्रों में 10 दिनों तक खोज और बचाव अभियान चलाने के बाद भारतीय सेना के जवानों की वापसी हो चुकी है। सेना की टुकड़ी को अपार कृतज्ञता के साथ विदाई दी गई। वायनाड से बाहर निकलते समय कुत्तों और डॉग हैंडलर सहित बचाव दल को स्थानीय लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच विदा किया। कन्नूर और त्रिवेंद्रम सैन्य अस्पतालों की सशस्त्र सेना चिकित्सा टीमें वायनाड के चूरलमाला और मुंदक्कई क्षेत्रों में प्रभावित ग्रामीणों और बचावकर्मियों को महत्वपूर्ण चिकित्सा सहायता प्रदान की।
वायनाड (Wayanad) के चूरलमाला और मुंडक्कई गांव में 30 जुलाई की देर रात लगातार तीन बार भूस्खलन होने से सैकड़ों लोग मलबे में दब गए थे।रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भूस्खलन के मद्देनजर तत्काल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी से बात की। इसके बाद भारतीय सेना की टुकड़ियों के साथ भारतीय वायुसेना के ध्रुव हेलीकॉप्टर को वायनाड में बचाव अभियान चलाने के लिए भेजा गया। सर्च ऑपरेशन चलाने के लिए जमीन पर सेना के 1300 से अधिक जवानों को तैनात किया गया। बचाव और राहत प्रयासों में सहायता के लिए वायु सेना के हेलीकॉप्टरों से सेना और नौसेना की अतिरिक्त टुकड़ियां जुटाई गईं। भारी इंजीनियरिंग उपकरण, बचाव कुत्तों की टीमें और अन्य आवश्यक राहत सामग्री को त्रिवेंद्रम, बेंगलुरु और दिल्ली से वायनाड पहुंचाया गया।
भारतीय सेना ने जमींदोज हुए गांवों में फंसे लोगों को बचाने के लिए अपने प्रयासों को तेज कर दिया। सेना ने लगभग 1000 लोगों को बचाकर उन्हें चिकित्सा सहायता दी और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। वायनाड लैंडस्लाइड के दूसरे दिन मौत का आंकड़ा बढ़कर 167 हो गया, जिसमें सेना ने लगभग 86 लोगों के शव भी बरामद किए। वायनाड भूस्खलन (Wayanad Landslide) के तीसरे दिन 01 अगस्त को प्रभावित लोगों को सुरक्षित बचाने के लिए सेना ने रातों-रात 100 फीट लंबा पुल बनाकर जनता के लिए खोल दिया। इससे बचाव कार्यों में तेजी आई और मलबे में फंसे हुए लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में मदद मिली।
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वायनाड में सेनाओं ने तीन दिन के भीतर बचाव कार्य लगभग पूरा करके मलबे में तब्दील हुए मकानों में प्रशिक्षित कुत्तों की मदद से ‘जिंदगी’ की तलाश शुरू की। भारतीय सेना की डॉग यूनिट के तीन लैब्राडोर कुत्ते जाकी, डिक्सी और सारा कीचड़ या बारिश की परवाह किए बिना बिना थके जीवन की तलाश में लग गए। भारतीय सेना के प्रशिक्षित डॉग्स ने अपनी सूंघने की बेजोड़ शक्ति से मलबे की गहराई में देखकर शवों की तलाश की, जिन्हें नागरिक प्रशासन को सौंप दिया गया। इसके बाद भारतीय सेना के मद्रास सैपर्स ने 16 घंटे के रिकॉर्ड समय में 24 टन क्षमता वाले 190 फीट बेली ब्रिज का निर्माण पूरा किया। इरुवानिपझा नदी पर चूरलमाला को मुंडक्कई से जोड़ने वाला यह पुल सेना ने आम नागरिकों के लिए खोल दिया।
वायनाड के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में 10 दिनों तक खोज और बचाव अभियान चलाने के बाद अब भारतीय सेना का कार्य पूरा हो चुका है। ऑपरेशन खत्म होते के बाद केरल से सेना के जवानों की वापसी शुरू हो चुकी है। वायनाड के नागरिकों ने उनके साहस और निःस्वार्थ कर्तव्य के लिए बचाव अभियान में शामिल भारतीय सेना के जवानों के प्रति आभार व्यक्त किया और उन्हें भावपूर्ण विदाई दी। नागरिकों ने भूस्खलन बचाव अभियान के दौरान अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले हमारे बहादुर नायकों के प्रति कृतज्ञता जताई और कहा कि आपके साहस और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।